मध्य पूर्व विषयों के विद्वान डैनियल पाइप्स स्वयं को कट्टर पंथी इस्लाम के विरूद्ध युद्ध में सैनिक मानते हैं। यह ब्याख्या पाइप्स की इस धारणा पर आधारित है कि युद्ध का गुरूत्व केन्द्र सैन्य शान्ति से लोगों के मन – मस्तिक में स्थित हो गया है। ऐसी स्थिति में जब पश्चिम में बहुत से लोग विश्वास नहीं करते कि वे युद्ध की स्थित में हैं तो पाइप्स जैसे विशेषज्ञ कट्टर पंथी इस्लाम के खतरे से सचेत कर महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं ।
विचारों के इस युद्ध का नवीनतम युद्ध स्थल लास एंजिल्स में सिनाई मंदिर था जहाँ 21 मार्च को डैनियल पाइप्स ने आंतकवाद के विरुद्ध युद्ध तथा कट्टरपंथी इस्लाम विषय पर ब्याख्यान दिया। सम्प्रति पेपरडिन विश्वविद्यालय में इस्लाम और राजनीति विषय पर स्नातकों को पढाने वाले पाइप्स ने पश्चिम के समक्ष दो प्रश्न रखे जिसका उत्तर उसे अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करने से पूर्व देना है। निश्चित रुप से शत्रु को परास्त करने से पहले जानना आवश्यक है कि शत्रु है कौन ? इसलिए उनका प्रथम प्रश्न था कि शत्रु कौन है।
11 सितम्बर के आक्रमण के पश्चात इसका स्वाभाविक उत्तर है आतंकवाद। शीत युद्ध के पश्चात पश्चिम के समक्ष उत्पन्न सबसे बड़े खतरे को सम्बोधित करने के लिए ‘ आतंक –वाद के विरूद्ध युद्ध” शब्द का प्रयोग किया जाता है परन्तु यह स्मरण रखना चाहिए कि आतंकवाद केवल एक नीति है। पाइप्स ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि पर्ल हार्बर की प्रतिक्रिया में द्वितीय विश्व युद्ध को ‘ चौकाने वाले आक्रमणों के विरुद्ध युद्ध” संज्ञा नहीं दी जा सकती। यदि आतंकवाद ही वास्तविक शत्रु है तो पश्चिमी नेताओं को पेरू के शाइनिंग पाथ का उल्लेख उससे अधिक करना चाहिए जितना वे करते हैं ।
तो क्या इसका अर्थ हुआ कि मुसलमान शत्रु हैं ? पाइप्स ऐसा नहीं मानते। यह दृष्टिकोण इतिहास से मेल नहीं खाता और इस्लाम आज जैसी नीच स्थित में कभी नहीं रहा। इस्लाम को ही समस्या के रुप में देखने से हम सभी मुसलमानों को अपना शत्रु बना लेते हैं, जबकि पश्चिम के अनेक मुस्लिम सहयोगी भी हैं। यहाँ पाइप्स अल्जीरिया का उल्लेख करते हैं जो स्वयं पिछले दशक से इस्लामवादी हिंसा का शिकार रहा है। अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पाइप्स सेकुलर उद्देश्य निर्धारित करने पर जोर देते हैं। वैसे भी अमेरिका इस्लाम के विरुद्ध क्रूसेड में संलग्न नहीं हैं ।
पाइप्स के अनुसार वास्तविक शत्रु मुसलमान नहीं वरन् कट्टरपंथी इस्लाम नामधारी राजनीतिक विचारधारा है। कट्टरपंथी इस्लाम की अवधारणा है कि विश्व की सभी समस्याओं का समाधान इस्लाम है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो कट्टरपंथी आस्था का अधिनायकवादी विचारधारा में परिवर्तन है। फासीवाद और कम्युनिज्म का उदाहरण इसके समक्ष हैं और यह उसी आधार पर विश्व पर नियन्त्रण स्थापित करना चाहता है। 1996 से 2001 के मध्य अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान विश्व ने देखा कि यदि समस्त विश्व में इस्लामी कानून लागू हो जाये तो इसका भविष्य क्या होगा ? एक शासन जिसने पतंग उडाने तथा स्त्रियों और बच्चियों को विद्यालय जाने से मना कर दिया उसका पश्चिमी सभ्यता के सिंद्धातों से टकराव है। यही कारण है कि कट्टरपंथी इस्लामवादी मानते हैं कि सभ्यता का संघर्ष चल रहा है ।
समय – समय-समय पर इसका प्रकटीकरण हिंसक स्वरूप में हो जाता है फिर वह न्यूयार्क या लन्दन में आतंकवाद हो, अल्जीरिया का जन विद्रोह हो, ईरान में क्रान्ति या फिर अफगानिस्तान में गृह युद्ध हो। परन्तु पाइप्स ने कट्टरपंथी इस्लाम की एक दूसरी शाखा के प्रति भी सचेत किया है जो ढाँचे में रहकर ही अपने उद्देश्य को प्राप्त करना चाहती हैं। उदाहरण के लिए लक्सर में 57 पर्यटकों की 1997 में हत्या के मिस्र के आतंकवादी संगठन अल गामा अल इस्लामिया ने आतंकवाद का प्ररित्याग कर दिया। यह ह्वदय परिवर्तन से अधिक नीतिगत परिवर्तन था जब अल गामा अल इस्लामिया को लगा कि शान्तिपूर्ण ढंग से अपने उद्देश्य प्राप्त करने की उनके पास अधिक सम्भावनायें हैं ।
पाइप्स की दृष्टि में तुर्की के प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन इस विश्व के लिए ओसामा बिन लादेन से भी बडा खतरा हैं। सितम्बर के बाद लादेन की सम्भावनायें क्षीण हुई हैं परन्तु एरडोगन राजनीतिक रूप से इस्लामवादी एजेन्डा बढ़ाकर तुर्की को इस्लामी राज्य बनाने की क्षमता रखते हैं। अमेरिकावासियों को कट्टरपंथी इस्लाम के अहिंसक वर्ग से सचेत रहना होगा। पाइप्स के अनुसार अमेरिका स्थित काउन्सिल आन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशन्स हमास के परोक्ष साथी हैं तथा मुस्लिम पब्लिक अफेयर्स काउन्सिल के उद्देश्य भी आतंकवादियों जैसे हैं बस उन्हें प्राप्त करने का रास्ता भिन्न है ।
उसके बाद पाइप्स दूसरे प्रश्न पर आते हैं – हम कट्टरपंथी इस्लाम के सम्बन्ध में क्या कर सकते हैं ? उनका मानना है कि जिस प्रकार हमने 20 वीं शताब्दी में जर्मनी, जापान और सोवियत संघ का कायाकल्प किया था उसी प्रकार मुस्लिम विश्व का कायाकल्प भी करना चाहिए। पाइप्स ने एक सूत्र बार – बार दुहराया कट्टरपंथी इस्लाम को प्ररास्त करो और इस्लाम को नरपंथी बनाओं । अपने शत्रु के विचारों को किनारे लगाकर ही हम उसे परास्त कर सकते हैं और ऐसा करने के लिए मुसलमानों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। आज नरपंथी मुसलमान के रूप में अलग – थलग पडे हुए कुछ लोग हैं परन्तु नरपंथी इस्लाम का कोई जनान्दोलन नहीं है। ऐसे आन्दोलन के लिए बडे पैमाने पर धन और संगठन की आवश्यकता होगी जो मुस्लिम सुधारकों के पास अभी नहीं है ।
पाइप्स ने उपस्थित श्रोताओं को याद दिलाया है कि 1945 के बाद से फासीवादी विचारों ने विश्व को भयभीत किया। इसी प्रकार विश्व ने 1991 में सशक्त मार्क्सवादी – लेनिनवादी विचारधारा का पतन होते देखा। पाइप्स के अनुसार 1945 और 1991 के रास्ते ही हमारे विकल्प हैं। पाइप्स ने भष्वियवाणी की वर्तमान युद्ध का अन्त कहीं 1945 की हिंसा और 1991 के सोवियत संघ के अहिंसक पतन के मध्य होगा ।
यह तब तक समाप्त नहीं होगा जब तक पश्चिम के सहयोगी चीजों को ही एक ही समान नहीं देखेगें। पाइप्स के स्विस विद्वान तारिक रमादान का उदाहरण दिया – जिसे आतंकवाद का समर्थन करने के कारण अमारिका में प्रतिबन्धित कर दिया गया इसी बीच 7 जुलाई को लन्दन में हुए बंम धमाकों के बाद टोनी ब्लेयर ने तारिक रमादान को इस्लामी कट्टरता की जड खोजने के कार्य के लिए नियुक्त किया। पश्चिम के देशों को ईरान के परमाणु कार्यक्रम जैसे मुद्दों पर समान रणनीति अपनानी होगी तभी वे सफलता पूर्वक इस समस्या से निपट पायेंगें ।
यद्यपि आज पश्चिम के समक्ष सोवियत संघ या जर्मनी जैसे सशक्त राज्यों की चुनौती नहीं है (परमाणु सम्पन्न ईरान चीजों को बदल सकता है) परन्तु आज 15 करोड. इस्लामवादी हैं। यह संख्या आज तक इस पृथ्वी पर जीवित रहे फासीवादियों या कम्युनिस्टों से भी अधिक है। सबसे बडी बात यह है कि कट्टरपंथी इस्लाम एक काल्पनिक आन्दोलन है जिसके पास विचारों की पूरी रचना है। इसका उदाहरण कट्टरपंथी इस्लाम में मतान्तारित होने वाले पश्चिमवासियों की संख्या से जाना जा सकता है। सबसे बड़ी बात है कि कट्टरपंथी इस्लाम के बारे में सोचा ही नहीं जा रहा है पाइप्स के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है रिपब्लिकन पार्टी के राष्टपति पद के प्रत्याशी अमेरिका के समक्ष कट्टरपंथी इस्लाम के खतरे से प्रभावित हैं। जबकि डेमोक्रेट प्रत्याशी शायद ही इसका उल्लेख करते हों ।
पाइप्स ने अपने ब्याख्यान के अन्त में वह सूची गिनाई जिसके आधार पर इस खतरे का मुकाबला करने के लिए कुछ किया जा सकता है। इस विषय के बारे में जाना जाये, शोध किया जाये, विचारों पर सम्पादकों के नाम पत्र लिखे जायें, संगठनों और राजनीति में सक्रिय हुआ जाये और लोगों से इस सम्बन्ध में चर्चा की जाये। दूसरे शब्दों में, वे इस विषय में जानकार बनकर पाइप्स के साथ आयें और कट्टरपंथी इस्लाम के विरूद्ध अन्य लोंगों को जानकारी दें ।