11 सितम्बर के दार्शनिक ली हैरिस का आकलन है कि 11 सितम्बर की घटना के उपरान्त अमेरिका में नीतिगत बहस कुछ समस्याओं पर मूल रूप से केन्द्रित है कट्टरपंथी इस्लाम, आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध तथा इराक में सद्दाम हुसैन के हाथ में जनसंहारक हथियार ”
हैरिस ने Tech control station.com में एक लेख लिखा है कि हमें अनुमान होता है कि ये तीनों समस्यायें आपस में एक दूसरे से जुड़ी हैं ? उन्होंने इन अलग-अलग दिखने वाले मुद्दों में नाजुक सम्बन्ध बताया है और यह उनकी समान मुस्लिम पहचान नहीं है बल्कि इनका सम्बन्ध इनकी ऐसी शक्ति है जिसे उन्होंने अर्जित नहीं किया है।
इससे पहले इतिहास में मानवता के समक्ष उत्पन्न खतरों में एक बात समान थी। ये खतरे उनके द्वारा उत्पन्न किये गये थे जिन ऐतिहासिक गुटों ने भौतिक और सांस्कृतिक हथियार बनाये और उन हथियारों से अपने शत्रुओं को भयभीत करते रहे। राज्यों ने अपने परिश्रम, त्याग सत्ता प्राप्त की, अपने शत्रु विकसित किए, अपने सैनिकों को प्रशिक्षण दिया और अपने हथियारों का निर्माण किया।
परन्तु मुस्लिम विश्व से उत्पन्न खतरों के सम्बन्ध में ऐसा नहीं कहा जा सकता। अलकायदा हवाई जहाजों और भवनों को नष्ट करता है परन्तु सम्भवत: उनका निर्माण नहीं कर सकता। फिलीस्तीनी अथारिटी इजरायलवासियों को मारने के अतिरिक्त अन्य सभी क्षेत्रों में असफल रहा है। सद्दाम हुसैन के इराक का विकास उस धन से हो रहा है जो पेट्रोल के बदले पश्चिम के देश उसे देते हैं और इस पेट्रोल को न तो खोजने में और निकालने में इराकियों का कोई योगदान रहा है।
तो क्यों यें तीनों सामान्य अक्षमता के बाद भी बदली परिस्थितियों को इस प्रकार चला रहें हैं मानों वे परम्परागत अर्थों में सत्ता हों।
हैरिस ने इस विषमता का उत्तर देते हुए कहा है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि पश्चिम काफी कड़ाई से नियमों के दायरे में रहता है जबकि अलकादा, फिलीस्तीन और सद्दाम हुसैन को बिना किसी नियम के खेलने की अनुमति देता है। हम अपनी शताब्दियों की सभ्यता से अभिभूत होकर स्वयं को संयमित रखतें हैं जबकि वे अधिकतम बर्बरता अपनाते हैं।
हैरिस ने मुझसे कहा कि यदि अमेरिका ने 11 सितम्बर के ढ़ग से प्रत्युत्तर दिया होता तो इस्लाम के पवित्र स्थलों को नष्ट किया जाता। यदि इजराइल ने अराफात का हत्या का तरीका अपनाया होता तो पश्चिमी तट और गाजा फिलीस्तीनियों से मुक्त होता। यदि पश्चिम ने इराक के साथ वही किया होता जो उसने कुवैत के साथ किया तो इराक की राजनीति मिला ली गई होती और इसके तेल नियन्त्रणों को कब्जे में ले लिया गया होता।
हैरिस का तर्क है कि यद्यपि प्रशंसनीय है कि पश्चिम मुस्लिम बर्बरता के अनुरूप प्रत्युत्तर नहीं दे रहा है हालांकि बर्बरता की काफी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है इससे मुस्लिम कट्टरपंथियों को विभिन्न स्तरों के कल्पनालोक में विचरण करने का अवसर प्राप्त होता है। उन्हें सत्ता प्राप्त हो रही है जबकि उन्हें यह सफलता पश्चिम के कट्टर सभ्यतागत संयम के कारण प्राप्त हो रही है।
इस भ्रम में मुस्लिम कट्टरपंथियों को प्रेरणा मिलती है कि वे इस गलती को पाल लें कि उनकी सफलता किसी पुण्य या ईश्वर के सहयोग पर अवलम्बित है। इसके विपरीत पश्चिम के संयम को वे इसके पराभव का प्रतीक मानते हैं इस कारण ये कल्पनावादी स्वयं को और गिरे हुए और खतरनाक व्यवहारों की ओर ले जाते हैं ।
पश्चिम के लोग विद्युत ग्रिड, कम्प्यूटर और जल भंडार की सुरक्षा की चिन्ता करते हैं परन्तु पश्चिमी महानगरों पर परमाणु आक्रमण दूर की बात नहीं है। दूसरे शब्दों में पश्चिमी संयम इसके शक्षुओं को उनके कार्य के अनुरूप दण्ड से बचाता है और अनजाने में ही उनके गन्दे व्यवहार को प्रश्रय देता है।
इस पद्धति को उलटने के लिए पश्चिम को कुछ कम अच्छे तरीकों का प्रयोग करना होगा जिसका प्रयोग उसकी प्राथमिकता में नहीं है। इस सामान्य विषय पर विचारपूर्ण पुस्तक 2004 के आरम्भ में फ्री प्रेस की ओर से आ रही है और इस पुस्तक में लेखक हैरिस ने इस विषय से संघर्ष किया है प्राचीन यूरोप और अधिकांश विश्लेषक परिवर्तन को भांपने में असफल रहे हैं। बुश प्रशासन ने कुछ अर्थों में इसे समझा है और अनेक स्तरों पर प्राचीन संयम से बिना क्षमा भाव और सामयिक जुड़ाव काटा है।
पहले आक्रमण – कल्पनालोक के नेताओं ( तालिबान और सद्दाम हुसेन, यासर अराफात)
को बाहर करो इससे पहले कि वे और क्षति पहुँचायें।
पुनर्वास – उनकी राजनीति को ध्वस्त करो और सभ्यता के स्तर से उनका पुननिर्माण करो।
दोहरेमानक थोपो – इस धारणा पर कि अमेरिकी सरकार को अन्य एजेंन्टों के विरूद्ध शक्ति प्रयोग का अकेले अधिकार है जहाँ अन्य लोग शक्ति प्रयोग नहीं कर सकते।
संक्षेप में हैरिस के अनुसार जब तक इस्लामी कल्पनावादी नियम से नहीं खेलने लगते वाशिंगटन को बिना नियम के खेलने को तैयार रहना चाहिए। कम सभ्य होने की यह अपील अमेरिका में कुछ लोगों को चुभ सकती है परन्तु अमेरिका की नई कठोर विदेश नीति के आन्तरिक तर्क की यह सन्तोषजनक ब्याख्या है।