मिस्र में 18 वर्ष से ऊपर के 1,000 व्यक्तियों पर किये गये सर्वेक्षण में 92 प्रतिशत लोगों ने इजरायल को एक शत्रु राज्य माना है इसके विपरीत 2 प्रतिशत लाचार लोगों ने ही इजरायल को मित्र राज्य माना है. इन शत्रुतापूर्ण भावों का प्रकटीकरण अनेक रूपों में जैसे “मैं इजरायल से घृणा करता हूँ ” जैसे लोकप्रिय गायन, घृणापूर्ण सेमेटिक विरोधी राजनीतिक कार्टूनों, अस्वाभाविक षड़यन्त्रकारी सिद्धान्तों तथा देश की यात्रा करने वाले इजरायलवासियों पर आतंकवादी हमलों में होता है. मिस्र के अग्रणी लोकतान्त्रिक आन्दोलन कैफाया ने हाल में मार्च 1979 की मिस्र-इजरायल शान्ति सन्धि को समाप्त करने के लिये 10 लाख लोगों के हस्ताक्षर एकत्र करने सम्बन्धी अभियान का आरम्भ किया है.
इसके अतिरिक्त मिस्र की सरकार ने इजरायल के सीमा क्षेत्र के कस्बों के विरूद्ध प्रयोग होने के लिये भारी मात्रा में गाजा क्षेत्र में हथियारों की तस्करी की अनुमति दी है. मिस्र और इजरायल सम्बन्धों के जानकार इजरायल के एक विधायक युवाल स्टेनिज का अनुमान है कि पी.एल.ओ और हमास का 90 प्रतिशत विस्फोटक मिस्र से ही आता है.
वैसे तो मिस्र का कोई शत्रु नहीं है परन्तु यह गरीब राज्य सैन्य निर्माण में पर्याप्त संसाधन लगा रहा है. कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस के अनुसार इस राज्य ने वर्ष 2001 से 04 के मध्य 6.5 बिलियन डालर का विदेशी हथियार खरीदा है जो मध्य पूर्व के किसी भी अन्य राज्य से अधिक है. इसके विपरीत इस कालखण्ड में इजरायल ने 4.4 बिलियन डालर के हथियार खरीदे तथा सउदी अरब ने 3.8 बिलियन डालर के. हथियार खरीदने के मामले में मिस्र सभी विकासशील देशों में जनसंख्यात्मक दृष्टि से विशाल भारत और चीन को छोड़कर तीसरे स्थान पर है. मिस्र के पास विश्व की दसवीं सबसे बड़ी सेना है जो इजरायल की सेना के कुल आकार की दोगुनी है.
शत्रुता का यह रिकार्ड इजरायल और मिस्र के मध्य हुई ऐतिहासिक सन्धि के बाद भी विद्यमान है जिसकी सराहना मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर अल सादात और इजरायल के प्रधानमन्त्री मेनाकम बेजिन ने भी की थी. अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने आशा व्यक्त की थी कि इस सन्धि से एक नये युग का आरम्भ होगा जब मध्य पूर्व में हिंसा का वर्चस्व नहीं रहेगा. इस उत्साह में मैं भी शामिल था.
एक बार पुन: जब इस सन्धि पर विचार का अवसर आया है तो हमें दिखाई देता है कि इस सन्धि की दो हानियों को पूरी तरह अनुभव किया जा सकता है- पहला, इससे अमेरिका की हथियार सामग्री खुल गई तथा अमेरिकी आर्थिक सहायता भी प्राप्त हो गई जिससे आधुनिक अस्त्र खरीदे जा सके. इसके परिणामस्वरूप अरब-इजरायल संघर्ष में पहली बार कोई अरब सैन्य शक्ति अपने प्रतिद्वन्द्वी इजरायल के समकक्ष खड़ी हो गई.
दूसरा. इससे इजरायल विरोधी वातावरण को और बल मिला. 1977 में सादात की जेरूसलम की नाटकीय यात्रा से पूर्व 1970 में मैं तीन वर्ष मिस्र में रहा और उस समय इजरायल के मामले में मेरी रूचि आज के सापेक्ष कम रही. समाचारों में तो इजरायल चारों ओर होता था परन्तु बातचीत में इसका उल्लेख बहुत कम ही होता था. मिस्र के लोगों ने इस विषय को सरकार पर डाल दिया था. परन्तु 1979 की सन्धि के बाद जिसे मिस्र के अधिकांश लोग विश्वासघात मानते हैं ,लोग इजरायल के सम्बन्ध में रूचि लेने लगे. इसका परिणाम हुआ कि अधिक व्यक्तिगत, तीव्र और शत्रुवत् इजरायल विरोधी भाव विकसित हुआ.
जार्डन में भी इसी पद्धति की पुनरावृत्ति हुई जब 1994 में इजरायल के साथ हुई सन्धि ने जनमानस को उद्वेलित किया. कुछ हद तक 1993 में फिलीस्तीन के साथ हुई सन्धि और 1983 में लेबनान की असफल सन्धि में जनता के बीच ऐसी ही प्रतिक्रिया हुई थी. इन चारों ही मामलों में कूटनीतिक समझौतों से इजरायल के विरूद्ध शत्रुता में और वृद्धि हुई.
शान्ति प्रक्रिया के समर्थकों का उत्तर है कि मिस्र के लोगों का व्यवहार भले ही शत्रुवत् हो और उनके शस्त्रास्त्र का भण्डार भले बढ़ा हो परन्तु सन्धि के बाद से 1979 से अब तक मिस्र ने इजरायल के विरूद्ध कोई युद्ध नहीं किया है. शान्ति पर कितनी ही बर्फ क्यों न हो पर शान्ति तो है. इस सम्बन्ध में मेरा उत्तर है, यदि सक्रिय युद्ध की अनुपस्थिति को ही शान्ति माना जाता है तब तो इजरायल और सीरिया के मध्य औपचारिक युद्ध की स्थिति के बाद भी इन देशों के मध्य कई दशकों से शान्ति का वातावरण है. दमिश्क की जेरूसलम के साथ कोई सन्धि नहीं है और उसके पास अमेरिका के आधुनिक अस्त्र भी नहीं हैं.
क्या एक कागज पर किये गये पुराने हस्ताक्षर का मिस्र के अब्राम टैंक, एफ-16 लड़ाकू जेट या हमलावर हेलीकाप्टरों पर कोई प्रभाव पड़ता है. मेरी दृष्टि से नहीं पड़ता. यदि सन्धि पुनरावलोकन करें तो स्पष्ट होता है कि अरब-इजरायल कूटनीति को कुछ गलत अवधारणाओं तथा आशावादी सम्भावनाओं से प्रेरणा मिलती है.-
- एक बार सन्धि पर हस्ताक्षर होने के बाद हस्ताक्षरकर्ता गैर निर्वाचित अरब नेता जनता को समझाने में सफल हो जायेंगे कि वे इजरायल को नष्ट करने की महत्वकांक्षा का त्याग कर दें.
- यह सन्धि स्थाई होगी और न तो इससे पीछे हटा जायेगा और न ही कोई घालमेल होगा.
- अन्य अरब राज्य भी इसका अनुपालन करना आरम्भ कर देंगे
- युद्ध को एक पक्ष द्वारा हारने के स्थान पर बातचीत द्वारा समाप्त किया जायेगा
समय आ गया है कि मिस्र और इजरायल के बीच शान्ति सन्धि को अरब-इजरायल कूटनीति का आभूषण मानने के स्थान पर एक भूल मान लिया जाये. इसके साथ ही इससे शिक्षा ग्रहण करते हुये इसकी पुनरावृत्ति से बचने का प्रयास किया जाये.