इजरायल के प्रधानमन्त्री ने दशकों पुराने अपने इतिहास को तोड़ते हुए गाजा से तथा कुछ पश्चिमी तट से इजरायली निवासियों को हटाने का आशय प्रकट किया है। ऐसा करने से एक मौलिक प्रश्न उठता है कि फिलीस्तीन इजरायल के सम्बन्धों की व्यापक योजना में यह बसने का विषय कितना महत्वपूर्ण है।
मैंने “सेटलमेन्ट” के आस पास उद्धरण का चिन्ह इसलिए प्रयोग किया है कि शब्दकोष में इस शब्द की परिभाषा एक छोटे समुदाय, या नये क्षेत्र में लोगों को स्थापित करने के रुप में की गई है, इससे यहूदियों के अधिवास की व्याख्या ठीक प्रकार से नहीं हो पाती क्योंकि उस क्षेत्र में हजारों निवासी अनेक दशकों से रहते आ रहे हैं ।
कुछ विश्लेषकों के अनुसार पश्चिमी तट और गाजा में यहूदियों का निवास करना फिलीस्तीन – इजरायल संघर्ष का समाधान करने की दिशा में सबसे बडी बाधा है।
उदाहरण के लिए-न्यूयार्क टाइम्स में थामस फ्रीडमैन – “जितना जल्दी हो सके इजरायलवासी पश्चिमी तट और गाजा गलियारे से बाहर जायें और अधिकांश अधिवासी क्षेत्र को खाली कर दें। मै इसकी वकालत काफी लम्बे समय से करता आया हूँ , परन्तु अब यह तात्कालिक आवश्यकता है। अन्यथा यहूदी राज्य संकट में आ जायेगा। आदर्श रुप में इस वापसी की बातचीत क्लिंटन योजना के अनुसार होनी चाहिए। परन्तु यदि आवश्यक तो ऐसा एक तरफा आधार पर भी किया जा सकता है। ऐसा शीघ्र सम्भव नहीं है, इस लिए अमेरिका को इसके लिए जोर देना चाहिए ।”
अरब अमेरिकन इन्स्टीट्यूत के जीन अबी नादेर –“समस्या के समाधान के सन्दर्भ में ,ये बस्ती एक प्रमुख राजनीतिक बाधा है ।”
डेमोक्रेट राष्ट्रपति प्रत्याशी डेनिस कुसिनिच –“ इजरायल और फिलीस्तीन के मध्य सम्भावित शान्ति इजरायली बस्ती एक महत्वपूर्ण बाधा है ।”
मै दो कारणों से इन तर्कों से असहमत हूँ ।
पहला- ऐसा प्रतीत होता है मानों फिलीस्तीनी अरब केवल पश्चिमी तट और गाजा पर ही नियन्त्रण स्थापित करना चाहते है , जबकि पर्याप्तमात्रा में साक्ष्य संकेत करते हैं कि उनकी इच्छा इससे आगे जाकर समुचित रुप में इजरायल पर नियन्त्रण स्थापित करने की है। इसलिए इस क्षेत्र से इजरायलवासियों को निकालने से कोई लाभ नही होगा ।
वास्तव में तो इससे क्षति ही होगी। कल्पना करिये इजरायलवासियों को हटा दिया गया और इजरायल की सुरक्षा सेनाओं को 1967 की सीमाओं पर वापस भेज दिया गया तो क्या होगा, फ्रीडमैन , अबी नादेर और कुसिनिच सोच रहे हैं कि इस प्रकार फिलीस्तीनी अरबवासी इजरायल के कृत़ज्ञ हो जायेगें और इजरायल को शान्तिपूर्वक अपने रास्ते जाने देगें ।
परन्तु ऐसे में मैं कुछ इस प्रकार की प्रतिक्रिया की उपेक्षा करता हूँ – इजरायल की वापसी को फिलीस्तीनी अरब इस देश की कमजोरी के रुप में आंकेगें और इसे तुष्टीकरण मानकर इजरायल पर दबाव बनायेंगें। किसी प्रकार की कृतज्ञता स्थापित करने के स्थान पर वे और बडी माँग करगें। जेनिन और रामल्लाह के लिए अपना मुहँ फैलाते हुए, उनके एजेण्डे में जेरुसलम होगा और साथ ही तेल अबीब और हायफा की मांग भी उठेगी ।
इससे यही ध्वनित होता है कि इजरायल को पश्चिमी तट और गाजा में अपने समुदाय और शहरों पर दृढ़ रहना चाहिए। वे एक रणनीतिक और राजनीतिक जिम्मेदारी हो सकते हैं परन्तु उन्हें अपने साथ रखते हुए उनकी रक्षा की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त कुछ और करने का अर्थ होगा फिलीस्तीनी अरबवासिय़ों को संकेत देना कि इजरायल में खुला समय आरम्भ हो चुका है और इससे अभी दिन में घटने वाली 20 घटनाओं में और वृद्धि हो जायेगी ।
दूसरा इजरायली अधिवास को हटाने के लिए शेरोन का आशय परिवक्षित करता है मानों य़े फिलीस्तीनी – इजरायल विवाद के समाधान में सबसे बडी बाधा है, जबकि इसके विपरीत इन्हें मै अत्यन्त मामूली बाधा के रुप में देखता हूँ। एक बार फिलीस्तीनी अरब पूरी तरह से शब्द और कृति में यहूदी राज्य के अस्तित्व को स्वीकार कर लेते हैं उसी क्षण इस संघर्ष की समाप्ति की सम्भावनायें आरम्भ हो जाती हैं ।
तालमेल बैठाती सीमायें – जैसा कि पिछले सप्ताह शेरोन ने सलाह दी कि उत्तरी इजरायल के त्रिकोण क्षेत्र में जहाँ की बडी मात्रा में अरब जनसंख्या है, उसे व्यापार के लिए बढ़ाना चाहिए ।
असम्पर्कित प्रभुसत्ता – इजरायल से अलग निवास करने वाले यहूदी इजरायली शासन के अन्दर समुचित ढंग से रह सकते हैं ।
फिलीस्तीनी प्रभुसत्ता – एक बार फिलीस्तीनी अरब सही अर्थों में यहूदी उपस्थिति को स्वीकार कर लें तो राज्य क्षेत्र में रहने वाले यहूदी फिलीस्तीनी शासन में रह सकते हैं । ऐसी योजनायें तो अभी केवल सैद्धान्तिक आदर्श ही लगती है परन्तु यदि फिलीस्तीनी अरबवासियों के हृदय में अन्तिम रुप से परिवर्तन होगा और वे इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार कर हिंसा का परित्याग कर देंगें तो सकारात्मक परिणाम होगें और आज कठिन से दिखने वाले मुद्दे एक ओर चले जायेंगे
लेकिन प्रश्न यह है कि हमें कब पता चले कि उनका हृदय परिवर्तन हुआ है । इस सम्बन्ध में मेरा उत्तर है , जब पश्चिमी में हेब्रान में रहने वाले यहूदियों को इजरायल में नजरेथ में रहने वाले अरबवासियों से कम सुरक्षा की अवश्यकता हो ।
जब तक ऐसा सुखद दिन नही आता तब तक इस क्षेत्र में रहने वाले यहूदियों का मुद्दा रणनीतिकारों और भविष्य के कूटनयिकों के लिए कम महत्व है । ऐसे कम महत्व के राजनीतिक मुद्दों पर ध्यान केंन्द्रित करने के स्थान पर फिलीस्तीनी अरबवासियों को प्रलोभित करना चाहिए कि वे इजरायल नामक यहूदियों के प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्यको स्वीकार करें। जब तक ऐसा नहीं होता अन्य कोई भी पहल किसी लाभ की नहीं है।