इराक के विषय में विशेषज्ञता के अभाव से ग्रस्त दस व्यक्तियों ने परस्पर मिलकर इराक स्टडी ग्रुप रिपोर्ट तैयार की है तथा मध्य-पूर्व के सम्बन्ध में अमेरिका की असफल नीतियों के लिये मार्ग प्रशस्त करते हुये उसे ही वर्तमान नीति के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है.
सबसे बड़ी बात यह है कि इराक में अमेरिका की भूमिका के सम्बन्ध में इस रिपोर्ट ने बेवकूफीपूर्ण ढंग से अमेरिकी सेना के इराक में स्थित रहने या देश छोड़ने के मध्य विभाजन किया है और इस दौरान यह ध्यान में नहीं रखा कि अमेरिकी सरकार ने सार्वजनिक कार्यों के अनेक प्रकल्पों जैसे मामूली कार्यों का दायित्व भी अपने कन्धों पर ले रखा है. इसके बजाय रिपोर्ट ने बिना सोचे-समझे रणनीतिक अनुमान को स्वीकार कर लिया है तथा अलग-अलग नीतियों के लिये कुछ गुंजायश छोड़ रखी है.
विचलित कर देने वाली इस विस्तृत रिपोर्ट में 79 सिफारिशें की गई है. इनमें (सउदी प्रायोजित) इस्लामिक सम्मेलन संगठन (O.I.C) या अरब लीग को इराक के भविष्य पर निर्णय का अधिकार देना (सिफारिश3). एक और सिफारिश में अन्तर्राष्ट्रीय इराक सहयोग गुट बनाने की बात कही गई है, जिसमें इरान, सीरिया और संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव सम्मिलित हों( सिफारिश क्रमांक 57). कुछ अन्य मेधावी सिफारिशों में इरान की परमाणु समस्या का हल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा करना ( सिफारिश क्रमांक 10) तथा सहयोग गुट तेहरान को मनाये कि वह इराक में स्थिति में सुधार के लिये यथोचित कदम उठाये (सिफारश क्रमांक 11). जिस इरान के राष्ट्रपति अमेरिका विहीन विश्व की कल्पना करते हैं वही वाशिंगटन के हितों की रक्षा करेगा. इस सलाह के बारे में जेरूसलम पोस्ट ने उचित ही नौसिखियापूर्ण और मूर्खतापूर्ण शब्दों का प्रयोग किया है.
वास्तव में सामान्य बुद्धि के लोग इराक की समस्या को अरब-इजरायल संघर्ष से अभिन्न मानते हैं और इसीलिये रिपोर्ट के सह सभापति जेम्स ए बेकर ने 1991 की ही भूल को पुन: दुहराया है. उन्होंने उस समय फारस की खाड़ी को छोड़कर फिलीस्तीनियों की ओर मुड़ने की बात करके सद्दाम हुसैन को अगले 12 वर्षों के लिये सत्ता में रहने का मार्ग प्रशस्त कर तत्कालीन अव्यवस्था में सक्रिय योगदान किया.
अपनी नई रिपोर्ट में बेकर और उनके सहयोगियों ने फिलीस्तीनी राज्य की बात की है (सिफारिश क्रमांक12) और यहाँ तक कि इस समस्या के अन्तिम समाधान के लिये फिलीस्तीनियों के वापसी के अधिकार की माँग की है ( सिफारिश क्रमांक 17) वास्तव में यह यहूदी राज्य को नष्ट करने का कूट वाक्य है. उन्होंने तत्काल समाधान के लिये घोषित किया है कि अमेरिका की सुरक्षा की गारण्टी के तौर पर इजरायल के लोग गोलन की पहाड़ियों पर लौट जायें ( सिफारिश क्रमांक 16).
इन चौंकाने वाली घोषणाओं के बाद भी किसी को आश्चर्य हो सकता है कि फिलीस्तीनी लोगों को सन्तुष्ट करने से इराक में गृहयुद्ध कैसे शान्त हो जायेगा या फिर अरब-इजरायल संघर्ष का समाधान न होना किस प्रकार इराक के मामले में प्रासंगिक है न कि अजरबेजान और अरमीनिया का संघर्ष जो कि इराक के अधिक निकट है.
इसके अतिरिक्त पूरे मामले को और बिगाड़ते हुये बेकर ने बुश प्रशासन को चेतावनी दी है कि वे रिपोर्ट की 79 सिफारिशों को फ्रूट सलाद के रूप में चुनिन्दा आधार पर न स्वीकार करें वरन् पूरी सिफारिश को एक साथ स्वीकार करें. यहाँ तक कि अहंकार के लिये प्रसिद्ध वाशिंगटन शहर में भी इस रिपोर्ट से लोगों के सिर चकरा गये हैं. बेकर और उनके सहायक सभापति ने जिस प्रकार फैशन पत्रिका Men’s Vogue के चित्रकार एनी लिबोविज के साथ चित्र खिंचवाये और जन सम्पर्क फर्म एडेलमैन की सेवायें लीं उससे उनके बौद्धिक उथलेपन का आभास होता है.
कुल मिलाकर इराक स्टडी ग्रुप रिपोर्ट अफसरशाही की सतर्कता , गलत निष्पक्षता , घिसे-पिटे विश्लेषण और परम्परागत समन्वय से युक्त है. यद्यपि प्रेस ने इस नासमझ रिपोर्ट पर टिप्पणी की है. वाल स्ट्रीट जर्नल में डैनियल हेनिंगर ने इसे ‘ स्नावयिक मनोरंजन’, राबर्ट कागन और विलियम क्रिस्टोल ने ‘प्रस्तुत होने पर मृत’ और इराकी राष्ट्रपति जलाल तलाबानी ने भी इसे मृत करार दिया है. ऐसा लगता है कि वे लोग ठीक कहते हैं और राष्ट्रपति बुश ने इन सिफारिशों को ‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम’ की संज्ञा देकर ठुकरा दिया है.
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि कार्यक्रम सफल नहीं हुआ फिर भी बुश को इराक में कार्यक्रम जारी रखना चाहिये. इराक के सम्बन्ध में ज्ञान रखने वाले अनेक व्यक्ति प्रशासन के मुक्त, लोकतान्त्रिक और सम्पन्न इराक के निर्माण के लक्ष्य के लिये अनेक रचनात्मक सुझावों के साथ सामने आये हैं और जो अपनी भूमिका का प्रचार भी नहीं चाहते. व्हाइट हाउस को इन प्रतिभाशाली व्यक्तियों को बुलाकर उनसे गहन विचार-विमर्श कर इराक में अमेरिका की भविष्य की भूमिका के लिये कुछ उपयोगी विचार सामने लाने चाहिये.
ऐसा करने का अर्थ होगा कि मध्य-पूर्व के सम्बन्ध में कुछ भी न जानने-समझने की 1919 की परम्परागत राष्ट्रपतीय परम्परा को तोड़ना होगा. वुडरो विल्सन ने लेवन्ट के मामले की जांच करने के लिये दो अयोग्य अमेरिकावासियों को नियुक्त किया था . विल्सन के एक सहयोगी ने बताया कि उनका मानना था कि ये दोनों व्यक्ति सर्वाधिक योग्य हैं क्योंकि ये दोनों ही सीरिया के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानते. इस न जानने की सोच ने ही अमेरिका को 87 वर्ष पूर्व असफल किया था और यह आज फिर असफल कर रहा है.