जैसे –जैसे गठबंधन की योजना संकट के दौर से गुजर रही है मैं उस विचार को पुनर्जीवित कर सकता हूं जिसे मैं अप्रैल 2003 से कहता आ रहा हूं.
इससे ईरान के कार्यक्रम जारी रखने (जिसकी वकालत राष्ट्रपति बुश कर रहे हैं ) और संक्षिप्त समय सारिणी में सेना वापस बुलाने (जैसा कि बुश के विरोधी मांग कर रहे हैं )की वर्तमान बहस में से रास्ता निकल सकता है .मेरे समाधान से मतभेद विभाजित होता है “ कार्यक्रम जारी रखिए पर इसमें संशोधन करिये” . मेरा सुझाव है कि गठबंधन सेना को रिहायशी क्षेत्रों से हटाकर उन्हें रेगिस्तानी क्षेत्रों में नियुक्त किया जाए.
इस प्रकार सेनायें इराक में अनिश्चित काल तक रुक सकती हैं परंतु शहरी जनसंहार से दूर रहेंगी .इससे अमेरिका नीत सेना को आवश्यक कार्यों की अनुमति रहेगी ,( सीमा –सुरक्षा ,तेल और गैस का प्रवाह बनाये रखना , इस बात को सुनिश्चित रखना कि सद्दाम जैसा राक्षस पुन: सत्ता प्राप्त न करे ) और गैर अनावश्यक कार्यों से उसे मुक्ति रहेगी ( सड़कों जैसे कार्य या अपने बैरक की सुरक्षा )
इन स्पष्ट कार्यों से परे सेना की इस पुनर्तैनाती से कार्यक्रम में सुधार होगा . ईराकियों को ईराक चलाने दिया जाये – ईराक के भले की कामना तो की जाए परंतु इस बात को मान्यता दी जाये कि अपने देश के लिए वे उत्तरदायी हैं.या फिर लंदन के टाइम्स के शीर्षक के अनुसार “ ईराकियों से बुश तुम नियंत्रण करो..” गठबंधन सेना सहायता कर सकती है परंतु ईराकी वयस्क हैं कोई अवस्यक नहीं और अपने देश के लिए उत्तरदायित्व को समझते हैं . इनमें आंतरिक सुरक्षा से अपना संविधान लिखने तक शामिल है और वह भी पूरी तत्परता से .
ईराक में हिंसा का ईराकी समस्या की भांति समाधान किया जाये – गृहयुद्ध की कगार पर पहुंच चुकी भयंकर हिंसा एक मानवीय त्रासदी है न कि रणनीतिक और ईराकी समस्या है या कि गठबंधन की समस्या . गठबंधन को समझना चाहिए कि ईराकियों के मध्य शांति स्थापित करना उसका दायित्व नहीं है और इसी प्रकार लाइबेरिया और सोमालिया में भी .
बगदाद में विशाल अमेरिकी दूतावास को भंग किया जाये – अमेरिका द्वारा बगदाद में सृजित हरा क्षेत्र पहले से ही भव्य है अब बगदाद के ह्रदस्थल पर 4000 कर्मचारियों वाले किलेनुमा अब तक के भव्य दूतावास के निर्माण से स्थिति और भी खराब होगी .इसकी बढ़ती केन्द्रीयता से ईराकी आने वाले दशकों तक असंतुष्ट होंगे और राकेट संपन्न शत्रु के लिए सबसे अच्छा लक्ष्य होगा .जून 2007 को आरंभ होने वाले इस विशाल क्षेत्र को ईराकियों को सौंप देना चाहिए और इस पर खर्च. 1 बिलियन यू .एस डालर को युद्ध की भूल समंझकर इसके स्थान पर नये सामान्य आकार का दूतावास निर्मित करना चाहिए.
अतिशय सुरक्षा भाव समाप्त हो- बगदाद के अयोग्य और भ्रष्ट इस्लामवादी नेतृत्व ने बुश प्रशासन की प्रतिष्ठा को आंच पहुंचाई है और इसे गले लगाने से यह कठपुतली शासन प्रतीत होता है . अन्य ईराकी संस्थायें जैसे मेरी प्रिय नेशनल सिम्पनी आर्केस्ट्रा भी अमेरिका राजनेताओं के संरक्षण से प्रभावित हो रही हैं . गैर-मुसलमानों की संवेदनशीलता से यह अपराध बन जाता है .
ईराक के लिए गठबंधन महत्वकांक्षा कम की जाये –आपरेशन ईराकी स्वतंत्रता आरंभ से ही अत्यंत महत्वकांक्षी और अमेरिकी हितों से काफी दूर था .लोकतांत्रिक , मुक्त और संपन्न ईराक के अप्राप्य लक्ष्य को छोड़कर एक स्थिर और शालीन ईराक का लक्ष्य स्वीकार करना चाहिए जहां स्थितियां मिस्र और टूयूनिशिया से बेहतर हों.
ईराक की स्थितियों ने गठबंधन देशों की घरेलू नीतियों में गहरे मतभेद उत्पन्न कर दिये हैं , विशेष रुप से अमेरिका और ब्रिटेन में . परंतु इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वहां बहुत कुछ दांव पर नहीं लगा है और इस आधार पर लक्ष्य निर्धारित करना उचित नहीं होगा . क्या गैर –ईराकी पाठकों के मन में ईराक के भविष्य को लेकर सशक्त भाव हैं . मुझे आशंका है कि ऐसा नहीं है .
ईराकी अपने देश पर कब्जा चाहते हैं जबकि ईराक में सेवारत सेनाओं के देश अपने आशाहीन प्रयास के द्वारा इसे बेहतर स्थिति में पहंचाना चाहते हैं . दोनों ही आकांक्षाएं सेना को मरुस्थल में तैनात कर प्राप्त की जा सकती हैं जहां वे ईराक की क्षेत्रीय अखंडता को कायम रखने के आवश्यक कार्य पर ध्यान देते हुए जैविक ईधनों के प्रवाह को जारी रख मानवीय त्रासदी को रोक सकते हैं .
यह विचार द्वितीय विश्वयुद्ध से उपजा है जब अमेरिका अपने हितों की रक्षा के लिए देश पर विजय प्राप्त कर इसके पुनर्वास को अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानता था .
माउस दैट रोर्ड या पोर्टरी बार्नरुल की कल्पना गलत है और इसका पुन: मूल्यांकन होना चाहिए . वैसे ऐसे बहुत से स्थल और समय हैं जब पुनर्वास आवश्यक है लेकिन इसका निर्धारण अमेरिकी हित और सुविधा के आधार पर होना चाहिए . ईराक जैसा हिंसक देश इन दोनों ही श्रेणियों में असफल सिद्ध होता है .