ब्रिटेन के एक घोर वामपंथी समाचार पत्र गार्जियन में रिचर्ड इन्ग्राम्स नामक स्तम्भकार ने लिखा की उन्होंने एक आदत बना ली है जब भी सम्पादक के नाम कोई पत्र इजराइयल की सरकार के समर्थन में होता है तो मैं देखता हूँ कि यदि उसमें हस्ताक्षर में किसी यहूदी का नाम है तो मैं उसे पढता ही नहीं हूँ।
इस शर्मनाक वाक्य के चलते संयुक्त राज्य ब्रिटेन में सेमेटिक विरोध पर हल्का सा तूफान आया। परन्तु इन्ग्राम्स के अन्तर्निहित अनुमान का क्या कि यहूदी समान रूप से शेरोन सरकार का समर्थन करतें हैं ।
पहली नजर में तो यह ठीक लगता है। इजराइयल के यहूदियों ने एरियल शेरोन को सत्ता सौपी और इजरायल मूल के प्रवासी संगठन जेरूसलम से ही अपनी प्रेरणा ग्रहण करते हैं। परन्तु निकट से देखने पर पता चलता है कि यह अनुमान मूर्खतापूर्ण है। यहूदियों के मध्य ही शेरोन और इजरायल के कटु आलोचक भी हैं।
इजरायल की मान्यता को कम करने सम्बन्धी अकादमिक अभियान इस सम्बन्ध में प्रमुख उदाहरण है जिसमें यहूदी लोग सबसे आगे हैं। नोम चोमस्की ने अमेरिका के विश्व विद्यालयों में इजरायल से निवेश हटाने की माँग आरम्भ कर दी और अन्य यहूदियों ने भी उनका अनुकरण कर इस विषय पर दबाव बनाना आरम्भ किया। ब्रिटेन में स्टीवन और हिलेरी रोज ने इजरायल के अकादमिक बहिष्कार की पहल की तथा जान डोकर ने आस्ट्रेलिया में यही भूमिका निभाई। मध्य पूर्व विषय के विशेषज्ञों जोयल वीनिन, इयान लास्टिक, सारा राय और अवीशालेम ने शेरोन विरोध का नेतृत्व किया।
नार्मन फिन्केलस्टीन, थामस फ्रीडमैन, माइकल लर्नर, बुद्धिजीवी मुखर आलोचक हैं।
वकील स्टेनली कोहन इजरायल के शत्रुओं का प्रतिनिधितित्व करने में विशेषता रखते हैं। ब्रिटेन के ऊना किंग कहते हैं “ नरसंहार की अस्थियों से बचने के बाद वारसा में इसी प्रकृति के और लोग उसे नरक में मिल गये हैं ’’।
विश्व यहूदी कांग्रेस के अध्यक्ष एडगर ब्रान्फमैन ने सार्वजनिक रूप से शेरोन सरकार के साथ संघर्ष किया। एक सूची में मुख्य रुप से यहूदी और इजरायल की शेरोन विरोधी सूची में 65 लोग शामिल हैं। संक्षेप में उसमें से बौद्धिक लोग लमान रुप से शेरोन का समर्थन नहीं करते।
यद्यपि एक और गुट परम्परावादियों का है जो अपेक्षा के अनुरुप इजरायल का समर्थन करता है और उसी प्रकार इसमें कोई शक नहीं की कि वामपंथी इजरायल का विरोध करते हैं यद्यपि इसमें भी अनेक अपवाद हैं परन्तु यह परिपाटी व्यापक रुप में वैध है।
अमेरिकी संसद के बहुमत दल के नेता टामडिले जो परम्परावादी है उनके उनुसार अमेरिका और इजरायल की नीयति समान है। ’’ स्वतन्त्रता को सशक्त करने के लिए होने वाले युद्धों में दोनो लोकतन्त्र के नागरिकों की मित्रता हार्दिक है ’’।
इसके विपरीत घोर वामपंथी लेखक किर्कपैटिक सेल मानते हैं कि यहूदी राज्य का विचार एक भूल है और स्पष्ट रूप से प्रस्तावित करते हैं कि अवसर आ गया है कि जब इस बात की समीक्षा की जायेगी कि इजरायल राज्य का 50 वर्ष पुराना प्रयोग असफल रहा और उसे भंग कर दिया जाये । ’’
ब्रिटेन के लेबर प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने 2003 के आरम्भ में अरब-इजरायल संघर्ष पर सम्मेलन आयोजित किया और इजरायलवासियों को आमन्त्रित नहीं किया। उन्होंने इजरायल के विदेश मंत्री की अवहेलना भी की। इसके जबाब में कन्जरवेटिव पार्टी के नेता इयान डंकन ने ब्लेयर की आलोचना करते हुए कहा कि वे उन आत्मघाती हमलावरों के साथ निरर्थक सम्मेलन आयोजित कर रहें हैं जो इजरायल को जलाने के लिए बढ रहे हैं।
उन्होने ब्लेयर द्वारा इजरायल के विदेश मंत्री की अवहेलना और यासिर अराफात को समर्थन देने की भी निन्दा की ।
प्राथमिक रुप से यूरोपीय संसद में परम्परावादियों ने यूरोपीय संघ के प्रतिमाह 10 मिलियन यूरो फिलीस्तीनी अथारिटी को दिये जाने वाली सहायता के आतंकवाद के समर्थन में जाने के विषय पर संसदीय जांच समिति बैठाने के विषय को आगे बढ़ाया।
वैसे व्यवहार के निर्माण में नस्ल और धर्म का काफी महत्व होता परन्तु विचार कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है। इस सम्बन्ध में एक प्रमुख उदाहरण 1998 है जब नेशन पत्रिका ने एन्ड्यू एन. रूबिन नामक वामपंथी यहूदी को एक परम्परावादी मुसलमान फौद आजमी द्वारा लिखी पुस्तक नष्ट करने को कहा क्योंकि उसमें इजरायल का समर्थन किया गया था।
जैसा कि चारलोट वेस्ट का सर्वक्षण है कि आस्टेलिया, कनाडा, फ्रंस, इटली जैसे देशों में परम्परावादियों का समर्थन इजरायल को मिलता है।
यह एक नई बात है। आज से बीस वर्ष पूर्व उदारवादी या परम्परावादी दृष्टिकोण का मध्य पूर्व या इजरायल पर उसके दृष्टिकोण से कोई सम्बन्ध था। शीत युद्ध के समय उस काल की नीति अर्थात् सोवियत संघ के प्रति नीति से बाहर ही मध्य पूर्व की समस्या रहती थी। इसलिए अरब इजरायल विवाद, उग्रवादी इस्लाम तथा ऐसे अनेक विषय वृहत्तर सैद्धान्तिक प्रश्नो के परिधि से बाहर रहते थे।
आज यह परिस्थिति परिवर्तित हो गई है। मध्य पूर्व ने सोवियत संघ का स्थान ले लिया है और यह राजनीति तथा विचारधारा का केन्द्र बिन्दु बन गया है। अब बड़ी स्पष्टता के साथ उदारवादी इस विषय के एक ओर और परम्परावादी दूसरी ओर खड़े हैं।