यूरोप सेमेटिक विरोधी रुझान दो सहस्राब्दी तक ईसाई प्रवृत्ति रही , परंतु अब यह मूलत: मुस्लिम प्रवृत्ति हो गई है ।
यूरोपिय संघ के आधिकारिक आयोग के अध्ययन का यह मूल संदेह है जो पिछले सप्ताह कुख्यात हो गया जब यूरोपिय संघ ने स्वयं अपने ही 104 पृष्ठ के मसौदे को निरस्त कर दिया । Financial times जिसने इस रिपोर्ट को प्रकाश में लाया उसने रिपोर्ट दी की ऐसा इस लिए हुआ क्योंकि इस अध्ययन द्वारा परीक्षण किए गए अधिकतम् मामलों में इन घटनाओं में मुसलमान और फिलीस्तीन समर्थक गुटों का हाथ था । FINANCIAL TIMES के अनुसार मुस्लिम और फिलीस्तीन समर्थक इन उपद्रवियों पर ध्यान केन्द्रीत करना भड़काऊ माना गया ।
इस अध्ययन के मसौदे से निकट से जुडे एक व्यक्ति ने निष्कर्ष निकाला कि इसे प्रकाशित न करने का निर्णय राजनीतिक था । परंतु इस राजनीतिक विवाद से परे “ Manifestation of anti sematism in europian union “ शीर्षक से अब यूरोपिय संघ द्वारा जारी इस रिपोर्ट में यहूदी विरोधी भावना और कार्यो के बिन्दु पर ऐतिहासिक परिवर्तन की पुष्ठि की गई है ।
इस अद्ययन में ( 15 मई से 15 जून 2002 ) के एक महीने के समय में नमूने के तौर पर किए गए अद्ययन में सेमेटिक विरोध को आग्रसारित करने में मुसलमानों की मुक्य भूमिका पाई गई । अगद्ययन के दौरान के समयमें जिन उपद्रवियों की गई और जिनकी पहचान निश्चित रुप से की जा सकती है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि ये घटनाएं करने वाले या तो दक्षिणपंथी –चरमपंथी या कट्टरपंथी इस्लामवादी या फिर अधिकतर अरब मूल के मुस्लिम युवक थे ।
इस समस्या में शारीरिक आक्रमण भी शामिल हैं । अध्ययन के काल में मुस्लिम उपद्रवी युवकों द्वारा यहूदियों पर शारीरिक आक्रमण या उनके गिरिजाघरों पर तोड़ – फोड़ प्राय: होते रहे । ऐसे आक्रमण या तो फिलीस्तीन समर्थक प्रदर्शनों से पहले या पश्चात् हुए और इस अवसर का लाभ कट्टरपंथियों ने गाली –गलौज के प्रयोग के लिए भी किया । इसके अतिरिक्त कट्टरवादी इस्लामवादी परिधि इंटरनेट और अरब भाषी मीडिया में सेमेटिक विरोधी प्रचार करते भी पाए गए । पर्यवेक्षकों ने देखा कि आडियोटेप और व्याख्यानों सहित मुस्लिम और अरब मीडिया में स्पष्ट रुप से सेमेटिक विरोधी वातावरण रहा जहां न केवल इजरायल के विरुद्ध संघर्ष में शामिल होने की बात की गई वरन् समस्त विश्व में यहूदियों के विरुद्ध संघर्ष की बात कही गई। अनेक उदाहरणों में तो आक्रमण इजरायल विरोध से जुड़ा रहा ।
स्थिति की खतरनाक प्रकृति और विशेष रुप से यहूदी समुदाय के लिए इत्पन्न हुई है क्योंकि बहुत से देशों ने देखा है कि सेमेटिक विरोधी आक्रमण अधिकतर युवा अरब मुसलमानों द्वारा किए जा रहे हैं या अतिवादी दक्षिणपंथियों द्वारा और राजनीतिक दायरे में यह इजरायली राजनीति की आलोचना पर आधारित है जो कुछ अवसरों पर सेमेटिक विरोध को लक्षित करती है । यूरोपिय संघ के 15 राज्यों में से 4 राज्य अपनी अधिक गहरी समस्या से जूझ रहे हैं ।
कुछ देशों का समूह प्रबल सेमेटिक विरोधी श्रेणी में पहचाना गया है । यहां फ्रांस , बेलजियम , नीदरलैंड्स और ब्रिटेन का उल्लेख किया जा सकता है । इन देशो में अनेक ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं जहां यहूदियों पर शारिरीक आक्रमण हुए और उनके गिरिजाघरों या संस्थानों को निशाना बनाया गया । इन देशों में यहूदियों या उनके गिरिजाघरों पर आक्रमण अरब मुस्लिम अल्पसंख्यक और विशेषकर युवाओं द्वारा किए गए ।
रिपोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि इस पूरे विषय में एक प्रमुख परिवर्तन आया है । यूरोप में सेमेटिक विरोधी आक्रांताओं के कुछ मामलों में ये मुस्लिम अल्पसंख्यक है चाहे वे कट्टरपंथी इस्लामवादी गुट के हों या फिर उत्तरी अफ्रीका मूल के युवक हों । यूरोपिय संघ के सदस्य देशों के लिए यह एकदम नई चीज है जिससे यूरोपिय सरकारों और अधिसंख्य नागरिकों को चिंतित होने की आवश्यकता है ।
यह अध्ययन और बाद में इसे दबाने के प्रयास से दो महत्वपूर्ण बिन्दु उभरते हैं – यूरोप की सड़कों पर अस्तित्वमान असुखद वास्तविकता और इस वास्तविकता का सामना करने से बचने की यूरोपिय संघ की गहरी प्रवृति । इनमें से कोई भी तथ्य नया नहीं है । इस लेखक ने 1992 में ही लिखा था कि विश्व भर के यहूदियों के लिए मुसलमानों का सेमेटिक विरोध एक बढ़ती हुई समस्या है और इस समस्या का बहुत बड़ा कारण पश्चिम में मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या है ।
इसके साथ ही मुस्लिम धर्म , मीडिया और स्वैच्छिक संस्थानों से उभरती यहूदी विरोधी शत्रुता का सामना करने की यूरोपिय संघ की अनिच्छा भी दशकों पुरानी है ।
जबतक यूरोप इस समस्या को समाप्त करने की दिशा में उद्यत नहीं होता और संकेत इस प्रकार के नहीं हैं तो इस दशा में यहूदियों को यूरोप से उसी प्रकार पलायन के लिए विवश होना होगा जैसा कि आधी शताब्दी पूर्व मुस्लिम देशों से उन्होंने पलायन किया था।