14 जून को गाजा में फतह पर हमास की विजय फिलीस्तीनियों के लिए, इस्लामवादी आन्दोलन के लिए तथा अमेरिका के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इजरायल के लिए इसका उतना महत्व नहीं है ।
हमास और फतह के मध्य तनाव शाश्वत होने वाला है और इसी के साथ होगा गाजा और पश्चिमी तट का विभाजन।
हमासस्तान और फतहलैण्ड के रूप में दो प्रतिद्वन्द्वी इकाइयों का उदय एक लम्बे दबे हुए तनाव का प्रकटीकरण है। इन दो क्षेत्रों की इस प्रवृत्ति के आधार पर जोनाथन स्कैन्जर ने 2001 में भविष्यवाणी की थी कि आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि फिलीस्तीनी अथारिटी का भौगोलिक आधार पर विभाजन हो जाये।
कुछ घटनाओं ने भी इसी दिशा में कार्य किया –
2004 के आरम्भ में हुई फिलीस्तीनी अराजकता ने कबीलों और आपराधिक लड़ाकों को शक्ति दी ।
नवम्बर 2004 में यासर अराफात की मृत्यु से ऐसा कोई बुरा व्यक्तित्व समाप्त हो गया जो अकेले इन क्षेत्रों के मध्य पुल का कार्य कर सके ।
2005 के मध्य में गाजा से इजरायल की वापसी के बाद गाजा में स्थिरता का तत्व नष्ट हो गया।
जनवरी 2006 में फिलीस्तीनी अथारिटी के चुनावों में हमास की विजय ने इसे फतह को चुनौती देने का शक्तिशाली आधार प्रदान कर दिया।
यदि इस बात की कल्पना कर ली जाये कि फतह का पश्चिमी तट पर आधिपत्य रहता है (जहाँ इसने हमास के 1500 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है) तो दो प्रतिद्वन्द्वी गुटों ने एक फिलीस्तीनी अथारिटी का स्थान ले लिया है।
फिलीस्तीनी राष्ट्रवाद के लाभदायक स्वरूप और हाल की इसकी उत्पत्ति (निश्चित रूप से यह तिथि 1920 है) को देखते हुए यह बँटवारा अत्यन्त सम्भावित महत्व का है। जैसा की मैने कहा था कि फिलीस्तीनवाद इतना कृत्रिम है कि जितना शीघ्र यह आरम्भ हुआ था उतना ही शीघ्र इसका अन्त भी होगा। वैकल्पिक लगावों में इस्लामी दृष्टिकोण, अरब इस्लामी राष्ट्रवाद, मिस्र, जार्डन, या जनजातियों या कबीलें हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय रूप से फतह और हमास का एक दूसरे के प्रति युद्ध अपराधों में संग्लन होना फिलीस्तीनी उत्पीड़न के सबसे बड़े आधुनिक मिथक को ध्वस्त करता है इससे आगे दो फिलीस्तीन के नियन्त्रण का संघर्ष ( पी.एल.ओ का संयुक्त राष्ट्र संघ की सीट के लिए ) इससे दूसरा मिथ भी ध्वस्त होता है और वह फिलीस्तीनी राज्य का। सउदी विदेश मंत्री सउद अल फैसल का मानना है कि “फिलीस्तीनियों ने फिलीस्तीनी कार्य के लिए ताबूत की आखिर फील स्वयं ही गाड़ दी है ’’। एक फिलीस्तीनी पत्रकार ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा है “ दो राज्य समाधान आखिकार कारगर हो गया ’’।
इसके विपरीत, इस्लामवादी आन्दोलन को लाभ हुआ है। गाजा पट्टी में ताकत स्थापित कर इन्हें एक आधार मिल गया है जो मध्य पूर्व का ह्वदय है और जहाँ से वे मिस्र, इजरायल और पश्चिमी तट में घुसपैठ कर सकते हैं। हमास की विजय ने विश्व भर में इस्लामवादियों के मनोबल को ऊँचा उठाया है। उसी प्रकार आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध में यह पश्चिम की पराजय का संकेत भी है जिसने एरियल शेरोन की अल्प दृष्टि को उजागर किया है जो उन्होंने गाजा से एकतरफा वापसी करके दिखाई थी साथ ही चुनावों के प्रति दौड़ने की बुश की बिना मस्तिष्क की नीति भी उजागर हुई है।
जहाँ तक इजरायल का सम्बन्ध है तो इसके समक्ष पहले की भाँति ही अस्तित्व का खतरा विद्यमान है। इसे पश्चिम की ओर से हमास के लगभग बहिष्कार, फिलीस्तीनी आन्दोलन में टूट-फूट और गाजा की ओर से एकमात्र ध्यान दे पाने का लाभ हुआ है। इसके अलावा इसे यहूदी राज्य को नष्ट करने के आशय के स्पष्ट शत्रु का लाभ भी हुआ है न कि फतह की भाँति आडम्बरी शत्रु । ( फतह इजरायल वालों को मारकर जेरूसलम से बात भी करता है जबकि हमास बिना बातचीत के इजरायल वालों को मारता है, फतह नरम नहीं है पर दिखाता है जबकि हमास विचारधारागत है) परन्तु इजरायल के लिए अब फतह जैसे अराफाती रणनीति वाले संगठन का स्थान उत्साही , अनुशासित और कड़ी नियमिततावाले अधिनायकवादी इस्लाम ने ले लिया है।
फतह – हमास की भिन्नता व्यक्तियों, दृष्टिकोण और नीति के सम्बन्ध में है वे सहयोगियों और उद्देश्य में समान हैं। तेहरान हमास और फतह दोनों को शस्त्र देता है। फतह के नरम पंथी आतंकवादी और हमास के बुरे आतंकवादी दोनों ही बच्चों को शहादत की बर्बतापूर्ण पन्थ की शिक्षा देते हैं। दोनों ही इस बात पर समान हैं कि यहूदी राज्य का विनाश होना चाहिए। दोनो में से कोई भी ऐसा मानचित्र नहीं दिखाता जिसमें इजरायल या तेल अवीब भी हो।
फतह के धोखाबाजी के कूटनीति के खेल में भोले-भाले पश्चिमी लोगों और इजरायल के लोगों को भी इसमें निवेश को प्रेरित किया। अभी हाल की सबसे बड़ी भूल वह थी जब वाशिंगटन ने कीथ डेयटन को सुना और हमास के लड़ने के लिए फतह को 59 मिलियन डालर सैन्य सहायता के रूप में भेजा और यह नीति उस समय गलत सिद्ध हुई जब हमास ने आगे बढ़कर इन हथियारों को अपने प्रयोग के लिए घेराबन्दी में ले लिया।
इन दिनों मूर्ख बुद्धिमान शान्ति की पहल करने वाले लोगों को देखना चाहिए कि उनके कार्य का क्या विनाशकारी परिणाम हुआ है। उन्हें फतह और जेरूसलम को लेन-देन की मेज पर बैठाने की जिद पर कार्य करने के स्थान पर 80 प्रतिशत फिलीस्तीनियों के ह्वदय के परिवर्तन का प्रयास करना चाहिए जो अब भी यहूदीवाद को परास्त कर 1948- 49 के युद्ध के परिणाम को बदलना चाहते हैं और इजरायल के शरीर पर 22 वां अरब राज्य निर्मित करना चाहते हैं।
इजरायल के एकदम नये रक्षा मंत्री येहुदबराक ने कुछ सप्ताह के भीतर हमास पर आक्रमण की योजना बनाई है परन्तु यदि जेरूसमल भ्रष्ट और अपनी भूमि की मांग करने वाले फतह के साथ चलता रहा ( प्रधानमंत्री येहुद ओलमर्ट ने उन्हें सहयोगी कहा है) तो इससे यही सम्भावना बनेगी कि वास्तव में हमासस्तान पश्चिमी तट को अपने नियन्त्रण में ले लेगा ।