1787 में फिलाडेल्फिया में संविधान सभा समाप्त होने पर जब बेन्जामिल फ्रैकलिन से पूछा गया कि यह राजतन्त्र है,,या गणतन्त्र तो उन्होंने उत्तर दिया, गणतन्त्र यदि तुम इसे संभाल सको, ।
उनका यह निराशावाद मस्तिष्क में तब – तब कौंधता है जब कोई गणतन्त्र भयानक भूल करता है चाहे 1930 में जर्मनी के प्रति फ्रांस की तुष्टीकरण की नीति हो,वियतनाम में अमेरिका की वेतन ब़ढाने की हो या फिर वर्तमान समय में दक्षिण कोरिया द्वारा चलाई जा रही सूर्योदय नीति हो ।
पिछले सप्ताह गुरूवार को फ्रैंकलिन की यह चिन्ता उस समय और प्रासंगिक हो गई जब इजरायल ने विश्व के एक अग्रणी आतंकवादी संगठन हिजबुल्लाह के साथ एक असाधारण आदान – प्रदान किया ।
किसी संदिग्ध लेन – देन में एक दुष्ट इजरायली नागरिक और तीन सैनिकों के बदले इजरायल ने 400 फिलीस्तीनी, 23 लेबनानी, पाँच अन्य अरबी, एक जर्मन तथा 59 पुलिसवालों सहित 429 जीवित आंतकवादियों को रिहा कर दिया।
न्यूयार्क टाइम्स के इस विवरण को जानकर कुछ आश्चर्य हुआ कि इस आदान – प्रदान से लेबनान में राष्टीय विजयोत्सव का वातावरण रहा जब कि इजरायल में काफी चिन्ता का वातावरण रहा। यह सुनकर कुछ भी आश्चर्य नही हुआ कि इजरायल के प्रधानमन्त्री ने इसे खुशी का क्षण नहीं कहा ।
शेरोन ने मृत इजरायली सैनिकों के रिश्तेदारों का संन्दर्भ देते हुए इस आदान – प्रदान के आशय की व्याख्या करने का प्रयास किया तीन परिवारों को जिन्हें पिछले 40 महीनों से कोई विश्राम नही मिला वे अब एक कब्र पर अपने समस्त दुख के साथ एकत्र हो सकेगें और एक भारी कीमत चुकाने के बाद भी जो वचन दिया गया था उसके अनुपालन में एक सही और नैतिक निर्णय लिया गया ।
दूसरे शब्दों में तीन परिवारों की छोटी सी सन्तुष्टि के लिये राज्य का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। परन्तु नैतिक से दिखने वाले इस निर्णय के इजरायल के लिए क्या परिणाम होने वाले हैं –
429 में से अधिकांश या कुछ पुनः हिंसा के अभियान की चिन्गारी लगाते हुए इजरायल के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होगें। ऐसा पहले भी हो चुका है जैसा कि रायटर्स ने बताया कि 1985 में तीन लापता सैनिकों के बदले इजरायली सरकार ने 11,000 फिलीस्तीनियों को सौंपा। 700 अरबवासियों को अधिकृत क्षेत्र में रहने की अनुमति मिली जिनमें से 1987 में फिलीस्तीनी उत्थान के समय अनेक नेता भी बने ।
यह असन्तुलित समझौता इजरायल के शत्रुओं को संकेत देता है कि वे इजरायल के एक नागरिक को बन्धक बनाकर उससे भारी लाभ उठा सकते हैं। फिलीस्तीनी मीडिया वाच के इतमार मार्कस ने अनेक फिलीस्तीनी वक्तव्य संकलित किये हैं जो इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं । फतह के सैन्य विभाग ने हिजबुल्लाह के पद चिन्हों पर चलने की आवश्यकता जताई ताकि सभी बन्दियों को रिहा कराया जा सके । हमास के एक नेता को इस समझौते से यह बात पुष्ट होती दिखी कि आतंकवाद में भूमि और लोगों को स्वतन्त्र कराने की क्षमता है। एक समाचार पत्र ने हिजबुल्लाह की इस बात के लिए सराहना की कि हिजबुल्लाह ने इजरायल और फिलीस्तीन के मध्य राजनीतिक समाधान के दौरान कैदियों के परिजनों की आशा के बन्द द्वार खोल दिये
इजरायल की प्रतिष्ठा और को गिरे हुए मनोबल के इस संकेत से भारी क्षति हुई है। इस अदान – प्रदान पर इरान के सर्वोच्च नेता अली खोमैनी ने कहा कि यह प्रमाण है कि इस्लाम के मुजाहिदीनों की आस्था और जबर्दस्त इच्छा शक्ति से दुष्ट यहूदी शासन को परास्त किया जा सकता है ।
शेरोन सरकार ने आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में अपने सहयोगियों को भी निराश किया है –
.बन्धक बनाना अब कही अधिक प्रभावी रणनीति दिख रही है जैसी यह एक सप्ताह पूर्व नही थी। यदि इजरायल के विरुद्ध यह सांकेतिक विजय लेबनान में इस्लामवादियों को प्राप्त हो सकती है तो उनके वैचारिक साथी इसका प्रयोग इराक में अमेरिका के विरुद्ध,मास्को में रूस के विरुद्ध और कश्मीर में भारत सरकार के विरुद्ध करेगें ।
आतंकवादियों की प्रत्येक सफलता चाहे वह स्थानीय ही क्यों न हो अन्तर्राष्टीय रूप में भी प्रतिध्वनित होगी।
अतंकवादियों के साथ निपटने कि नैतिक स्थिति में गिरावट आई है। यदि इजरायल के लिए सैकडों अतंकवादियों को छोडना स्वीकार्य हो सकता है तो अन्य देशों के लिए क्यों नहीं ।
इन नकारात्मक प्रभावों से इजरायली सरकार के कार्य की नैतिकता पर प्रश्न उठता है ।
आरम्भिक दशकों में इजरायल की रणनीतिक विशेषज्ञता युगान्तकारी थी जिसने एक कमजोर देश को क्षेत्रीय शाक्ति केन्द्र के रूप में परिवर्तित कर दिया था पिछले दशक में यही प्रक्रिया उलट गई जहाँ इस शाक्ति केन्द्र ने स्वयं को लक्ष्य बनाने को आतुर केन्द्र के रुप में गिरा दिया है। यह परिवर्तन पूरी तरह आत्मप्रलोभित है जिसे लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के द्वारा प्राप्त किया गया है और इसने बेन्जामिन फ्रैन्कलिन की चिन्ता को वास्तविक सिद्ध कर दिया है। यह पतन कब रुकेगा, और कब तक कितनी क्षति हो चुकी होगी ।