1994 में मध्य – पूर्व के लोग काफी उलझन में थे जब अमेरिका के कुछ अग्रणी राजनेताओं ने सीनेटर जेस हेम्स और न्यूट गिनग्रिच सहित फिलीस्तीनियों के सम्बन्ध में इजरायल की सरकार से भी अधिक कठोर स्थिति को आगे किया। उदाहरण के लिए वे पी.एल ओ को अमेरिका की आर्थिक सहायता दिये जाने के विरोधी जेरूसलम से अधिक थे और उन्होंने इस बात के लिए भी उत्सुकता दिखाई कि अमेरिकी दूतावास को तेल अबीब से जेरूसलम हटा दिया जाये।
एक अरबी समाचार पत्र अश-शर्क अल-असवत ने सामान्य कुण्ठा को उस समय पकड़ा जब उन्होंने पाया कि इजरायल की सर्वाधिक राष्ट्रवादी पार्टी लिकुड के इजरायल में पराजित होने के उपरान्त भी वाशिंगटन में उसका दबदबा है।
यही परिपाटी एक बार पुन: दिखाई पड़ रही है जब गैरी बाउर, जेरी फालवेल और रिचर्ड लैण्ड जैसे ईसाई नेताओं ने मुखर रूप से अपने इजरायली सहयोगियों की अपेक्षा फिलीस्तीनी – इजरायल कूटनीति के रोड मैप का विरोध किया है। परन्तु इजरायल के साथ ईसाइयों के खड़े होने की साहसिक प्रवृत्ति आश्चर्यजनक नहीं है और यह दो शताब्दी पुराने इजरायलवाद के ईसाई प्रकार को प्रकट करती है ।
यहूदी राज्य के लिए ईसाई समर्थन का मूल इंग्लैण्ड में स्थित है जो विक्टोरिया के समय का प्रमुख आन्दोलन था। 1840 में ब्रिटेन के विदेश सचिव लार्ड पामर्स्टन ने इस बात की जोरदार संस्तुति की थी कि उस समय फिलीस्तीन पर शासन कर रही ओटोमन सरकार यूरोप से यहूदियों को फिलीस्तीन में आने को प्रेरित करे। 1853 में लार्ड शाफ्टसबरी ने एक वाक्यांश प्रचलित किया “ बिना लोगों की भूमि बिना भूमि के लोगों के लिए ।”
जार्ज इलियट ने 1876 में इसे डैनियल डेरोन्डा के साथ मिलकर उपन्यास का स्वरूप दिया। 1891 में सर एडम स्मिथ ने अपनी आधिकारिक हिस्टोरिकल जिओग्राफी ऑफ द होली लैण्ड में कहा कि फिलीस्तीन में ओटोमन को बाहर कर यहूदियों को प्रवेश कराना चाहिए जिन्होंने फिलीस्तीन को वह सब दिया है। जिसके कारण विश्व में इसका मूल्य है।
इसी वर्ष 1891 में यहूदी राज्य के लिए अमेरिका में संभवत: पहला ईसाई समर्थन देखा गया जब ब्लैक स्टोन मेमोरियल नामक एक याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संसद के स्पीकर, उस समय के सबसे बड़े उद्योगपतियों , प्रसिद्ध धार्मिक व्यक्तियों, लेखकों और पत्रकारों सहित 413 लोगों नें हस्ताक्षर किये।
अमेरिका के राष्टपति बेन्जामिन हैरिसन को सम्बोधित इस स्मारक में राज्य सचिव जेम्स जी. ब्लेन ने उनसे कहा कि वे अपने प्रभाव और पद का प्रयोग करते हुए इजरायलवासियों की स्थिति पर विचार तथा उनके पुराने घर फिलीस्तीन पर दावे के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करें। एक इतिहासकार पाल चार्ल्स मर्कली के अनुसार ब्लैक स्टोन मेमोरियल का प्रभाव यह हुआ कि लोगों के मास्तिष्क में यह विचार बैठ गया फिलीस्तीन में यहूदियो की वापसी का विचार अमेरिका द्वारा प्रायोजित है ’’।
नवम्बर 1917 में बालफोर घोषणा के द्वारा जब ब्रिटिश सरकार ने घोषणा कि वह यहूदी लोगों के लिए फिलीस्तीन में एक राष्ट्रीय गृह की स्थापना के पक्ष में है तो यह ईसाई इजरायलवाद की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कार्य था। दूसरा कार्य हेनरी एस ट्रूमैन द्वारा अपने प्रशासन के विरोध के बाद भी इजरायल को मान्यता देना था।उनके जीवनीकार माइकल टी.बेन्सन ने खोज निकाला है कि ट्रूमैन का इजरायल समर्थक व्यवहार मूल रूप से मानवीय, नैतिक और भावनात्मक आधार पर था उनमें से अनेक कारण राष्ट्रपति के धार्मिक विश्वास और बाइबिल के प्रति उनकी निकटता के कारण था ’’।
मीडिया ने हाल में ईसाई इजरायलवाद पर इस प्रकार प्रकाश डाला है मानों यह नई बात हो ( वालस्ट्रीट जर्नल में प्रथम पृष्ठ पर एक आलेख में छापा है कि किस प्रकार इजरायल परम्परावादी ईसाई दक्षिण पंथियों का पसंदीदा कार्य बना )
वास्तविक कहानी तो यह है कि किस प्रकार अमेरिका में ईसाई इजरायलवादी इजरायल का समर्थन करते हुए एक जुट होकर इजरायल समर्थक और इजरायलवादी हो रहे हैं और वह भी अनेक यहूदी समुदायों से अधिक ।
उन लोगों को जिन्हें आश्चर्य हो रहा है कि वाशिंगटन इस सम्बन्ध में यूरोपीय देशों से भिन्न नीति क्यों अपना रहा है तो उन्हें उत्तर मिल जाना चाहिए कि इन दिनों ईसाई इजरायलवादी कितने शक्तिशाली हैं जब परम्परावादी रिपब्लिकन जार्ज डब्ल्यू बुश राष्ट्रपति हैं ।
एक इजरायलवादी विरोधी लेखक ग्रेस हालसेल ने इस तथ्य को स्वीकार किया है और वाशिंगटन में ईसाई इजरायलवादियों के प्रभाव को यहूदी इजरायलवादियों से अधिक खतरनाक माना है। इसे सकारात्मक रूप में देखें तो अमेरिका के ईसाई इजरायलवादी यहूदी राज्य के लिए इजरायल के सैन्य बल से कहीं अधिक बड़ी रणनीतिक सम्पत्ति हैं।