तिकरित नामक छोटे से शहर के एक छोटे फार्म हाउस में जब एक कब्रगाह जैसे छेद में मिट्टी और ईंट से सने सद्दाम हुसैन निकाले गये तो उस समय एक और इराकी कथा का स्मरण हो आया जो इराकी अधिकारियों से छिपकर भूमिगत हो गया था। यह इराकी दक्षिण पूर्व बगदाद के करादा का 45 वर्षीय जवाद आमिर सईद है।
वह आश्चर्यजनक ढ़ंग से अपने परिवार की रसोई के नीचे एक कोठरी में 21 वर्षों तक भूमिगत रहा। 2 दिसम्बर 1981 में वह इस कोठरी में गया तो सद्दाम हुसैन के शासन की समाप्ति के एक दिन बाद 10 अप्रैल 2003 को ही बाहर आया।
सईद पूरी दुनिया की नजरों से इस कारण अदृश्य हो गया क्योंकि वह सद्दाम की सेना से भाग गया था और विरोधी स्वरों का समर्थन किया था। मृत्युदण्ड के भय से एक के बाद एक कंक्रीट निर्माण करते हुये उसने आधे मीटर का भूमिगत कमरा बना लिया। इस स्वनिर्मित कालकोठरी को बांस के ऊपर नुकीली पत्ती, एक बांस के पंखे, केतली, स्टोव, टूथब्रश और घड़ी को रखने वाले हुकों के सहारे व्यवस्थित किया था। कोठरी के ऊपर एक छोटे से छेद से सूर्य के प्रकाश की व्यवस्था की गई थी। वह एक छोटे से कुँए से पानी निकालता और संक्षिप्त शौचालय का प्रयोग करता।
उसकी माता से उसका सम्पर्क उन वर्षों में एक दरवाजे से बना हुआ था। वह हेडफोन के द्वारा बीबीसी की अरबी सेवा के माध्यम से विश्व गतिविधियों की जानकारी रखता था। पहली बार मुक्त होने की आशा उसे तब बँधी जब 11 सितम्बर 2001 के तत्काल बाद राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने अपने भाषण में घोषणा की कि विश्व के समस्त आतंकवादियों को मार गिराया जायेगा। ‘अगली बार मेरा माता जब मेरे लिये भोजन लेकर आई तो मैंने पूरे विश्वास के साथ उससे कहा कि सद्दाम अब अधिक दिनों तक बच नहीं सकेंगे’। सद्दाम के पतन के एक दिन बाद ही सईद अपने छिपने के स्थान से बाहर आ गया।
शनिवार की रात को सद्दाम के पकड़े जाने की घटना के साथ इस कथा का प्रतीकात्मक महत्व है। जब सद्दाम हुसैन ने अपनी भूमि पर एक क्रूर और आत्यन्तिक तानाशाह के रूप में शासन किया तो एक युवक दो दशकों तक कब्रगाह में छिपा रहा। जैसे ही अमेरिका नीत गठबन्धन ने देश को मुक्त कराया वैसे ही एक क्रूर शासक अपने महल को छोड़कर अधिकारियों से बचने के लिये एक कब्रगाह की खोज करने लगा और अब नवयुवक नहीं रहे इस व्यक्ति को अपनी कोठरी से बाहर आकर सूर्य के प्रकाश को देखने का अवसर मिला।
कब्रगाह छोड़ते समय दोनों की भावनाओं में अन्तर ध्यान देने योग्य है- अमेरिकी सेना ने सद्दाम का वर्णन एक ऐसे व्यक्ति के रूप में किया जो थककर अपने भाग्य के समक्ष नतमस्तक हो गया जबकि सईद ने लन्दन के डेली टेलीग्राफ में अपने बारे में कहा कि उसकी झुकी हुई और पक्षी आकार की संरचना उत्साह से फैल रही है। “जब पहली बार मैंने कोठरी में शरण ली थी तब मैं युवा था अब मैं वृद्ध हो चुका हूँ परन्तु मुझे अनुभव होता है कि मुझमें एक युवा की ऊर्जा आ गई है और कोई भी ऐसा दिन नहीं है जब मुझे स्वतन्त्रता के फल का स्वाद चखने का अवसर नहीं मिल रहा हो”।
संक्षेप में यह कथा अमेरिका नीत आक्रमण की जबर्दस्त नैतिकता की ओर संकेत करती है जिसका प्रतीक यह तथ्य है कि अप्रैल 2003 को जब निर्दोष इराकी स्वतन्त्र होकर इधर-उधर विचरण कर सकते थे तो सद्दाम और उसके लग एक बिल से दूसरी बिल को ढ़ूँढ रहे थे।
व्यापक ऐतिहासिक सन्दर्भ में देखें तो इराकी प्रकरण पिछले 60 वर्षों में अधिनायकवादी शासन समाप्त करने और आवश्यक क्षेत्रों में स्वतन्त्रता और शालीनता लाने में अमेरिकी भूमिका पर प्रकाश डालता है। यह सूची काफी लम्बी है और पश्चिमी यूरोप के प्राय: सभी देशों को एक बार नाजियों और दूसरी बार कम्युनिस्टों से बचाया गया। इसमें पूर्व सोवियत संघ के सभी राज्य और उपग्रह भी आते हैं जो अमेरिका के साथ अपनी प्रतिद्वन्द्विता जारी न रख पाने के कारण धराशायी हो गये। इस सूची में पूर्वी एशिया के देश भी आते हैं जिन्हें जापानी साम्राज्यवाद से बचाया गया। इसमें इराकी आक्रमण से बचाया गया कुवैत भी शामिल है। एक क्षेत्र वियतनाम जहाँ अमेरिका युद्ध हार गया वहाँ अब भी अधिनायकवादी शासन विद्यमान है।
संक्षेप में 1940 से प्रबोधन आत्महित का अनुसरण करने में अमेरिकी सरकार की नीतियों में भले ही दोष रहा हो परन्तु विश्व के अनेक क्षेत्रों को इसने मुक्त कराया है। या फिर अपनी कब्रगाह से बसन्त में बाहर आने वाले जवाद आमिर सईद के शब्दों में “ मुझे लगता है कि अल्लाह ने स्वयं श्रीमान बुश के माध्यम से ऐसा किया है। यदि मैं बुश से मिला तो मैं कहूँगा धन्यवाद, आप अच्छे व्यक्ति है, आपने मुझे मृत्यु से वापस बुला लिया” ।
ये शब्द अतिशयिक्तोतिपूर्ण हो सकते हैं, परन्तु अमेरिका प्रति उसका कृतज्ञता का यह भाव वह है जो हजारों लाखों व्यक्तियों के मन में एक समय था।