जैसा कि आब्जर्बर के स्तम्भकार निक कोहेन ने लिखा है कि 60 वर्षीय सलमान रशदी को ब्रिटेन की महारानी द्वारा 16 जून को नाइटहुड की उपाधि दिया जाना ब्रिटेन के मुसलमानों के प्रति बदलते व्यवहार का प्रतीक है ? या फिर इस्लामवाद के विशेषज्ञ सदानन्द ड्यूम ने जैसा वाल स्ट्रीट जर्नल में कहा है कि “यह ब्रिटिश आधार स्वागतयोग्य उदाहरण है ’’।
मैं ऐसा नहीं सोचता। नाइटहुड की उपाधि इसके परिणामों को समझे बगैर दी गई है।
इस सम्मान का सर्वाधिक विरोध 1988 में सर सलमान रशदी की सेटेनिक वर्सेज के आरम्भिक दौर में प्रकाशित होने के उपरान्त पाकिस्तान में हुआ था। विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि “हम ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें नाइटहुड की उपाधि दिये जाने का कड़ा विरोध करतें हैं ’’। संसद के निचले सदन ने सरकार समर्थित सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर रशदी को ‘ईशनिन्दित ’ बताया ।
सबसे आश्चर्यजनक घटना क्रम में पाकिस्तान धार्मिक मामलों के मंत्री इजाज उल हक ने संयुक्त राज्य ब्रिटेन के विरूद्ध आत्मघाती हमलों को मान्य किया। “जब तक ब्रिटेन की सरकार ‘सर ’ की उपाधि लेकर क्षमा याचना नहीं करती तब तक अपने शरीर पर कोई विस्फोटक बाँध कर आक्रमण करता है तो यह उचित होगा ’’।
इजाज फल हक ने बाद में जोड़ा कि “ यदि पैगम्बर मोहम्मद के सम्मान की रक्षा में कोई आत्मघाती आक्रमण करता है ते उसका कृत्य न्यायसंगत है ’’।
एक ट्रेड यूनियन ने रशदी के सर पर 160,000 डालर के इनाम की घोषणा कर दी। ईरान की संसद के सभापति धोलामली हद्दादेल ने धमकी दी कि मुसलमान इस अविवेकपूर्ण और शर्मनाक कृत्य को बिना प्रक्रिया के नहीं जाने देगें ’’।
ऐसी प्रति क्रियाओं ने बड़ी मात्रा में इस्लामवादियों को सड़कों पर उतारने में सहायता की इनमें लन्दन के लोग भी थे जिन्होंने रानी एलिजाबेथ और रशदी के पुतले जलाये और रशदी को मौत, रानी को मौत ’जैसे नारे लगाये।
सौभाग्यवश कुछ मुसलमानों ने इन प्रति क्रियाओं को गलत भी ठहराया। कनाडा के लेखक इरशाद मन्त्री ने कहा पाकिस्तान की सरकार काबुल और बगदाद में साथी मुसलमानों पर होने वाले आक्रमणों के सम्बन्ध में चुप रहती है जहाँ इस्लामवादी आतंकवादी सैकड़ों मुसलमानों को मार चुके हैं ’’।
“मै इस बात से व्यथित हूँ कि इस नरसंहार के मध्य एक घोषित नास्तिक
सूची में सबसे ऊपर हैं ’’।
ये इस्लामवादी धमकियाँ 1989 में वेलेन्टाइन दिवस पर हुए नाटक का विस्तार है जब अयोतोल्ला खोमैनी ने रशदी के विरूद्ध मौत का फतवा जारी करते हुए कहा था , “ द सेटेनिक वर्सेज पुस्तक जिसका संकलन, मुद्रण और प्रकाशन इस्लाम, पैगम्बर और कुरान के विरूद्ध हुआ है। उसके लेखक, इसके प्रकाशन में संलग्न लोगों को मौत की सजा दी जाती है। मैं सभी उत्कंठित मुसलमानों का आहवान करता हूँ कि वे इसका अति शीघ्र क्रियान्वयन करें ।
उसी दिन मैं टेलीविजन पर आया और मैंने भविष्यवाणी की कि उपन्यासकार इस फतवे से कभी बच नहीं पायेगा। यद्यपि उसने 1990 में तुष्टीकरण का सहारा लिया और 1998 तक स्वयं की कृत्रिमता में रहा जब ईरान के विदेश मन्त्री ने घोषणा की कि उनकी सरकार का आशय उनकी हत्या का नहीं है। रशदी ने इसे बड़ा परिवर्तन माना और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि खोमैनी फतवा अब निष्क्रिय हो गया।
1990 में मैंने रशदी को इस निष्कर्ष के प्रति सावधान किया था एक तो यह कि फतवा अपनी जगह पर है, ईरानी नेता अपने को इस बात के लिए सक्षम नहीं पाते कि वे इसे बदलें ( अयातोला अहमद खातमी ने अगले ही दिन इस बिन्दु को दुहराया ) दूसरा समस्त विश्व में स्वतन्त्र लोग स्वयं को खोमैनी के आहवान को पूर्ण करने लिए नामित कर सकते हैं ।
परन्तु रशदी और उनके मित्रों ने इन आशंकाओं की अवहेलना की, उदाहरण के लिए क्रिस्टोफर हिचेन्स ने सोचा कि रशदी सामान्य जीवन की ओर लौट गये हैं। यह परम्परागत विवेक बन गया, इसी अनुभवहीनता ने न कि आधार से उन्हें नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
मैं उन्हें नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किये जाने का स्वागत करता हूँ क्योंकि अपनी राजनीतिक भूलों के बाद भी रशदी एक अच्छे उपन्यासकार हैं। मैं ड्यूम की इस बात से सहमत होना चाहता हूँ कि रशदी को मान्यता देना इस बात को प्रमाणित करता है कि पेण्डुलम ने झूलना आरम्भ कर दिया है और यह ब्रिटेन में कट्टरपंथी इस्लाम के तुष्टीकरण के विरूद्ध हैं।
इसके बाद भी मैं दो निष्कर्ष निकालता हूँ – पहला रशदी को इस तथ्य के आधार पर ही योजना बनानी चाहिए कि उनके साथ ही रशदी का फतवा भी खत्म होगा। दूसरा ब्रिटिश सरकार को पाकिस्तान की आत्मघाती हमले की आधिकारिक धमकी को गम्भीरता से लेना चाहिए जो कि युद्ध की घोषणा के समान है या ऐसे कृत्यों को मान्यता देने के समान है। अभी तक उसने ऐसा किया नहीं है।
राजदूत के स्तर से ‘गहरी चिन्ता ’ सम्बन्धी बयान से परे व्हाइटहाल इस बात पर जोर दे रहा है कि मन्त्री की धमकी से पाकिस्तान के साथ ‘उसके गहरे मित्रवत सम्बन्धों ’ पर असर नहीं पड़ेगा। इसने तो यहाँ तक संकेत दिया कि इजाज उल हक व्यक्तिगत यात्रा पर ब्रिटेन आ सकते हैं। ( क्या आत्मघाती हमलावरों का भी स्वागत होगा वैसे वे सरकार के अतिथि नहीं हैं ) जब तक पाकिस्तान के आधिकारिक रूप से इजाज उल हक के आक्रोश उत्पन्न करने वाले वक्तव्य से पीछे नहीं हटता या क्षमा याचना नहीं करता, लन्दन को इस्लामवाद के साथ पहले जैसा सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए। उससे ही ब्रिटेन का आधार निर्मित होता है ।