इराक में इन दिनों दो कठिन खोज जारी है, एक तो सद्दाम हुसैन के लिए और दूसरा उनके जनसंहारक हथियारों की दोनों में से कोई भी अभी प्राप्त नहीं हुआ है।
इस सम्बन्ध में कोई तर्क नहीं करेगा कि सद्दाम मिले नहीं हैं परन्तु उनका अस्तित्व है। परन्तु कुछ लोग यह बात अवश्य कर रहे हैं कि गठबन्धन सेना को वास्तविक जनसंहारक हथियार नहीं मिला है। सम्भव है कि इन्हें अच्छी तरह छुपा दिया गया हो या फिर बाद में उन्हें नष्ट कर दिया गया हो। आखिर क्या होगा यदि वह कभी नहीं मिला तो इससे युद्ध में जाने का तर्क कम हो जाता है ।
जनसंहारक हथियार शायद ही युद्ध का कारण रहा हो। न ही इराक में उत्पीड़न या सद्दाम हुसैन द्वारा अपने पड़ोसियों के लिए उत्पन्न खतरा ही इसका कारण था। इससे बजाय इसका कारण सद्दाम हुसैन द्वारा अमेरिका के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करना और फिर अपना वचन भंग करना था।
3 मार्च 1991 को दक्षिणी इराक के साफवान में इराकी और गठबन्धन सेना के लोग ने एक युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर के लिए मिले। यह कुवैत से इराकी सेनाओं को अमेरिका नीति गठबन्धन द्वारा तत्काल हटाये जाने के बाद हुआ ।
उनके द्वारा हस्ताक्षरित समझौते में अनेक प्रावधान थे, युद्ध विराम रेखा को सुनिश्चित करना इराकी सेनाओं द्वारा कुछ गतिविधियों को निषेध करना और आतंकवाद के लिए सहयोग प्राप्त करना। इनमें से सबसे बड़ी मांग बगदाद द्वारा अपने जनसंहारक हथियारों को नष्ट करना था। इस मांग की पूर्ति के लिए बगदाद को बाहरी निरीक्षकों को स्वीकार करना था जो आक्रामक हथियारों को खोजकर उन्हें नष्ट कर सकें।
सद्दाम हुसैन के शासन को ध्वस्त कर दिया गया इसलिए उनके जनरलों ने बिना किसी तर्क के इस शर्त को तत्काल मान लिया। उनके पास और कोई विकल्प नहीं था।
ठीक एक महीने बाद 9 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 687 में इन शर्तों को मान्य कर दिया। इस प्रस्ताव के अनुसार “ इराक को बिना शर्त स्वीकार करना था कि अन्तर्राष्ट्रीय निरीक्षण में वह सभी रासायनिक और जैविक हथियार, उसके सहायक, तथा इस सम्बन्ध में सभी शोधों के तत्वों और सहायक पद्धतियों के विकास, समर्थन और निर्माण सुविधाओं को नष्ट कर देगा ।
150 किलोमीटर की दूरी या अधिक की बैलिस्टिक मिसाइलों, उसके जुड़े पुर्जों तथा उनके निर्माण और उत्पादन की सुविधाओं को नष्ट कर दिया जायेगा।
संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अन्तर्गत ऐसे प्रावधान भी थे कि इराक की रसायनिक, जैविक और मिसाइल क्षमताओं का स्थल पर ही निरीक्षण करने के लिए एक विशेष आयोग गठित होगा, स्थलों को चुनने और और उन्हें नष्ट करने का यह कार्य 120 दिन में पूरा होना था।
परन्तु इसके बजाय सद्दाम हुसैन और उसके लोग साढे सात वर्षों तक लुका छिपी का खेल खेलते रहे। उन्होंने हथियार और दस्तावेज छुपा दिये, विशेष आयोग के सदस्यों को धमकाया और जनसंहारक हथियार विकसित किये वैसे यह कहना कठिन है कि उस समय में कितने जनसंहारक बनाये गये या नष्ट किये गये।
जो कुछ सद्दाम हुसैन ने किया उससे कहीं अधिक आत्म विश्वास अर्जित कर अन्त में उसने अगस्त 1998 में निरीक्षण बन्द करा दिया, उनकी सरकार ने घोषणा की कि उन्होंने प्रस्ताव 687 की शर्ते पूरी कर ली हैं और उन्होंने विशेष आयोग को इराक से बाहर कर दिया सद्दाम हुसैन अब किना निरीक्षक की बाधा के जनसंहारक हथियार बना सकते थे।
इस कदम से उन्होंने साफवान समझौते को तोड़ दिया। इस आक्रोश पर अमेरिकी की सही प्रतिक्रिया थी कि निरीक्षक पुन: वापस जनसंहारक हथियारों की गतिविधियों पर नजर रखें या फिर दूसरा रास्ता अपनाया जाये।
परन्तु 1998 का इतिहास कुहासे के अन्त का काल था और राष्ट्रपति क्लिंटन का ध्यान लेविंस्की प्रकरण के कारण बँट गया। इसके परिणामस्वरूप सद्दाम ने अपनी अवज्ञा जारी की। चार वर्षों तक किसी ने अंकुश नहीं लगाया कि वह कौन सा जनसंहारक हथियार विकसित कर रहा है।
इसके बाद 111 सितम्बर 2001 की घटना हुई और एक नया अमेरिकी विचार आया कि विश्व एक खतरनाक स्थान है। आश्वासनों को भंग करने को लेकर पुरानी लापरवाही अब स्वीकार नहीं थी। 2002 के आरम्भ में राष्ट्रपति बुश ने इराक पर दबाव बनाना आरम्भ कर किया कि या तो वह अपनी शर्तें पूरी करें या फिर परिणाम भुगतने को तैयार रहें।
परिणाम क्या हुआ ? बगदाद और संयुक्त राष्ट्र संघ के मध्य पुराना लुकाछिपी का खेल चलता रहा कि इससे अमेरीकी सरकार सन्तुष्ट हो जायेगी।
ऐसा हुआ नहीं। बुश प्रशासन ने संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षण के दावों को निरस्त कर वास्तविक नि:शस्त्रीकरण या शासन में बदलाव पर जोर दिया जाये। जब पहला नहीं हुआ तो दूसरी बात हुई ।
इस कथा की नैतिक शिक्षा है कि अंकल सैम ने अपने समझौते को लागू कराया भले कुछ वर्षों बाद। आप अपना वचन पूरा करिये या जाइये। यह एक सशक्त उदाहरण है जिसका अधिकाँश अमेरिकी नेताओं को पालन करना चाहिए।
इराक का अभियान अन्तत: हथियार के लिए नहीं है यह संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए भी नहीं है। यह इराकी स्वतन्त्रता के लिए भी नहीं है।
यह अमेरिका के वचनों को पूरा करना या फिर उसका परिणाम भुगतने से सम्बन्धित है।