कनाडा के एक खद्र मुस्लिम परिवार का ओसामा बिन लादेन के प्रति समर्पण और स्वयं को अल-कायदा परिवार का सदस्य बताना पश्चिम के लिये एक महत्वपूर्ण सबक है.
यह गाथा 1975 से आरम्भ होती है जब अल खद्र उपाख्य अहमद ने कनाडा के लिये अपने पैतृक स्थान मिस्र को छोड़ा और उसके पश्चात तत्काल एक फिलीस्तीनी महिला से विवाह रचाया. उसने ओटावा विश्वविद्यालय से कम्प्यूटर अभियान्त्रिकी का अध्ययन किया और बड़ी दूरसंचार फर्म के शोध में संलग्न हो गया. अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण के पश्चात खद्र ह्रयूमन कनसर्न इण्टरनेशनल की ओर से मानवता उद्धारक सेवा कार्य के लिये वहाँ गया जो वास्तव में उग्रवादी इस्लाम को प्रश्रय देता है. इस प्रदाय संगठन की स्थापना 1980 में ओटावा में हुई थी. अफगानिस्तान में अपने कार्य के दौरान खद्र की भेंट बिन लादेन से हुई और वह उसका निकट सहयोगी बन गया. किसी समय तो खद्र को कनाडा के अल-कायदा के कार्यकर्ताओं में उसे 75वां स्थान दिया गया.
कनाडा की संघीय सरकार ने अपने नौसिखियेपन का परिचय देते हुये ह्रयूमन कनसर्न में 325,000 डालर का योगदान दिया. विशेष रूप से 1988 से 1997 के मध्य एच.सी.आई ने कनाडा के करदाताओं के धन से आर्थिक सहायता प्राप्त की और अल-कायदा के साथ कार्य करता रहा. 1995 में पाकिस्तान में मिस्र दूतावास में विस्फोट में 18 व्यक्तियों के मारे जाने सम्बन्धी क्रियाकलाप के लिये एच.सी.आई के धन को अल-कायदा को दिये जाने के मामले में खद्र की गिरफ्तारी के बाद भी ओटावा की नौसिखिया नौकरशाही को खद्र में कुछ भी गड़बड़ नहीं लगा. इसके विपरीत कनाडा के प्रधानमन्त्री जीन चेट्रियन ने खद्र की ओर से पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री से भेंट के लिये राजकीय यात्रा की.
यह अस्वाभाविक कदम सफल रहा, खद्र को शीघ्र ही रिहा कर दिया और वह कनाडा लौट आया. 1996 में उसने और उसकी पत्नी ने Health and Educational Project International नामक इस्लामी प्रदाय गठित किया. कुछ महीनों पश्चात जब अफगानिस्तान में तालिबान ने नियन्त्रण स्थापित किया तो अभिभावक और छह सन्तानों ने वहाँ शिविर लगाया. बिन लादेन के साथ निकटता से कार्य करने वाला खद्र अपने उग्रवादी इस्लामी विचार के लिये जाना जाता है और उसकी पश्चिम विरोधी भावना पर अफगानिस्तान गये एक अग्रणी फ्रांसीसी व्यक्ति ने कहा, “ मैंने ऐसे किसी शत्रुवत विचार वाले को नहीं देखा था जो पश्चिम के इतना विरूद्ध हो”.
अल-कायदा के अन्य नेताओं की भाँति खद्र भी 11 सितम्बर के तत्काल बाद अदृश्य हो गया. दो वर्ष तक लुप्त रहने के बाद अक्टूबर 2003 में उसकी दुबारा पहचान हुई जब पाकिस्तानी सेना ने अनपेक्षित ढंग से पाया कि एक खूनी मुठभेड़ में एक पहचान न सकने योग्य मृतक के डी.एन.ए की पहचान खद्र से हुई. खद्र के परिवार में पत्नी, दो में से एक पुत्री और चार में से तीन पुत्रों की आतंकवादियों गतिविधियों से इस रिकार्ड को और बल मिलता है-
- पत्नी महा एलसामनाह अपने 14 वर्षीय पुत्र उमर को 2001 में पाकिस्तान ले गयी और उसका पंजीयन अल-कायदा प्रशिक्षण के लिये कराया.
- 23 वर्षीय पुत्री जेनाब का विवाह एक आतंकवादी से हुआ और अल—कायदा के सदस्य के इस विवाह में 1999 में ओसामा बिन लादेन स्वयं उपस्थित रहा. जेनाब ने 11 सितम्बर के आक्रमण का समर्थन किया और आशा व्यक्त की कि उसकी अबोध बालिका अमेरिका के विरूद्ध लड़ते हुये मारी जायेगी.
- 22 वर्षीय पुत्र अब्दुल्ला एक अल-कायदा भगोड़ा है जो पकड़ में आने से बचने के लिये इधर-उधर भाग रहा है. कनाडा की खुफिया एजेन्सियों का मानना है कि तालिबान काल में वह अफगानिस्तान में अल-कायदा का प्रशिक्षण शिविर चलाता था, हालांकि अब्दुल्ला ने इससे इन्कार किया है.
- 17 वर्षीय पुत्र उमर पर आरोप है कि जुलाई 2002 में उसने अफगानिस्तान में एक भीड़ में ग्रेनेड फेंककर एक अमेरिकी की हत्या कर दी थी. लड़ाई में उमर की एक आँख की ज्योति चली गयी और वह ग्वान्टेनामो में बन्दी है.
- 14 वर्षीय पुत्र अब्दुल करीम अक्टूबर 2003 में अपनी पिता की मृत्यु के मुठभेड़ में घायल होकर आधा लकवाग्रस्त हो गया है और इस समय पाकिस्तानी अस्पताल में एक बन्दी है.
सौभाग्य से एक सकारात्मक कहानी भी है -
- 21 वर्षीय पुत्र अब्दुर्रहमान अपनी इच्छा के विपरीत अल-कायदा द्वारा प्रशिक्षित किया गया और नवम्बर 2001 में गठबन्धन सेना द्वारा पकड़े जाने के बाद काबुल, ग्वान्टेनामो और बोस्निया में केन्द्रीय खुफिया एजेन्सी के लिये कार्य करने को राजी हो गया. अक्टूबर 2003 मे कनाडा वापस लौटने के बाद उसने अतिवाद और अपने परिवार के आतंकवादी रास्तों को अस्वीकार किया.
यद्यपि यह एक अस्वाभाविक मामला है परन्तु खद्र के परिवार का खौफनाक इतिहास हमारे लिये एक चेतावनी है जो उत्तरी अमेरिका और यूरोप में मुस्लिम अभिभावकों के फिलीस्तीनी तर्ज पर उग्रवादी इस्लामी लहरों में डूबने की ओर संकेत करता है और वे अपने बच्चों को अपने ही देश के विरूद्ध उग्रवादी इस्लामी हथियार के रूप में तैयार कर रहे हैं.
अभी यह परिपाटी दुर्लभ है परन्तु जैसे-जैसे पश्चिम में इस्लामवादियों की दूसरी पीढ़ी अपनी अवस्था को प्राप्त होगी यह काफी व्यापक हो जायेगी. खद्र के इस मामले में और अन्य मामलों में भी उग्रवादी इस्लामी आन्दोलन में स्कूल, प्रेस और सामाजिक जीवन अलग-थलग है. ऐसे आत्म विलगाव को रोकने के लिये समस्त पश्चिम में एक नीति होनी चाहिये.