1923 में तुर्की गणतंत्र की स्थापना के बाद से इसके समक्ष उत्पन्न सबसे बड़ी चुनौती के मध्य इस सप्ताह मैंने इस्ताम्बूल की यात्रा की ।
ओटोमन साम्राज्य के भग्नावशेष पर मुस्तफा कमाल अतातुर्क द्वारा निर्मित इस गणतंत्र का अस्तित्व तब सामने आया था जब पश्चिमी विश्व का आत्मविश्वास अपनी अधिकतम सीमा पर था और ऐसा प्रतित होता था कि यूरोपिय रास्ता वैश्विक प्रतीक बन जाएगा । अतातुर्क ने अनेक भ्रामक सुधारों को लागू किया जिसमें यूरोपिय कानून , लैटिन वर्णमाला , ग्रेगेरियन कैलेण्डर , व्यक्तिगत् अंतिम नाम , तुर्की टोपी के स्थान पर हैट , रविवार को विश्राम का दिन बनाना , अपने मूल जाति स्थान को बताने पर प्रतिबंध , अल्कोहल पीने का विधिक अधिकार और तुर्की को सामान्य उपासना की भाषा बनाना शामिल हैं ।
अनेक सुधारों ने अपनी जड़े जमा लीं लेकिन अरबी लिपी या अंतिम नाम की उपेक्षा की ओर मुड़े तो लगता है कि देश पहले ही इस्लामी मार्ग की ओर लौट गया है । विद्यालयों में धार्मिक आज्ञायों की वृद्धि ने राज्य प्रायोजित मस्जिदों के साथ मिलकर ऐसा वातावरण बनाया कि अधिक महिलाएं सिर ढंकने लगीं ।
इस विकास के पीछे अनेक तत्व उत्तरदायी हैं । अतातुर्क की अतिवादिता के विरुद्ध प्रतिक्रिया , तुर्की का अधिक लोकतंत्रीकरण जिससे सामान्य जनता को स्वयं को अधिक से अधिक व्यक्त करने का अवसर मिला । अनातोलिया वासियों की भू जनांकिकी दर में वृद्धि जो अतातुर्क के सुधारों के प्रति ठंढे थे और 1970 के मध्य में इस्लामवादियों का उभार इसके उत्तरदायी तत्व थे । इस उभार के परिणामस्वरुप संसद में इस्लामी प्रतिनिधित्व पर्याप्त मात्रा में बढ़ा । 1960 में इसने एक सीट से आरंभ किया था लेकिन तुर्की में मतदाताओं के बीच लोकप्रियता के चलते आज यह दो तिहाई बहुमत म ें आ गए हैं । इस्लामी दलों ने दो बार प्रधानमंत्री पद पर नियंत्रण स्तापित किया . पहले 1966 -67 में और फिर 2002 से अबतक ।
पहली बार सशक्त व्यक्तित्व और स्पष्ट इस्लामवादी कार्यक्रम के द्वारा नेस मेटिन एरबाकन को सफलता मिली जिन्हें अतातुर्क की पंरपरा की संरक्षक सेना ने एक वर्ष के भीतर ही सत्ता से बाहर कर दिया । एरबाकन के पतन के उपरांत उनके पूर्व सहयोगी रिसेब तईब एयरडोगन ने जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी की स्थापना की जो वर्तमान समय में सत्ताधारी दल है ।
1966 -67 की शर्मनाक असफलता से सबक लेते हुए एयरडोगन और उनकी टीम ने इस्लामीकरण के संबंध में अत्यंत सतर्कता बरती , उन्होंने शासन , अर्थव्यवस्था , यूरोपिय संघ , साइप्रस तथा अन्य मामलों के संबंध में अत्यंत परिपक्वता दिखाई लेकिन पिछले महीने गणतंत्र के संचालन के लिए उन्होंने अपने निकट सहयोगी अब्दुल्ला गुल को राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रुप में चयनित किया , तेजी से चले घटनाक्रम में गुल को आवश्यक मत प्राप्त नहीं हुआ , संविधान न्यायालय ने निर्वाचन को शून्य घोषित कर दिया , लाखों सेक्यूलर वादी सड़कों पर उतर आए , सेना ने तख्ता पलट के संकेत दिए और एयरडोगन ने संसद भंग कर दी । अब जल्द ही संसद और राष्ट्रपति का निर्वाचन होना है ।
अनेक प्रश्न सामने हैं, क्या जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी को फिर से बहुमत की संख्या में सीटें प्राप्त होंगी ? इसमें असफल रहने पर क्या वह शासन संचालक गठबंधन का निर्माण कर पाएगी ? सबसे मूलभूत प्रश्न है कि इस पार्टी के नेतृत्व की मंशा क्या है ? क्या यह एयबाकन की दशा देखने के बाद भी गोपनिय तरीके से इस्लामवादी एजेंडे को धारण किए है और इसे छिपाना सीख लिया है या फिर इसने उन उद्देश्यों का परित्याग कर सेक्युलरिजम् को स्वीकार कर लिया है ?
इस नेतृत्व की मंशा के संबंघ में कयास ही लगाए जा सकते हैं । 2005 के मध्य में तुर्की की अपनी यात्रा के उपरांत मैंने इस बारे में निष्कर्ष निकाला कि इस बात के उत्तर में कि क्या जस्टिस पार्टी का कोई छिपा एजेन्डा है , दोनों संभावनायें हैं ।
दो वर्ष उपरांत तुर्की की यात्रा के बाद मुझे स्थिति फिर वैसी ही लगी । केवल आंकड़े अधिक हैं जिनकी समीक्षा और व्याख्या हो सकती है ।
प्रत्येक तुर्क को जस्टिस पार्टी के लिए अपने संबंध में और विदेशी सरकारों के संबंध में आकलन करना चाहिए । जनमत सर्वेक्षण दिखा रहे हैं कि तुर्की के मतदाता अभी भी अनिश्चय की स्थिति में हैं जबकि एयरडोगन के पक्ष में विदेशी नेता हैं . कांउसिल ऑफ यूरोप ने सैन्य हस्तक्षेप की निंदा की है । अमेरिका की राज्य सचिव कॉन्डोलिज़ा राइस ने इससे भी आगे बढकर तुर्की को यूरोप की ओर ले जाने और व्यक्तिगत और धार्मिक स्वतंत्रता के संबंध में तुर्की को यूरोप के कानूनों के समकक्ष लाने के लिए जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी की प्रशंसा की लेकिन उनके वक्तव्य में जस्टिस पार्टी के उन प्रयासों की अवहेलना की गई है जिसके अनुसार व्याभिचार को आपराधिक दर्जा देना , अल्कोहल मुक्त क्षेत्र घोषित करना , सेक्यूलर अदालतों पर शरीयत अदालतों का विशेषाधिकार , गंदे धन पर निर्भरता , धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपात तथा राजनीतिक विरोधियों का उत्पीड़न । इसके अतिरिक्त यूरोपिय संघ की सदस्यता से जस्टिस पार्टी को एक लाभ भी मिला है और तुर्की की कट्टर सेक्यूलर सैन्य नेतृत्व की राजनैतिक भूमिका कम कर दी गई है और इसके विपरीत इस्लामी कानून लागू करने का मार्ग खुल गया है ।क्या जस्टिस पार्टी की सतर्कता सैन्य अधिकारियों की निष्क्रियता के बाद भी जारी रहेगी ?
अंत में सचिव राइस ने अमेरिका तुर्की संबंधों में जस्टिस पार्टी द्वारा बढाए गए तनाव को भी नज़रअंदाज किया है । लेकिन सरसरी तौर पर किए गए उनके विश्लेषण का अनजाने में एक लाभ भी हुआ है । आजकल तुर्की में सशक्त अमेरिका विरोध के चलते जस्टिस पार्टी को दिया गया अमेरिकी समर्थन इसके मतों के खोने का कारण बनेगा । वाशिंगटन को जस्टिस पार्टी को सशक्त करने के स्थान पर अपने स्वाभाविक सहयोगी सेक्यूलरवादियों के साथ खड़ा होना चाहिए ।