पिछले सप्ताह The Trouble with Islam: A Wake-up Call for Honesty and Change पुस्तक की लेखिका को एक धमकी भरा संदेश मिला , “ अपने झूठ की कीमत तुम्हें कभी न कभी चुकानी पड़ेगी.”।
कनाडा की 34 वर्षीया इरशाद मन्जी द्वारा लिखित पुस्तक हाल में ही विमोचित हुई है । इस पुस्तक में मन्जी ने सामान्य तौर से चर्चा से बचे रहने वाले विषयों सेमेटिक विरोध , गुलामी और महिलाओं के साथ हीन व्यवहार को उनकी भाषा में पूरी ईमानदारी से जानने का प्रयास किया गया है । उन्होंने मुसलमानों को फटकारते हुए जानने का प्रयास किया है कि इस्लाम को हानि पहुंचाने वाली चीजों के संबंध में उत्तरदायित्व लेना होगा ।
यद्यपि मंजी एक टीवी पत्रकार और व्यक्तित्व हैं परंतु एक आस्थावान मुसलमान होकर भी उन्होंने अपने विषय में वास्तविक अंतरदृष्टि दिखाई है ।“ मैं इस बात की प्रशंसा करती हूं कि प्रत्येक मत में कट्टरपंथी है । .”परंतु इस पुस्तक में जिस एक बात पर ध्यान दिया गया है वह है कि इस्लाम में कट्टरपंथी मुख्यधारा है । ”
अपने इन प्रयासों के लिए मन्जी को आत्मघृणा ,अप्रासंगिक , मुसलमानों को बेचनेवाली और ईशनिन्दा वाला बताया गया । उस पर दो आरोप लगाये गये हैं कि उसने इस्लाम की अवमानना की और मुसलमानों को मानवता की श्रेणी से गिराया ।
अपनी प्रति बढ़ती शत्रुता के कारण मन्जी को अपने घर में बुलेट प्रूफ कांच लगवाना पड़ा और अंगरक्षक रखना पड़ा । टोरन्टो पुलिस ने उसकी सुरक्षा पर अधिक ध्यान दिया ।
मन्जी की यह कठिन स्थिति उग्रवादी इस्लाम की फतवी प्रवृत्ति के विरुद्ध बोलने वाले साहसी ,नरम , आधुनिक मुस्लिम चेहरों रो मिलने वाली स्थिति के अनुकूल ही है । उनका अनुभव सलमान रशदी और तसलीमा नसरीन जैसे लेखकों के विरुद्ध खतरों को ही प्रतिध्वनित करती है , और गैर मुस्लिम इस बात पर आश्चर्य चकित हैं कि पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के इस्लामवादी विरोधी मुसलमान चुप क्यों है ?
इस्लामवादी विरोधी मुसलमान जो आधुनिक जेहाद के हिंसक दृष्टिकोण और फतवा से हटकर बृकी से अप्रभावित आधुनिक जीवन व्यतीत करना चाहते हैं वे सुरक्षात्मक और चुप हैं । उनकी व्यक्तिगत आवाज कितनी भी मुखर क्यों न हो वह उग्रवादी इस्लाम के दृढ़संकल्प , हिंसा और धन (ज्यादातर बाहर से आता है ) से मुकाबला नहीं कर सकता । जिसके परिणामस्वरुप उग्रवादी इस्लाम अपने पश्चिम फोबिया और विश्व पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य के साथ पश्चिम में नियंत्रण रखता है और अनेक लोगों को ऐसा प्रतीत होता है कि इस्लाम का यही एक प्रकार है ।
परंतु इस्लामवादी विरोधी मुसलमान न केवल अस्तित्वमान हैं वरन् 11 सितंबर 2001 के पश्चात् दो वर्षों में ही उन्होंने अपनी आवाज प्राप्त की है ।
उनमें विविधता है वे एक पहुंच या एक एजेन्डा पर नहीं है । कुछ तो पवित्र हैं , कुछ नहीं , कुछ स्वतंत्र चिंतक हैं और कुछ नास्तिक हैं । कुछ परंपरावादी हैं तो अन्य उदारवादी । उनमें केवल एक चीज सामान्य है कि वे वहावी , खोमैनी और उग्रवादी इस्लाम के अन्य प्रकारों से शत्रुता रखते हैं ।
उन्होंने ऐसी पुस्तकें लिखानी आरंभ की हैं जो इस्लामवादियों को अधिनायकवादी संस्करण को चुनौती देती है । अब्दुलवहाब ने Malady of Islam शीर्षक की पुस्तका लिखी है जिसमें उग्रवादी इस्लाम की तुलना नाजीवाद से की गई है । अमेरिका विश्वविद्यालय के अकबर अहमद ने Islam Under Seige में मुसलमानों से गैर –मुसलमानों का सम्मान करने की बात की है ।
अन्य मुखर अकादमिकों में टोक्यो विश्वविद्यालय से पूर्व में जुड़े रहे सदाबोल्लाह गावसी , इंटरनेश्नल पीस के हुसैन हक्कानी , पश्चिमी ओन्टारिवो विश्वविद्यालय के सलीम मंसूर तथा सैन डियागो विश्वविद्यालय के खलील मोहम्मद शामिल हैं । पत्रकारों में उग्रवादी इस्लाम के विरुद्ध अग्रिम पंक्ति में पाकिस्तान टुडे के पत्रकार तशबीन सईद और अमेरिका में स्टीफन स्कावर्ज तथा लेखक खालिद दुर्रान हैं । कनाडा में ताहिर असलम गोरा यही भूमिका निभा रहे हैं ।
एक पूर्व मुसलमान जिन्होंने इस्न बराक नामक गलत नाम से लिखा है , उन्होंने अनेक श्रृंखलाबद्ध पुस्तकें लिखकर मुसलमानों को अपने मत के संबंध में प्रश्न खड़ा करने को प्रेरित किया है ।
अनेक संगठन भी इस्लामवाद विरोधी हैं जैसे सुप्रीम काउंसिल ऑफ अमेरिका , द काउंसिल फॉर डेमोक्रेसी एंड टालरेन्स , द अमेरिकन इस्लामिक कांग्रेस तथा शिया संगठन जैसे सोसायटी फॉर ह्यूमानिटी एंड इस्लाम इन अमेरिका । अनेक तुर्की संगठन सेक्यूलर सिद्धांतों के प्रति संकल्पित हैं जिनमें अतातुर्क सोसायटी और असेंबली ऑफ तुर्किश अमेरिकन एसोसिएशन है ।
कुछ इस्लामवादी विरोधियों ने सार्वजनिक भूमिका भी अपना ली है । इस्लाम को एक पिछड़ा धर्म कहने वाले हौलैन्ड के अयान हिस्सी अली हैं जो वहां संसद सदस्य हैं ।
नासेर खादर डेनमार्क में सांसद हैं जो सेकुलरवादी हैं और जिन्होंने डेनमार्क में मुसलमानों के पूर्ण आत्मसातीकरण की बात की थी ।
इस्लामवादियों का कमजोर हो कर खड़ा होने के दो प्रमुख परिणाम इस्लामवादी शोरगुल में उनकी आवाज सुने जाने के लिए उनके लिए बाहर के समर्थन की आवश्यकता है । सरकारों द्वारा जश्न , संस्थानों के लिए आर्थिक सहायता , अकादमियों का ध्यान और मीडिया द्वारा मान्यता ।
ऐसे संस्थानों को अभी प्रभावी उग्रवादी इस्लामी स्थिति का मार्ग अवरुद्ध करना चाहिए । जब इस्लामवादियों को अस्वीकार किया जायेगा तभी नरमपंथियों को सुनने का अवसर आयेगा ।
यदि पश्चिम में इस्लाम का नरमपंथी और आदुनिक स्वरुप विकसित करना है तो इस्लामवादियों को कमजोर करना और इस्लामवादी विरोधियों को आगे बढ़ना आवश्यक है ।