अमेरिकी सेना का नई रणनीति के अन्तर्गत ध्यान ओसामा को पकड़ने या उसे मारे जाने पर है. इससे आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध में सफलता तो मिलेगी परन्तु उस मात्रा में नहीं जिस मात्रा में अपेक्षा की जा रही है.
यह जिहादी हिंसा को भारी मात्रा में रोकने में सफल नहीं होगा. कुछ मामलों में यह सत्य है कि एक आतंकवादी नेता की घेराबन्दी करने से उसके संगठन का क्षरण करने में या फिर खतरा कम करने में प्रत्यक्ष रूप से सहायता मिलती है. इन उदाहरणों को देखिये-
1992 में पेरू की गैंग सेन्डेसे लुमीनोजो ( चमकता मार्ग ) के प्रमुख अबीमेल गुजमान की गिरफ्तारी के बाद उसके माओवादी संगठन में अराजकता व्याप्त हो गई और सरकार को पलटने का उसका खतरा समाप्त हो गया. इसके बाद उसकी पुछल्ली सेना लड़ती रही जब तक 1999 में इसका नेता आस्कर रामीरेज डूरण्ड पकड़ नहीं लिया गया.
1999 में तुर्की में कुर्दिस्तान कार्यकर्ता दल के नेता अब्दुल्ला ओकालान को पकड़ा गया और तत्काल बाद उसका माओवादी संगठन क्षीण हो गया. ओकालान ने जब हिरासत में रहते हुये अपने कार्यकर्ताओं से तुर्की राज्य के विरूद्ध युद्ध को समाप्त करने का आग्रह किया तो प्रभावी ढंग से इसका पालन हुआ.
दिसम्बर 2003 में जब इराक का पूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन पकड़ा गया तो उसके नेतृत्व में चल रहा आठ माह पुराना आतंकवादी ताण्डव समाप्त हो गया. हालांकि उग्रवादी इस्लामी हिंसा बिना किसी अवरोध के चलते रही.
आतंकवादी विषयों के विशेषज्ञ माइकल राडू ने संकेत दिया है यही परिपाटी छोटे आतंकवादी गुटों के सम्बन्ध में भी देखने को मिली जब जर्मनी की रेड आर्मी के नेता एन्द्रियास बादर और जापान की औम शिनरिक्यो के नेता शोकी असहारा गिरफ्तार हुये. राडू का मानना है कि लिट्टे के नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण की गिरफ्तारी या उसके मारे जाने के बाद इस संगठन की भी यही दशा होगी.
इन सभी मामलों में नेताओं की कुछ विशेषतायें हैं जैसे करिश्मा, शक्ति और अपने संगठन के आलोचकों के प्रति निर्दयता . यदि इन ताकतों के मुकाबले कोई दूसरा नहीं आता तो आपसी प्रतिद्वंदिता , दुर्बुद्धि और पतन ही परिणाम होता है .
परंतु अनेक मामलों में बिन लादेन की समाप्ति इस परिपाटी में उपयुक्त नहीं बैठती – अपने संगठन का एकमात्र मुख्य व्यक्तित्व होने के नाते उसके अदृश्य होने से अल- कायदा नष्ट नहीं होगा.
Al-Qaeda : Casting a Shadow of Terror के लेखक जेसनबर्ग के अनुसार अल –कायदा आतंकवाद फैलाने वाली सेना से कहीं अधिक विश्व को अपने तरीके से देखने के रास्ते का एजेन्डा और विचारधारा है .
समस्त विश्व के अनेक जेहादी संगठनों में से एक होने के कारण अल – कायदा के पतन से अल्जीरिया , मिस्र , फिलीस्तीनी राज्य क्षेत्र , सउदी अरब , ईराक , अफगानिस्तान , कश्मीर , बांग्लादेश और फिलीपीन्स में चल रहे उग्रवादी हिंसक अभियान में बहुत कम ही प्रभाव पड़ेगा .
जब बिन लादेन व्यक्तिगत रुप से उग्रवादी इस्लाम का प्रतीक बनकर गठबंधन सेना को चकमा देकर अपने इस्लामवादी अनुयायियों को प्रेरित कर रहा है तो उसके पकड़े जाने या मारे जाने से उसके अनुयायियों को पर कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा और उनका मनोबल गिरेगा . उसकी समाप्ति से इस आंदोलन को झटका तो लगेगा परंतु वह आसानी से इससे उबर जाएगा . अभी हाल में यू एस ए टूडे के एक लेख में राबर्ट एन्ड्रूयज ने सही ही कहा है “ उसके पकड़े जाने से आतंकवाद का खतरा समाप्त नहीं होगा ”.
आतंकवाद को समाप्त करने के लिए उनके नेताओं और उनके संगठन को निशाना बनाने से कुछ और अधिक करना होगा . इसके लिए इस्लामवाद और उग्रवादी इस्लाम के विचार के स्वरुप को पहचानना होगा . युद्ध तब तक नहीं जीता जा सकता जब तक राजनेता और अन्य लोग आतंकवाद के स्थान पर विचारधारा पर विशेष ध्यान नहीं देते , क्योंकि आतंकवाद तो इसका प्रकटीकरण मात्र है .
वैसे बिन लादेन का पकड़ा जाना या उसका मारा जाना आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में एक लाभदायक प्रभाव छोड़ेगा और इससे राष्ट्रपति बुश अपने संभावित विरोधी डेमोक्रेट के मुकाबले विजय प्राप्त कर सकेंगे .
आने वाला राष्ट्रपति चुनाव कौन जीतता है इससे वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध की दिशा निर्धारित होगी . वीकली स्टैन्डर्ड के फ्रेड बारनेस के अनुसार जार्ज बुश 12 सितंबर के व्यक्ति हैं जबकि जॉन केरी 10 सितंबर के व्यक्ति हैं . जिस प्रकार दिसम्बर में सद्दाम हुसैन की गिरफ्तारी से हावर्ड डीन के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनने पर प्रभाव पड़ा . उसी प्रकार बिन लादेन का पकड़ा जाना सिनेटर केरी को प्रभावित कर सकता है .ऐसा इसलिए क्योंकि केरी ने आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध के तरीके की आलोचना करते हुए इसे आधुनिक इतिहास की सबसे दिशाहीन विदेश नीति बताया है . केरी तो यह भी दावा करते हैं कि अमेरिका की स्थिति 11 सितंबर 2001 से भी बुरी हो चुकी है. केरी ऐसी आलोचनाओं के शीर्ष पर बिन लादेन के पकड़े जाने या मारे जाने को रख देते हैं . इससे बिन लादेन को पकड़ा जाना या मारा जाना युद्ध का एक आपातकालीन विषय बन जाता है .