एक माह के भीतर ही इजरायली सेना द्वारा अपने दूसरे शीर्ष नेता के मार गिराये जाने के बाद भी इस्लामवादी आतंकवादी संगठन हमास ने काफी साहस का प्रदर्शन किया है. अब्दुल अजीज रन्तीसी के अन्तिम संस्कार के अवसर पर एकत्रित 70,000 शोकाकुल लोगों को सम्बोधित करते हुये इस्माइल हानियेह ने घोषणा की कि यदि इजरायल के लोग सोचते हैं कि इससे हमास कमजोर होगा तो यह उनका स्वप्न है. हानियेह ने जोर देते हुये कहा कि जितनी बार किसी का बलिदान होता है हमास उतना ही सशक्त होता है.
इस प्रकार उत्साह बढ़ाने वाली झूठी प्रशंसा फिलीस्तीनियों के मध्य आम बात है. अन्तिम बार जब मई 2002 में इजरायली सेना ने फिलीस्तीनी युद्ध शक्ति को घातक क्षति पहुँचाई थी तो हमास के खालिद मासेह ने घोषणा की थी कि इजरायल द्वारा पहुँचाई गई क्षति तो वास्तव में फीलीस्तीनियों की विजय है क्योंकि इस विनाश से उनका मनोबल ऊँचा हुआ है. फिलीस्तीनी अथारिटी के यासर अराफात ने भी इसी माह दावा किया कि जितनी बार वे विनाश देखते हैं उनका इरादा और मजबूत होता है.
ये नेता पराजय को विजय का नाम देकर भले ही स्वयं को मूर्ख बना रहे हों परन्तु बहुत से फिलीस्तीनी युद्ध में पराजय के कटु सत्य को अनुभव कर रहे हैं. उनकी इस धारणा को फरवरी 2001 से बल मिलने लगा है जब प्रधानमन्त्री एरियल शेरोन ने इस तथ्य को स्थापित करने की ठानी कि इजरायल के विरूद्ध हिंसा की नीति अब काम नहीं कर रही है. इसके परिणामस्वरूप फिलीस्तीनी जनजीवन काफी गहराई तक प्रभावित हुआ है. पश्चिमी तट के 5,000 निवासियों वाले एक कस्बे के नागरिक ने लन्दन की टाइम्स पत्रिका को बताया कि किस प्रकार उसका कस्बा शेष विश्व से और यहाँ तक कि कुछ गाँवों से भी अलग-थलग हो गया है. सायंकाल 6 बजे तक सभी को अपने घर में होना होता है तथा इजरायली गश्ती दल प्रतिदिन जाँच करता है.
इस प्रकार लम्बे समय तक अलग-थलग रहने से तेजी से आर्थिक पतन हुआ है. विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार फिलीस्तीनी अथारिटी के नवीनतम सर्वेक्षण में पाया गया है कि 84 प्रतिशत फिलीस्तीनी जनसंख्या गरीबी में निवास कर रही है जो कि 2000 में आरम्भ हुये आर्थिक पतन के बाद चार गुना अधिक है. फिलीस्तीनी अथारिटी की जनसंख्या 3.5 करोड़ है और उनकी अर्थव्यवस्था 25 बिलियन डालर प्रतिवर्ष उत्पन्न करती है जिसके अनुसार प्रतिव्यक्ति आय 700 डालर प्रतिवर्ष है.
2003 में विश्व बैंक के एक अध्ययन ने पाया कि फिलीस्तीनी अथारिटी में सन् 2002 में निवेश 140 मिलियन डालर ही रह गया जो 1999 में 15 बिलियन डालर था. संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2003 में निष्कर्ष निकाला कि फिलीस्तीनी पहले की भाँति कुछ आधुनिक कार्य करने के स्थान पर अपने लिये कृषि कार्य कर भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं. इस स्थिति पर टिप्पणी करते हुये संयुक्त राष्ट्र के इस क्षेत्र के विशेष दूत तेर्जे रोयड लार्सेन ने फिलीस्तीनी अर्थव्यवस्था को विनाशकारी बताया.
( ऊपर कही गई बात को बढ़ाचढ़ाकर प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिये. फिलीस्तीन को प्रतिवर्ष 800 मिलियन डालर की आर्थिक सहायता प्राप्त होती है, जिससे उनकी प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति आय 1,000 डालर बनती है जो कि सीरिया के समान है तथा भारत और उप सहार देशों से भी बढ़कर है. इस प्रकार फिलीस्तीनी लोग किसी भी प्रकार विश्व के सबसे गरीब लोगों की श्रेणी में नहीं आते)
एक शब्द में कहें तो शेरोन की कठोर नीति ने स्थापित कर दिया है कि आतंकवाद से फिलीस्तीनी हितों को इजरायल से अधिक क्षति हुई है. इससे इजरायल के प्रति शत्रुता का भाव रखने वाले कुछ विश्लेषकों को भी निष्कर्ष निकालने पर विवश होना पड़ा है कि, “ दूसरा इन्तिफादा” भयंकर भूल थी. अल कद्स विश्वविद्यालय के अध्यक्ष सारी नुसीबेह ने हिंसा को अनियन्त्रित बताया. पत्रकार ग्राहम उसर ने इसे भयंकर विनाश कहा तो एक अन्य अरब कूटनयिक ने इसे फिलीस्तीनी लोगों के विरूद्ध अपराध बताया.
पिछले महीने अहमद यासीन को मौत के घाट उतारे जाने के बाद फिलीस्तीन के 60 प्रमुख लोगों ने एक समाचार पत्र में विज्ञापन के माध्यम से लोगों से संयम बरतने की अपील करते हुये कहा कि हिंसा से इजरायल को बदले की कार्रवाई का मौका मिलेगा जो कि स्वतन्त्र फिलीस्तीन के स्वप्न को पूरा नहीं होने देगा. इसके अतिरिक्त अपील पर हस्ताक्षर करने वालों ने शान्तिपूर्ण, विवेकपूर्ण इन्तिफादा का अनुरोध किया.
अब आम फिलीस्तीनी समझने लगे हैं कि इजरायल के लोगों को मारने से उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला है. एक अल्मूनियम स्टोर के मालिक 25 वर्षीय महार तरहीर ने कहा कि तीन वर्ष हमने नष्ट किये हैं और इस हिंसा से हमें कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है. नाइट राडार की रिपोर्टर सीराया सरहद्दी नेल्सन का मानना है कि फिलीस्तीनी आन्दोलन को आगे बढ़ाने वाले योद्धा भाव का स्थान क्रोध और भ्रम ने ले लिया है.
जहाँ तक इजरायल के लोगों का प्रश्न है तो 2003 में इजरायल के सैन्य अधिकारियों ने निष्कर्ष निकाल लिया था कि इजरायल विजय प्राप्त कर रहा है. उसके बाद इजरायली विश्लेषक अशर सुसेर ने अत्यन्त तीक्ष्ण निष्कर्ष निकालते हुये मडिल ईस्ट क्वारटर्ली में कहा कि , “ आतंक के द्वारा इजरायल के मनोबल को तोड़ने का फिलीस्तीनी प्रयास विफल रहा तथा शक्ति का सहारा लेना फिलीस्तीनियों की 1948 के बाद की अब तक की सबसे बड़ी भूल थी ”
इस सन्दर्भ में इजरायल द्वारा हमास के दो शीर्ष नेताओं को जल्दी-जल्दी समाप्त करने से फिलीस्तीन की यह अवधारणा और पुष्ट हुई कि स्वयं की रक्षा करने में इजरायली इच्छा शक्ति , सैन्य शक्ति अत्यन्त सशक्त है तथा आतंकवाद की रणनीति गलत है. जैसे-जैसे समय बीतेगा फिलीस्तीनी यहूदी राज्य के अस्तित्व को स्वीकार करेंगे