मेरे हाल की अपील की पश्चिमी राज्यों को मुसलमानों को प्रोत्साहित करना
चाहिए पर एक पाठक ने इसे मिथ बताया है लेकिन एक पाठक ने मिथक के रुप में उनके अस्तित्व को अस्वीकार किया है और कहा है कि अभी भी गैर-मुसलमान नरमपंथी मुसलमानों के उठ खड़े होने और परिणाम देने की प्रतिक्षा कर रहे हैं ताकि वे कट्टरपंथियों की पहचान कर अपने समुदाय से और मस्जिदों से उन्हें निकाल सकें ।
यह एक वैध संशय है और तर्क संगत मांग है । पाकिस्तान और तुर्की में घटित हाल की घटनाओं से सिद्ध होता है कि नरमपंथी मुसलमान कोई मिथ नहीं है ।
पाकिस्तान में 15 अप्रैल को पाकिस्तान के बड़े शहरों में एक कराची में अनुमानत : एक लाख लोगों ने इस्लामाबाद की एक शक्तिशाली मस्जिद लाल मस्जिद द्वारा शरीयत कानून के नाम पर समानान्तर इस्लामी कानून व्यवस्था स्थापित करने का विरोध करते हुए “कट्टरपंथ को ना “ जैसे नारों की गर्जना की । मुत्तहिदा कौमी मूलमेंट के नेता अल्ताफ हुसैन ने घोषणा कि “हम धार्मिक आतंकवाद और धार्मिक कट्टरवाद का कड़ा प्रतिवाद करेंगे “
तुर्की में दस लाख से अधिक मुसलमानों ने जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी द्वारा गणतंत्र के राष्ट्रपति पद को हासिल कर दो शीर्ष सरकारी पदों पर इस पार्टी के नियंत्रण का विरोध करते हुए विरोध प्रदर्शन किया ( इससे पहले प्रधानमंत्री पद पर इस पार्टी के नेता रिसेप तइब एयरडोगन विराजमान हैं )
पहला विरोध प्रदर्शन 14 अप्रैल को राजधानी अंकारा में अतातुर्क थॉट असोशिएसन के अध्यक्ष और पूर्व जनरल सेनेर इर युगूर द्वारा आयोजित किया गया । अनुमानत: तीन लाख नरमपंथी मुसलमानों ने अपने हाथ में इस गणतंत्र के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क के बैनर उठा रखे थे और “ हम इमाम को राष्ट्रपति नहीं चाहते .” “हमें आस्था पर विश्वास है पर हम कट्टरपंथ नहीं चाहते..”
तथा “ तुर्की सेक्यूलर है और सेक्यूलर ही रहेगा जैसे नारे लगा रहे थे .”। एक किसान बुलेंट कुरुसु ने जोर देते हुए कहा कि भीड़ धार्मिक कट्टरपंथ से अपने गणतंत्र को बचा रही है ।
इसी प्रकार को दूसरा विरोध प्रदर्शन 29 अप्रैल को इस्ताम्बूल में हुआ और दावा किया गया कि इस प्रदर्शन में 7 लाख नरमपंथी मुसलमानों ने भाग लिया ।
5 मई को पश्चिमी अनातोलिया के शहरों मानिसा , कनाकेल और मारमारिस में छोटे प्रदर्शन हुए ।
जस्टिस पार्टी के इस्लामवादियों का विरोध करने में जनता अकेली नहीं है । राष्ट्रपति अहमद नेसदेथ सेजेर ने चेतावनी दी कि 1923 में स्थापना के बाद पहली बार इस सेक्यूलर गणतंत्र के आधार स्तंभ पर खुले रुप में प्रश्न चिन्ह लगा है और नरम इस्लामी राज्य को थोपे जाने के विरुद्ध वे खुलकर बोले और भविष्यवाणी कि की इससे राज्य कट्टरपंथ में परिवर्तित हो जाएगा । विपक्षी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के उपसभापति ओनोर ओयमन ने सतर्क किया कि जस्टिस पार्टी के राष्ट्रपति पद ग्रहण करने से सारा संतुलन बिगड़ जाएगा और इससे बड़ी खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो जाएगी । तुर्की की अंतिम सत्ता दलाल सेना ने इस धारणा को पुष्ट करते हुए दो बयान जारी किए । 12 अप्रैल को चीफ ऑफ स्टाफ मोहम्मद यासर ग्रोयू कानिद ने आशा व्यक्त कि की राष्ट्रपति के रुप में उसी व्यक्ति का चुनाव होगा जो गणतंत्र की भावना को उसी रुप में स्वीकार करता होगा न केवल शब्दों में । दो सप्ताह पश्चात् सेना के तेवर आपातिक हो गए और उनकी ओर से घोषणा की गई कि “तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव में घोषणा कि गई कि तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव पर सैन्य बलों की निगाह है और यह अपना संकल्प व्यक्त करती है कि सेक्यूलर सिद्धांतो की रक्षा के लिए यह अपने कर्तव्य का पालन करेगी.”
पश्चिम के संकेतरहित होने से तुलना करने पर तुर्की के नरमपंथी मुसलमानों का यह संकल्पित कदम अधिक ध्यान देने योग्य है विशेषकर जस्टिस पार्टी के उत्थान पर ।
वालस्ट्रीट जरनल के एक संपादकिय में आश्वासन दिया गया है कि तुर्की के प्रधानमंत्री की लोकप्रियता सक्षम और स्थिर सरकार देने के कारण बनी है । राष्ट्रपति सेजेर और अन्य द्वारा उठाए गए ऐतिहासिक गंभीर संकट को एयरड्रोगन के संबंध में भय मुक्त मानसिकता बताकर इसे निरस्त करते हुए जस्टिस पार्टी विरोधी मत प्राप्त करने और समस्त विपक्ष को जीवित करने की मुहिम बताया है । तुर्की में अमेरिका के पूर्व राजदूत बोरटन अब्रामोरिज का आकलन है कि यदि एयरड्रोगन जल कर भी चलने लगे तो भी सेक्यूलर वादी उन पर विश्वास नहीं करेंगे ।
यूरोपिय संघ के विस्तार आयुक्त पोलीरेन ने तुर्की सेना को आदेश दिया कि वे राष्ट्रपति पद को लोकतांत्रिक पद्धति से निर्वाचित सरकार के हाथ में और अपने राजनीतिक मालिकों के सम्मान की इस परीक्षा में खऱे उतरें । बाद अमेरिका ने भी इसे मान्य किया । क्या इससे प्रतित नहीं होता कि यहां नरमपंथी मुसलमान खतरा अनुभव कर रहे हैं वहीं अनेक गैर – मुसलमान अंधे बने हैं । क्या पाकिस्तान और तुर्की में घटित घटनायें मेरे बारंबर कहे गए इस बिंदु को पुष्ट नहीं करतीं कि कट्टरपंथी इस्लाम समस्या और नरमपंथी इस्लाम समाधान है । और क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि गैर-मुस्लिम व्यस्त लोग उन नरमपंथी मुसलमानों के रास्ते से हट जायें जो इस्लामवाद को इतिहास के कूड़ेदान की उसकी नियति प्रदान करना चाहते हैं ।