इराक में शरीयत नामक कानूनी ढाँचे और इस्लाम की क्या भूमिका होनी चाहिए। सिंद्धान्त रुप में अमेरिका सहित उन देशों में जहाँ की सेनायें इराक में हैं, यह विषय काफी मंथन और वाद-विवाद का होना चाहिए। क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर अनेक प्रकार से इराक के भविष्य को प्रभावित करने वाला है। इस्लाम की उपयुक्त भूमिका से
सम्बन्धित विचारों के आधार पर एक वर्ष पूर्व इराक में युद्ध का उद्देश्य समझा जा सकता है ।
इस्लामी कानून को प्रतिबन्धित किया जाये –सद्दाम हुसैन को सत्ता से अलग करने को ऑपरेशन इराकी स्वतन्त्रता एक कारण से कहा गया। अमेरिका नीत आक्रमणकारी सेना को ऐसे अलोकतान्त्रिक कानूनी ढाँचे की मिडवाइफ नही बनना चाहिए जो धार्मिक स्वतन्त्रता को अस्वीकार करता है,व्याभिचारियों को मौत के घाट उतारता है तथा गैर मुस्लिमों के विरुद्ध भेद-भाव करता है।शरियत को स्वीकार करने से नरमपंथी हतोत्साहित होंगे तथा इराक वहावियों और खौमैनीवादी कट्टरपंथियों को प्रोत्साहन मिलेगा।इसके अतिरिक्त शिया और सुन्नी शरियत की व्याख्या अलग-अलग ऱुपों में करते हैं इस कारण इसे लागू करने में समस्या आयेगी।
इस्लामी कानून को अनुमति दी जाय़े- गठबन्धन सेनाओं ने मूल रुप में देश को एक खतरनाक शासन से मुक्त कराने के लिए प्रवेश किया था न कि इराकी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए । इसमें लोकतन्त्र और सम्पन्नता एक सुखद उत्पाद है।गठबन्धन सेना की विजय के हित के लिए आवश्यक नहीं है कि इराक को दण्ड विधान,परिवार, वित्त और अन्य कानून पश्चिमी प्राथमिकताओं के अनुरुप हों इसके अतिरिक्त मध्य पूर्व में अपने महत्वाकांक्षी उद्देश्य को लागू करने के लिए इसे आवश्यक है कि यह शक्तिशाली शिया नेता अयातोला अलीअल सिस्तानी के साथ अच्छे सम्बन्ध रखें जो शरियत के समर्थक हैं और यदि इराक में बहुमत से लोग शरियत को स्वीकार करतें हैं तो लोकतन्त्र की वकालत करने वाले –शायद ही उनकी इच्छाओं से इन्कार कर सकते हैं।
इराक पर विजय के उद्देश्य- इराक में गठबन्धन सेना के दीर्घगामी लक्ष्य और प्रतिक्रिया-वादी ,आक्रामक,शरियत को लागू करने या न करने के विषय पर यह गम्भीर वाद –विवाद है। दुर्भाग्यवश यह वाद- विवाद आरम्भ होने से पूर्व ही समाप्त हो गया। इराक ने गठ-बन्धन प्रशासकों के आशीर्वाद से निश्चित कर लिया है कि यहाँ इस्लामी कानून शासन –करेगा ।
वे इस निर्णय पर 1 मार्च को सांयकाल 4:20 पर पहुँचे जब शीर्ष गठबन्धन प्रशासकों की उपस्थिति में इराक की प्रशासन परिषद ने अन्तरिम संविधान के शब्दों पर सहमत हो गयी । संक्रमणकालीन प्रशासनिक कानून के नाम का यह अधिकारिक दस्तावेज 2005 में स्थायी संविधान के आने तक अन्तिम वैधानिक शक्ति होगा। परिषद के सदस्यों ने जोर दिया कि अन्तरिम संविधान में शरियत को एक स्रोत या इराक के कानूनों का स्रोत शरियत को बताया जाये। “एक स्रोत “ का अर्थ है कि कानून शरियत का विरोध कर सकते हैं जबकि स्रोत का अर्थ है कि ऐसा नहीं हो सकेगा। अन्त उन्होने शरियत को इराकी कानून का एक स्रोत माना ।
यह एक सफल समझौता प्रतीत होता है । जिसका अर्थ हुआ जैसा कि परिषद के सदस्यों ने विस्तार में वर्णित किया कि विधायका, इस्लाम के त्रिकालसत्य सिद्धातों का या अन्तरिम संविधान के अन्य अनुच्छेदों में गारन्टी के रुप में दिये गये स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के सिद्धान्त, स्वतन्त्र प्रेस, धार्मिक अभिव्यक्ति, एकत्र होने के अधिकार तथा एक स्वतन्त्र न्यायपालिका और कानून के भीतर समान बर्ताव का खण्डन नहीं करेगी । परन्तु दो कारणों से अन्तरिम संविधान को उग्रवादी इस्लाम की विजय का संकेत माना जा सकता है ।
प्रथम,समझौते से ऐसा प्रतीत होता है कि यद्यपि समस्त शरियत को लागू नही किया जायेगा परन्तु सभी कानूनों को इसकी सहमती में होना चाहिए। जैसा कि एक शरियत समर्थक स्रोत ने कहा, “ हमें वह मिल गया जो हम चाहते थे और वह यह कि ऐसा कोई भी कानून नहीं होगा जो इस्लाम के विरुद्ध हो । नया इराक सउदी अरब या ईरान तो नहीं होगा परन्तु इसमें इस्लामी कानून का महत्वपूर्ण भाग शामिल होगा ।“
दूसरा अन्तरिम संविधान तो केवल एक रास्ता है । इस्लामवादी निश्चित रुप से इसके उदारवादी प्रावधानों पर दबाव बनाकर प्रभावी रुप से शरियत को इराकी कानून का स्रोत बना लेंगे।अल सिस्तानी और वर्तमान प्रशासकीय परिषद के अध्यक्ष उन लोगों के साथ जो इस परिवर्तन के पक्षधर हैं अपने दृष्टिकोण के लिए दबाव डालते रहेगें। इराक के अग्रणी इस्लामवादी नेता मुक्तादा अलसद्र ने धमकी दी है कि यदि शरियत को स्रोत नहीं बनाया गया तो उनके समर्थक अपने शत्रुओं पर आक्रमण करेंगें और इराक में तेहरान समर्थक राजनीतिक दल ने भी सद्र की चेतावनी को प्रतिध्वनित किया है ।
जब इराक में अन्तरिम संविधान प्रभावी होगा तो उग्रवादी इस्लाम फलेगा- फूलेगा। आक्रमणकारी शक्तियों को अभूतपूर्व चुनौती का सामना करना पड़ेगा। उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि यह अधिनायकवादी विचारधारा इराक पर प्रभाव स्थापित न कर सके और बगदाद से दमन और आक्रा्रमकता का नया दौर आरम्भ न हो । जो भी सफलता उन्हें मलेगी उसका इराक, उसके पड़ोसियों और सुदूर के क्षेत्रों पर इसका प्रभाव होगा