उदाहरण के लिए कल्पना करिए कि इराक में कोई भी जनसंहारक हथियार नहीं मिलता । निश्चित रुप से वे दिखेंगे परंतु हम कल्पना करें कि सद्दाम हुसैन के पास रासायनिक ,जैविक और परमाणु हथियार के लिए कोई अग्रिम कार्यक्रम या उन्हें ले जाने के लिए मिसाइल नहीं है ।
फिर इसके परिणाम क्या होंगे ?
राष्ट्रपति बुश के डेमोक्रेट विरोधी कहते हैं कि इससे एक धूर्त और अतिप्रचारित युद्ध में जाने का निर्णय हुआ । परंतु वे एक बिन्दु भूल जाते हैं कि बड़े पैमाने पर अविवादित साक्ष्य थे जो संकेत करते हैं इराकी शासन जनसंहारक हथियारों का निर्माण कर रहा था ।
अन्य इराकी स्रोत भी इस बात से सहमत हैं कि जनसंहारक हथियार कार्यक्रम था । सद्दाम हुसैन सरकार की कार्यवाई, संयुक्त राष्ट्र संघ के हथियार निरीक्षकों से बचने का प्रयास , साक्ष्यों को छुपाना , आर्थिक प्रतिबंधों को उठाने के प्रयासों का पूर्वोल्लेख इसके अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं ।
यहीं नहीं तो National review में रिच लोरी ने दिखाया है ,क्लिंटन प्रशासन का नेतृत्व तथा संयुक्त राष्ट्र संघ सहित फ्रांस और जर्मन सरकारें भी मानती थीं कि इराक में जनसंहारक हथियारों का अस्तित्व है ।
यदि जनसंहारक हथियारों का अस्तित्व नहीं था तो वास्तविक रहस्य यह नहीं है कि अन्य सरकारों की भांति बुश प्रशासन ने भी वही भूल क्यों की वरन् रहस्य यह है कि सद्दाम हुसैन ने यह गलत प्रभाव क्यों छोड़ा कि उनके पास ऐसे हथियार हैं । उन्होंने स्वयं को ऐसी अस्वाभाविक स्थिति में क्यों रखा कि एक ओर तो वे जनसंहारक हथियारों के निर्माण का बहाना करते रहे दूसरी ओर इन अस्तित्वहीन हथियारों को छुपाने का बहाना बनाते रहे ।
ऐसा अनुमान होता है कि उनका प्रयास अपनी स्थिति को और सशक्त करना था । जैसा कि वाशिंगटन पोस्ट के वाल्टर पिंकस और दाना प्रीस्ट ने अटकल लगाई है , “उन्होंने एक ऐसा दोहरा धोखे का कार्यक्रम बनाया था जिसका उद्देश्य एक ओर समस्त विश्व को और दूसरी ओर अपने लोगों को विश्वास दिलाना था कि यह वास्तव में जितना बड़ा खतरा दिखता है , उससे कहीं बड़ा खतरा है ।”
एक निश्चित बिन्दु पर सद्दाम का भ्रमित करने का यह खेल आत्म पराजय का कारण बना । जनसंहारक हथियार धारण करने के इस बहाने से उन पर आर्थिक प्रतिबंध लगा और प्रत्येक वर्ष अरबों डॉलर से वंचित रहे इससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हुई और उनके परंपरागत हथियार भी खाली हो गए ।
उनके दृष्टिकोण से इससे भी बुरा यह रहा ,इस छल के कारण उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी , उनके पुत्र को मृत्युदंड मिला और वे स्वयं भी गिरफ्तार या समाप्त होने वाले हैं ।
आखिर एक शासक जो धूर्तता की पराकाष्ठा से एक चिकने खंभे के शीर्ष पर पहुंच गया उसने उल्टे दांव वाली इस योजना पर जोर क्यों दिया ? उसके जीवनीकार एफ्रेम कर्श व इनाटी रावत्सी ने सद्दाम हुसैन की विशेषताओं का वर्णन “अत्यंत सतर्कता , अत्यंत धैर्य , अधिक समय तक स्वयं को बचाए रखने की चाहत , प्रभावशाली ढंग से चीजों को अपने पक्ष में रखने की कला और अतिशय क्रूरता के रुप में किया है । आखिर वो जनसंहारक हथियारों की अस्तित्वहीनता के रुप में अपनी हार कैसे मान सकता था और इस प्रकार उसने अपनी तानाशाही बचा ली ।
सद्दाम के इस भूल को अधिनायकवादियों द्वारा स्वयं पर थोपी गई दो विशेषताओं के रुप में देख सकते हैं –
अतिशय आत्मविश्वास -आत्यन्तिक शासक जो चाहे कर सकता है इसलिए वह अपनी शक्ति को अबाध मानता है ।
अज्ञानता – हर दृष्टि से बुद्धिमान शासक कोई भी विसंगति सहन नहीं करता इस कारण उसके सहयोगी अपने प्राणों की रक्षा के लिए उसे वही बताते हैं जो वह सुनना चाहता है . । समय के साथ अयोग्यतायें बढ़ती गई और उत्पीड़क धीरे धीरे सत्य से दूर होते गए । उसके मस्तिष्क की बदलती अवस्था , आश्चर्य और उसकी फन्तासियां राज्य की नीतियों पर भारी पड़ती हैं । इसका परिणाम स्मारकीय भूलों की परिपाटी के रुप में होता है ।
इस संबंध में दो ऐतिहासिक उदाहरण हैं । हिटलर द्वितीय विश्वयुद्ध तक जीतता रहा है जबतक उसने अपने जनरलों की मौन सलाह के बिना सोवियत संघ के विरुद्ध आक्रमण युद्घ का दूसरा मोर्चा नहीं खोल दिया । स्टालिन ने नाजी सेनाओं को अपनी सीमा के आसपास जमा होने दिया मानों कुछ भी नहीं हो रहा है । हिटलर की भूल को द्वितीय विश्वयुद्ध की परिस्थितियों के बदलाव का बहुत बड़ा कारण माना जाता है और जर्मनी की हार का भी । स्टालिन की भूल के कारण उसकी लाखों प्रजा मारी गई । नाजी और सोवियत युद्ध सबसे बड़ा , क्रूर और मानवीय इतिहास का सबसे घातक युद्ध ता जो दो अधिनायकवादियों के अति आत्मविश्वास और अज्ञानता का परिणाम था ।
सद्दाम हुसैन का इससे मिलता जुलता भूल का पिछला रिकार्ड भी रहा है ( इरान औरकुवैत पर विनाशकारी आक्रमण ) इसलिए अस्तित्वहीन जनसंहारक हथियारों से चिपके रहना उसकी भविष्यवाणी के अनुरुप ही रहा तो कोई आश्चर्य नहीं । बाहर रहकर हम केवल उसके गलत निर्णयों के संबंध में उसकी महत्वकांक्षाओं और इसे तोड़ने –मरोड़ने के संबंध में कल्पना ही कर सकते हैं ।
अधिनायकवादी अर्ध देवों की स्वयं को घायल करने के इस व्यवहार की पद्धति का सीधा असर उत्तर कोरिया , लीबिया तथा अन्य दुष्ट देशों के साथ संपर्क में पड़ने वाला है । उनके शासकों का अत्यंत गर्व और एकांतिकता ऐसे विनाश की ओर ले जा सकती है जिसका बाहरी विश्व से कोई वास्ता न हो लेकिन जिसमें क्षति पहुंचाने की बहुत बड़ी क्षमता हो ।