पिछले सप्ताह यू.एस.कांग्रेस ने 45 वर्षों में पहली बार परम्परा तोड़ते हुये इस बात की समालोचना के लिए विरोधी स्वरों को अनुमति दी कि विदेशी संस्कृति और भाषाओं के अध्ययन के लिए खर्च हो रही आर्थिक सहायता से राष्टीय हितों की पूर्ति या अकादमिक उद्देश्य के लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो रही है। इस विषय का कुछ प्रमुख मुद्दों पर असर पड़ा कि अमेरिका के लोग अपनों को और बाहरी विश्व को किस प्रकार देखते हैं ।
अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन के लिए संघीय आर्थिक सहायता ( सरकारी क्षेत्र में शीर्षक छात्र वृत्ति) अपेक्षा कृत नई बात है, यह शुरूआत 1959 में तब हुई जब शीत युद्ध के तनाव से अमेरिका में शिकार होने की भावना समा गई। इसका उद्देश्य ज्ञानी विशेषज्ञों को सरकारों, व्यवसाय, उद्योग और शिक्षा के क्षेत्र में देने का था ( मुझे 70 के मध्य में यह छात्र वृत्ति मिली थी) ।
शीर्षक 6 कार्यक्रम पर 86.2 मिलियन डालर वार्षिक का बजट खर्च किया जाता है जो संघीय बजट का 0.005 प्रतिशत है परन्तु देश के 118 स्रोत केन्दों को आर्थिक सहायता प्रदान करता है तथा उन्हें संस्तुति भी देता है जो अन्य दानदाताओं को प्रेरित करते हैं विश्वविद्यालय शीघ्र ही अपने स्नातक छात्रों और क्षेत्र अध्ययन केन्द्रों के लिए इस सब्सिडी पर निर्भर हो गये।
यही कारण है पिछले गुरूवार को "International Programs in Higher Education and Questions of Bias" पर चुनी गई शिक्षा पर संसद की उपसमिति ने जब सुनवाई की तो यह सम्भावित रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय था। इसने उस आर्थिक सहायता को चुनौती दी । यह घटना स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोध साथी स्टेनली कर्ज का मामला था जिन्होंने शीर्षक 6 केन्द्रों के साथ कुछ समस्याओं की व्याख्या की । दक्षिण एशिया के नृतत्वशास्त्री कर्ज ने 11 सितम्बर के पश्चात मध्य-पूर्व अध्ययन की व्यवस्थित समालोचना प्रस्तुत की है।
उन्होंने अपने साक्ष्य में कहा कि इस क्षेत्र पर उत्तर उपनिवेशवादी लोगों का प्रभुत्व है।
कोलम्बिया विश्वविद्यालय के एडवर्ड द्वारा मूल रूप से विकसित कर्ज के शब्दों में “ किसी भी विद्वान के लिए यह अनैतिक है कि वह अमेरिकी सत्ता की सेवा में विदेशी भाषा और संस्कृति का ज्ञान अर्जित करे ’’।
उत्तर उपनिवेश सिद्धान्त का प्रभुत्व होने के दो प्रमुख परिणाम हैं –
अमेरिका समर्थक आवाजों का शामिल नहीं होना। कर्ज ने अनेक उदाहरण दिये हैं। न्यूयार्क विश्वविद्यालय के मध्य-पूर्व केन्द्र की वेबसाइट 11 सितम्बर और इराक के सम्बन्ध में इसकी प्रत्येक टिप्पणी में इसने राजनीतिक पक्ष लिया है और उन्होंने पाया कि “तीक्ष्ण रूप से अमेरिकी नीतियों की आलोचना की गई है ’’।
अमेरिका सरकार के साथ सहयोग करने वाले विद्वानों की निन्दा। उदाहरण के लिए मध्य- पूर्व अध्ययन संस्थान ने राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर ठोस निर्णय करने के लिए पेन्टागन सहायता प्राप्त अमेरिकी सरकार को सहायता देने के लिए पेशेवरों का कैडर विकसित करने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा शिक्षा कार्यक्रम का बहिष्कार किया ।
दूसरे शब्दों में शीर्षक 6 अनेक अवसरों पर सरकार को उपलब्ध होने वाले विशेषज्ञों को कम करता है।
इस पक्षपात पूर्ण और अलग-थलग होने की परिपाटी का प्रतिवाद करने के लिए कर्ज ने कांग्रेस को तीन कदम प्रस्तावित किये हैं –
एक सुपरवाइजर बोर्ड का गठन किया जाये तो अन्य नियुक्त किये गये लोगों और प्रशासकीय शाखा प्रतिनिधि से मिलकर बना हो जो अन्य संघीय आर्थिक सहायता प्राप्त कार्यक्रमों की भाँति शीर्षक 6 का प्रबन्धन करें।
उच्च शिक्षा अधिनियम में संशोधन पर NSEP का बहिष्कार करने वाले विश्वविद्यालय या केन्द्र को शीर्षक 6 आर्थिक सहायता न दी जाये।
क्षेत्रीय अध्ययन के प्रति पक्षपात के असन्तोष को पंजीकृत करने के लिए शीर्षक 6 की आवंटित राशि घटा दी जाये। 11 सितम्बर के पश्चात शीर्षक 6 के लिए 20 मिलियन डालर राशि घटाकर इसे भाषा संस्थान मान्टेररी, कालिफ और रक्षा तथा खुफिया एजेन्सियों में कैरियर बनाने वालों को प्रोत्साहित करने में खर्च की जाये।
इस शक्तिशाली समालोचना से सामना होने के उपरान्त सुनवाई में शिक्षा लाबी के टैरी हर्टल ने झुककर अपने लोगों के काल्पनिक राष्ट्रभक्ति की दुहाई दी। उन्होंने कर्ज के मामले को खारिज करते हुए दावा किया कि इतिहासकार और राजनीति विज्ञानी उत्तर उपनिवेश सिद्धान्त को उपयोगी नहीं मानते। फेलो ने इस बात का बहाना किया कि एडवर्ड सेड का कार्य एक दशक पूर्व अपनी लोकप्रियता के शिखर पर पहुँच गया और तब से नीचे गिर रहा है।
सेड को इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला लेखक माना जाता है। जैसा कि मार्टिन क्रेमर ने संकेत किया है “ आज दो अकादमिकों में ( एक नोम चोमस्की ) वही हैं जो किसी भी परिसर में भीड़ एकत्र करते हैं और तालियाँ प्राप्त करते हैं।
हर्टल गलत हैं और कर्ज सही। कर्ज ने समस्या को समझा है। मध्य-पूर्व विशेषज्ञों के बीच अमेरिका विरोध के लिए उत्तर उपानिवेश सिद्धान्त से परे भी स्रोत हैं और वह सशक्त अमेरिका इजरायल सम्बन्ध पर अक्रोश और ईरानी शासन के लिए सहानुभूति ।