राष्ट्रपति बुश द्वारा हाल में आरम्भ किया गया रोड मैप क्या पिछली असफल फिलीस्तीनी इजरायल कूटनीति से बेहतर सिद्ध होगा। निश्चित रूप से यदि यह कुछ गल्तियों को करने से परहेज रखें।
पिछले चक्र की असफलता का संकेत 13 सितम्बर 1993 को इसके आरम्भ से ही मिल गया था जब व्हाइट हाउस के लान में ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए परम्परागत प्रतिद्वन्द्वी यित्जाक राबिन और यासर अराफात ने आपस में हाथ मिलाया था।
इस पहल की मृत्यु उसी क्षण हो गई थी जब बहुत कम प्रसिद्घ जार्डन के टेलीविजन पर अराफात का पहले से रिकार्ड भाषण फिलीस्तीनियों के लिए सुनाया गया जिसमें अराफात ने उस दिन के समझौते के केन्द्र बिन्दु आतंकवाद त्यागने और इजरायल के साथ शान्ति का कोई उल्लेख नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने व्याख्या की कि किस प्रकार इजरायल को नष्ट करने का सन्दर्भ उनके समझौते के हस्ताक्षर के उपयुक्त है।
अराफात ने दर्शकों को 1974 में फिलीस्तीन लिबरेशन आर्गनाइजेशन के उस निर्णय की याद दिलाई कि इजरायल द्वारा छोड़े गये क्षेत्र या फिलीस्तीनी भूमि के किसी भाग पर राष्ट्रीय प्रधिकरण की स्थापना की जायेगी। उन्होंने ओस्लो समझौते को इजरायल को धीरे-धीरे नष्ट करने की दिशा में एक कदम के रूप में प्रस्तुत किया।
इसकी प्रतिक्रिया में राबिन को तत्काल बातचीत पर रोक लगा देनी चाहिए थी। उन्हें तत्काल हस्ताक्षरित समझौते को शून्य घोषित कर देना चाहिए था क्योंकि अराफात ने इसके मूल सिद्धान्त फिलीस्तीनियों द्वारा यहूदी राज्य को स्वीकार करने के साथ विश्वासघात किया है। राबिन को अपनी ओर से लेन देन को तब तक स्थगित रखना चाहिए था जब तक कि अराफात हिंसा के त्याग की बात स्वीकार न कर लें ।
परन्तु राबिन ने वास्तव में न तो उस समय और न ही अपने प्रधानमन्त्रित्व काल में कभी ऐसा कुछ किया और न ही उनके उत्तराधिकारियों ने। इसके विपरीत इजरायल के लोग अपने विरूद्ध हो रही हिंसा से इतने तटस्थ रहे कि एक ओर हिंसा होती रही और वे गाजा तथा पश्चिमी तट के बड़े हिस्सों से वापस होते रहे ।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है फिलीस्तीनियों को उनकी सबसे बड़ी छूट सितम्बर 2000 में आरम्भ हुई हिंसा के बाद दी गई। 1996 में मिडिल ईस्ट क्वारटर्ली में डगलस फीथ ( अब नीति गत विषयों के रक्षा उप सचिव ) ने इस अतार्किक दिखने वाले विषय का कारण बताया। उन्होंने दिखाया कि इजरायल का नेतृत्व वापसी की प्रक्रिया में लगा था न कि शान्ति प्रक्रिया में। एक राजनेता के शब्दों में पश्चिमी तट और गाजा एक बोझ और अभिशाप है। इसके प्रभावस्वरूप इजरायल की सरकार अपनी ओर से ही इन राज्य क्षेत्रों से वापस आ गई ।
अराफात ने इस वास्तविकता का शोषण हिंसा के त्याग और इजरायल को स्वीकार करने का बहाना करके किया जबकि किया इसके विपरीत। जब इजरायल ने फिलीस्तीनियों को बिना किसी दण्ड के समझौते को तोड़ने की अनुमति दी तो कोई आश्चर्य नहीं कि फिलीस्तीनियों में इस समझौते के प्रति असम्मान विकसित हुआ और इजरायल वासियों की हत्या करने का उनमें और साहस आ गया। अन्त में उन्होंने ‘ अक्सा इन्तिफादा ’ आरम्भ किया और ओस्लो चक्र का पतन हो गया ।
इस इतिहास का ‘ रोड मैप ’पर भी परिणाम होने वाला है। इस बार कूटनीति का संचालन जेरूसलम से नहीं वरन् वाशिंटन से हो रहा है इसलिए जब फिलीस्तीनी हिंसा भड़क रही है ( रोड मैप के अनावरण के बाद से सात इजरायली मारे जा चुके हैं ) तो अमेरिका के अधिकारियों को निर्णय करना है कि इसका उत्तर किस प्रकार देना है।
बुश ने ठीक ही इस बात पर जोर दिया है कि हिंसा का पूरी तरह समापन होना चाहिए उन्होंने इस बात का आश्वासन दिया है कि प्रतिबद्धताओं को पूरा करने पर जोर दिया जायेगा ।यहाँ स्मारकीय प्रश्न आगे है कि ऐसे वक्तव्य क्या ओस्लो की भाँति लफ्फाजी हैं या वास्तव में ये घटित हो सकते हैं ।
क्या होगा यदि –
यदि महमूद अब्बास का अश्वासन कि भड़कावे, हिंसा और घृणा के विरूद्ध सख्ती की जायेगी फिर चाहे वह किसी मंच पर और किसी प्रकार का हो, अराफात के पिछले आश्वासन की भाँति खोखला हुआ ।
इजरायल के विरूद्ध किसी भी प्रकार के आतंकवाद को त्यागना अर्थहीन हो ? हमास और इस्लामिक जिहाद इजरायलवासियों के विरूद्ध हिंसा में लिप्त हों ?
जिस प्रकार ओस्लो चक्र में हुआ इजरायल सरकार को प्रलोभन होगा कि फिलास्तीनियों के अतिक्रमण की अवहेलना की जाये ताकि हिंसा और भड़कावे को किसी प्रकार भी रोका जा सके । परन्तु यह व्यवहार पिछली बार भी असफल रहा और इस बार भी असफल रहेगा ।
इसके विपरीत यदि राष्ट्रपति बुश अपनी कूटनीति के इस चक्र को सफल होते देखना चाहते हैं तो इजरायलवासियों की हत्या पर अपने पूर्व के इजरायली प्रधानमन्त्रियों की अपेक्षा अधिक ध्यान देना होगा ।उन्हें चाहिए कि वे समय समय सारिणी में तब तक देर करें जब तक उनके द्वारा अपेक्षित आवश्यकता को फिलीस्तीनी पूरी तरह पूर्ण नहीं कर देते ।
व्हाइट हाउस ने पिछली बार इराकी उल्लंघन के लिए शून्य सहिष्णुता की अपनाई थी उसे फिलीस्तीनियों के साथ भी ऐसा ही करना चाहिए। कोई भी भड़काव या मान्यता प्राप्त हिंसा प्रक्रिया को ठण्डे बस्ते में डाल देगी ।
ऐसा करने से बुश प्रशासन फिलीस्तीन – इजरायल सुलह को साथ लाने में सहायक होंगे। परन्तु हिंसा की अवहेलना करने से स्थितियों उससे भी बदतर होंगी जैसी वे आज हैं ।