4 जून को मध्य पूर्व की एक शिखर बैठक में राष्टपति ब्रुश ने कहा , हमारा उद्देश्य इजरायल और फिलीस्तीन दो राज्य हैं जो शान्ति और सुरक्षा के साथ-साथ रहें । उसके बाद पिछले 10 दिनों में हिंसा में हुई वृद्धि और 63 लोगों की मृत्यु के उपरान्त भी उन्होंने रविवार को अपना विश्वास व्यक्त किया वे शान्तिपूर्ण फिलीस्तीन राज्य चाहते हैं जो इजरायल के साथ – साथ रहे हालंकि उन्होंने इतना अवश्य जोड़ा कि हमें बहुत अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।
बुश का उद्देश्य अरब – इजरायल समाधान की दिशा में आधी शताब्दी से चल रही है खोज की दिशा में एक और कूटनीति पहल है। परन्तु यह काफी कुछ है। यह उनके राष्ट्रपतीय काल का सबसे साहसिक और आश्चर्यजनक कदम है। और ऐसा इसलिए है –
यह आश्चर्यजनक इस लिए है कि राष्टपति बनने के दो वर्षों के बाद वे इस मुद्दे से अलग रहे। निश्चित रूप से वे मध्य पूर्व के नेताओं से मिलते रहे, भाषण देते रहे परन्तु सामान्य रूप उनका व्यवहार रहा कि फिलीस्तीनियों और इजरायलवासियों को अपना मसला आपस में ही देखने दिया जाये।
उसके बाद हाल के सत्ताहों में अरब – इजरायल कूटनीति बड़ी तेजी से सतह से केन्द्र में आ गयी और प्रशासन के लिए सदैव से अधिक प्राथमिकता में आ गयी ।
दूसरा राष्ट्रपति 2001 के अन्त में लोगों का यह विचार अपनाकर चौंका दिया कि अरब –इजरायल समस्या का समाधान एक फिलीस्तीनी राज्य के निर्माण से ही हो सकता है। यह ऐसा विचार था जिसे 1947 में इजरायल के अस्तित्वमान होने से पूर्व किसी भी अमेरिकी सरकार ने नीतिगत स्वरूप नहीं दिया था।
तीसरा, यह योजना व्हाइट हाउस के अधिकारियों के सर्वानुमति निर्मिति, राजा विभाग के प्रस्तावों, थिंक टैंक के अध्ययनों और कांग्रेस की पहल पर नहीं आई है। इसके बजाय यह राष्ट्रपति के व्यक्तिगत दृष्टि को प्रकट करती है।
चौथा – फिलीस्तीनी राज्य के निर्माण का लक्ष्य आश्चर्यजनक है क्योंकि इससे घरेलू गणित नीचे की ओर आता है फिलाडेल्फिया एक्सपोनेन्ट में जोनाथन टोविन ने पर्यवेक्षण किया है “ कि बुश के विचार पर दक्षिणपंथ और वामपंथ दोनों ने अपने विचार दिये हैं ’’। इसी प्रकार परम्परावादी जो फिलीस्तीन में लोकतन्त्र की राष्ट्रपति की मांग पर तालियाँ पीट रहे थे, फिलीस्तीनी राज्य के इजरायल की सुरक्षा पर प्रभाव को लेकर चिन्तित हैं। विचित्र बात है कि उदारवादी जो सामान्य रूप से उनके समर्थक नहीं माने जाते उन्होंने उत्साह पूर्वक फिलीतीनी राज्य के उद्देश्य का समर्थन किया है ।
अन्त में बुश ने अरब-इजरायल कूटनीति के मध्यस्थों के लिए एक नियम पुस्तिका फेंकी है। नियमं में उन्होंने इन चीजो को नजरअन्दाज किया है –
अन्तिम स्थिति के सम्बन्ध में पहले से निर्णय न करें- सामान्य रूप से राष्ट्रपति व्यापक आशयों के साथ स्वयं को जोड़े रखते हैं और इसके विशेष पक्षों को युद्धरत पक्षों के लिए छोड़ देते हैं। 1991 में व्यापक आशय का संकेत राष्टपति बुश ने दिया था, समय आ गया है कि अरब-इजरायल संघर्ष को समाप्त किया जाये ’’।
कोई समझौता थोपने का प्रयास न हो – 1977 में वान्स – ग्रामोंयको वार्ता असफल होने के उपरान्त अमेरिकी सरकार ने अरब-इजरायल विवाद के समाधान के लिये कोई अन्तर्राष्ट्रीय मानक नहीं तय किया इस सम्बन्ध में 1990 में जेम्स बेकर का प्रसिद्ध वक्तव्य है जब उन्होंने व्हाइट हाउस का दूरभाष देकर इजरायल से कहा था कि जब आप शान्ति के लिए गम्भीर हों तो हमें फोन करें।
स्वयं को समय सीमा में आवद्ध न करें- कैलैण्डर आधारित उद्देश्य निर्धारित करने पर वार्ताकार हमेशा धोखा खाते हैं कि जब अक्सर तिथियाँ निकल जाती हैं, उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता।
नेताओं का चयन न करें – अभी तक अमेरिका के राष्ट्रपतियों ने अरब के अधिनायकों को स्वीकार किया है। बुश प्रशासन ( अफगानिशतान और इराक में उत्पीड़कों को हटाने के बाद) यासर अराफात को किनारे लगाकर उसके स्थान पर उनके उप महमूद अब्बास को स्थान दिया है।
अन्त में राष्टपति को न लगाया जाये – इससे पहले कि राष्ट्रपति इस मामले में शामिल हों उससे पूर्व निचले श्रेणी के अध्कारियों को स्थिति का जायजा लेने दिया जाये। राष्ट्रपति द्वारा आरम्भ से ही स्वयं को शामिल कर लेने को का अर्थ है कि बिना नेट के उच्च स्तर वैद्युतिक कूटनीति। अमेरिकी कूटनीति पर आधिकारिक स्थिति वाले वाशिंगटन इन्स्टीट्यूट के राबर्ड सैटलाफ ने इसे पुरानी अमेरिकी नीतियों में क्रान्तिकारी बदलाव की संज्ञा दी है।
जैसा कि आज तक के राष्ट्रपतीय काल में अरब-इजरायल कूटनीति ने अनेक उतार-चढ़ाव के अवसर दिये हैं वैसा ही इस बार भी है। 1978 में जिमी कार्टर के समय में मिस्र और इजरायल के मध्य कैम्प डेविड में समझौता एक बेहतरीन क्षण था। 1984 में लेबनान से अमेरिकी सेना की वापसी का रोनाल्ड रीगन का निर्णय बुरा क्षण था। बिल क्लिंटन ने 1993 में ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर कर प्रसन्नता अर्जित की तो 2000 में कैम्प डेविड शिखर वार्ता असफल होते भी देखा।
इजरायल और फिलीस्तान का साथ- साथ शान्ति और सुरक्षा से रहना ’’ संक्षेप में ऐसा विषय है जिसके बारे में आशा की जाती है कि वह व्यापक रूप में जार्ज डब्ल्यू बुश के राष्ट्रपतीय काल को प्रभावित करेगा ।