पिछले सप्ताह बुश प्रशासन के अधिकारियों के साथ व्यक्तिगत बातचीत में फिलीस्तीनी – इजरायल हिंसा को रोकने के लिए अमेरिका प्रायोजित ‘ रोडमैप ’के सम्बन्ध में उनके वास्तविकतावाद से मैं काफी प्रभावित हुआ।
ये चिन्ताये फिलीस्तीनी-इजरायली कूटनीति के सात वर्षों के ओस्लो समझौते से पनपी है जब संघर्ष को का निदान निकालने के लिए अच्छे आशय के साथ आरम्भ इजरायल की पहल ने इसे और बुरा ही किया। फिलीस्तीनी-इजरायल समझौता वार्ताओं से मैंने दो शिक्षायें ग्रहण की है – जबतक फिलीस्तीनी इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते यह कागज का एक टुकड़ा ही सिद्ध होगा ।
जब फिलीस्तीनियों के को आतंकवाद छोड़ने के लिए नहीं कहा जाता तब तक उनके साथ कोई भी समझौता हिंसा को बढ़ाने वाला ही होगा
मेरी सतर्कता आज इन्हीं दोनों बिन्दुओं से जुड़ी है कि यहूदी राज्य को नष्ट करने की फिलीस्तीनी महत्वाकांक्षा अब भी जीवित है। साथ ही अमेरिका द्वारा फिलीस्तीन को जवाबदेही के लिए उसी प्रकार प्रभावी ढंग से विवश करना जैसा इजरायल को अब भी संदेह के घेरे में है। अमेरिका की देख रेख और फिलीस्तीनी आशय पर बार-बार प्रश्न किए जाने पर अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों ने कुछ कठोर विश्लेषण किये ।
इजरायल को नष्ट करने के फिलीस्तीनी आशय पर उनमें राज्य सचिव कोलिन पावेल का हाल का वक्तव्य ध्वनित हुआ कि उन्हें उन आतंकवादी संगठनों की चिन्ता है जिन्होंने इजरायल राज्य को नष्ट करने की आकांक्षा छोड़ी नहीं है । हस्ताक्षरित समझौते को लागू कराये जाने की आवश्यकता पर दोनों अधिकारियों ने कहा कि यदि फिलीस्तीनी अपनी बात पर खरे नहीं उतरते तो रोडमैप कूटनीति एक स्तर पर जाकर रूक जायेगी। उनमें से एक ने कहा कि यदि फिलीस्तीन उनके साथ विश्वासघात करता है तो इजरायल द्वारा अपने वादे पूरे करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
मैं उनकी संजीदा भावनाओं से विशेष रूप से प्रसन्न हुआ। जैसा कि एक अधिकारी ने कहा “ हमें शान्ति की अपेक्षा है ’’ । उन्होंने जोर देकर कहा कि अमेरिका के राष्टपति इस आशा में हाथ धरे रहकर नहीं बैठ सकते कि फिलीस्तीनियों से जैसा कहा गया है वे वैसा ही करेगें। उन्होंने इस प्रकल्प के सम्बन्ध में विश्वासपूर्ण जागरूकता दिखाई की यह अवसर की बात है और विपरीत परिस्थितियों में इसके सफल होने की सम्भावना कम है। मेरे संशकित कानों को यह सुनकर अच्छा लगा ।
फिर भी मुझे चिन्ता है। क्या मानवीय स्वभाव और सरकारी अधिकारियों की अपरिवर्तनशील प्रवृत्ति मिलकर चीजों को तेजी से आगे बढ़ाने के लिये ऊबड़-खाबड़ रास्ते चलने के लिए बुश प्रशासन को प्रलोभन देंगें। कल्पना करिये कि फिलीस्तीनी हिंसा जारी रहती है तो क्या कूटनीति समयसारिणी के पक्ष में नजर अंदाज करने का लोभ नहीं होगा। ऐसी ऐतिहासिक परिपाटी है जब लोकतान्त्रिक शक्तियो ने अधिनायकवादी शक्तियों से संघर्ष समाप्त करने के लिए समझौते किये हैं।
इसका आरम्भ 1930 में नाजी जर्मनी का तुष्टीकरण करने का ब्रिटिश-फ्रेन्च प्रयास, 1970 में अमेरिका सोवियत प्रयास, 1990 में इजरायल-फिलीस्तीन शान्ति प्रक्रिया और 1990 में उत्तरी कोरिया के साथ दक्षिण केरिया की सूर्योदय नीति। इन सभी मामलों में जब तक बड़ी आतंकी घटना नहीं हुई तब तक समझौते के पालन की दिशा में कदम बढ़ते रहे ( जर्मनी द्वारा पोलैण्ड पर आक्रमण अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण और दूसरा इन्तिफादा )
सिद्धान्तत: अमेरिका के रणनीतिकार इस परिपाटी को भंग कर सकते हैं। यदि फिलीस्तीनी हिंसा इजरायल विरूद्ध जारी रहती है तो इस तरह कुछ घोषणा कर सकते हैं “ हमने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया परन्तु फिलीस्तीनियों ने हमें असफल कर दिया। रोडमैप सिद्धान्त रूप में अच्छी चीज है परन्तु जब तक वे इसे स्वीकार नहीं करते इसे स्थगित रखा जाये। फिलहाल हम इसे छोड़ रहे हैं ’’ ।
क्या वे ऐसा कर सकते हैं ? हमें जल्द ही काफी कुछ देखने को मिलेगा क्योंकि 29 जून को तीन फिलीस्तीनी आतंकवादी संगठनों द्वारा अल्पकालित युद्ध विराम की घोषणा के उपरान्त और फिलीस्तीनी अथारिटी द्वारा उन संगठनों के विरूद्ध कार्रवाई के हस्ताक्षर के बाद भी हिंसा जारी है।
इजरायल के रक्षा मंत्री ने संक्षेप में इस स्थिति को इस प्रकार कहा “ आतंकवादी चेतावनियों और उकसावे में काफी कमी आई है परन्तु अपनी बात पर खरा उतरने के लिए फिलीस्तीनियो को और अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है’’।
बातों पर खरा उतरने की कितनी आवश्यकता अमेरिकी सरकार समझ रही है। इस सम्बन्ध में एक परेशानी पूर्ण स्थिति एक सप्ताह पहले सामने आयी जब पावेल ने कहा, हम छोटी घटनाओं या एक घटना को रोडमैप के वचन को ध्वस्त होने का कारण नहीं बनने दे सकते ’’।
ओस्लो की फिसलन कुछ ही दूर पर है और इसकी पुरावृत्ति रोकने के लिए अमेरिका के अधिकारियों को छोटी बड़ी सभी घटनाओं को अस्वीकार करना होगा
सभी को लक्ष्य को पूरी तरह स्पष्ट होना चाहिए कि लक्ष्य और समझौते करना नहीं वरन् दीर्घगामी स्तर पर आतंकवाद समाप्त करना और इजरायल का सम्प्रभु यहूदी राज्य के रूप में फिलीस्तीनियों से स्वीकृति लेना है।