कल्पना करिये कि इस्लामवादी केन्द्रीय कमान का अस्तित्व है और उपलब्ध तरीकों से इस्लामी कानून को पूरी तरह लागू करवा कर विश्व स्तर पर खिलाफत की स्थापना के लक्ष्य के साथ आप इसके मुख्य रणनीतिकार हैं। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामबाद में आठ दिन के लाल मस्जिद के विद्रोह के बाद आप अपने सहयोगियों को क्या सलाह देंगे ?
सम्भवत: आप पिछले छ: दशकों के इस्लामवादी प्रयासों की समीक्षा करेंगे और इस निष्कर्ष पर पहुँचेगें कि आप के पास तीन विकल्प हैं – शासन को उखाड़ फेंकना, व्यवस्था के साथ काम करना अथवा दोनों को संयोजन इस्लामवादी सत्ता प्रात्ति के लिए अनेक तरीके अपना सकते हैं ( यहाँ मैं कैमरन ब्राउन के Waiting for the Other Shoe to Drop: How Inevitable is an Islamist Future? –की ओर ध्यान खींचता हूँ )
1 क्रान्ति – इसका अर्थ है एक व्यापक सामाजिक क्रान्ति है। कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण 1978-79 में केवल ईरान में सफल हुआ।
तख्ता पलट – 1909 में केवल सूडान में सफल हुआ क्योंकि सामान्य तौर पर शासकों को पता है कि स्वयं को कैसे बचाना है।
गृह युद्ध – 1996 में केवल अफगानिस्तान सफल हुआ क्योंकि प्रभावी क्रूर राज्य सामान्य तौर पर विरोध को दबाते हैं ( जैसा अल्जीरिया, मिस्र और सीरिया)
आतंकवाद – कभी सफल नहीं हुआ और न ही इसके सफल होने की सम्भावना है। इससे बड़े पैमाने पर तबाही तो हो सकती है परन्तु शासन नहीं बदल सकता है। केवल कुछ लोग आतंकवादी धमकियों के आगे झुकते हुए सफेद झण्डे दिखाते हुए दिखेंगे।
1981 में मिस्र में अनवर सादात की हत्या के बाद ऐसा नहीं हुआ, न ही 11सितम्बर 2001 में अमेरिका के बाद और ही न ही 2004 में मैड्रिड बम विस्फोटों के बाद।
एक चतुर रणनीतिकार को इस सर्वेक्षण के आधार पर निष्कर्ष निकालना चाहिए कि सरकारों को अपदस्थ करने से विरले ही विजय प्राप्त होती है। इसके विपरीत हाल की कुछ घटनायें प्रदर्शित करती हैं कि व्यवस्था के साथ काम करना बेहतर है – 1992 में अल्जीरिया में इस्लामवादियों की विजय, 2001 में बांग्लादेश , 2002 में तुर्की और 2005 में इराक में विजय। परन्तु इन घटनाक्रमों से यह भी स्पष्ट होता है कि व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य करने की भी सीमायें हैं।
सबसे बढ़िया कानूनी ढंग से शत्रु को नरम करते हुए फिर सत्ता की प्राप्त करने का संयोजन है।
इस दो मुँहे मामले की सफलता 2006 में फिलीस्तीनी अथारिटी के मामले से प्रकट होती है जब एक ओर हमास ने चुनावों में विजय प्राप्त की और फिर विरोध प्रदर्शन किया। इसी संयोजन का एक बिल्कुल अलग किस्म का उदाहरण पाकिस्तान में देखने को मिला। लाल मस्जिद के नाम से प्रसिद्ध विशाल परिसर भौगोलिक रूप से पाकिस्तान के शासन संस्था के मध्य स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका शासन के कुलीन वर्ग से सम्बन्ध है और इसमें पुरूष, स्त्रियों के विशाल मदरसे में हैं।
परन्तु 2007 में बुर्का पहनी महिलायें अपने सहायकों के विरूद्ध ही काल्शनिकोव लेकर खड़ी हो गईं और एक अवैध निर्माण को ढहाने का विरोध करने लगीं।
अप्रैल में इस विशाल मस्जिद के उप इमाम अब्दुल रशीद गाजी ने अपने नियन्त्रण वाले क्षेत्र में इस्लामी कानून (शारियत) के लागू होने की घोषणा कर डाली और इस्लामी अदालत की साथापना कर दी जिसने सरकार के विरूद्ध निर्णय देने आरम्भ कर दिये।
उसके उपरान्त मस्जिद ने इस्लामबाद में अपने मदरसे के हजारों छात्रों को नैतिक पुलिस बनाकर स्थानीय आधार पर तालिबान पद्धति का शासन लागू करने के लिए भेजा जिसका अन्तिम लक्ष्य इस पद्धति को पूरे देश पर लागू करना था। छात्रों ने नाई की दुकान बन्द की, बच्चों के एक पुस्तकालय पर कब्जा किया, संगीत स्टोर और विडियो दुकानें ध्वस्त कीं तथाकथित वेश्याओं को प्रताडित किया। उसके बाद उन्होंने पुलिस अधिकारियों का अपहरण कर लिया। जब मुशर्रफ सरकार ने इस अर्ध सम्प्रभुसत्ता पर अंकुश लगाना चाहा तो लाल मस्जिद के नेतृत्व ने आत्मघाती हमलों की धमकी दी। सुरक्षा बल इस मामले से अलग रहे।
छ: महीनें तक चला गतिरोध 3 जुलाई को चरम परिणति पर पहुँचा जब मस्जिद के छात्रों ने जो सशस्त्र और नकाबपोश थे पुलिस चेक प्वांइट में घुस गये, पास के सरकारी मन्त्रालय में आगजनी-तोड़ फोड़ की, कारों में आग लगाई जिसमें कुल 16 लोग मारे गये।
सरकार के साथ इस टकराव का उद्देश्य इसे अपदस्थ करने से कुछ कम नहीं था जैसा कि 7 जुलाई को मस्जिद के उप इमाम ने घोषणा की “हमें ईश्वर में पूरा विश्वास है कि हमारे रक्त से एक इस्लामी क्रान्ति का जन्म होगा ’’। भयभीत होकर सरकार ने 10 जुलाई के आरम्भ में इस विशाल मस्जिद पर आक्रमण किया। 36 घण्टे के छापे में आत्मघाटी पेटियों के शस्त्र, मशीन गन, गैसोलीन बम, राकेट से चलने वाले ग्रेनेड, लांचर, टैंक रोधी बारूदी सुरंग के साथ अलकायदा नेतृत्व के निर्देशों के पत्र मिले।
मुशर्रफ ने मदरसे को ‘ युद्ध का एक किला ’बताया। कुल मिलाकर इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से 100 लोग मारे गये।
मस्जिदों का उपयोग हिंसा भडकाने के लिए, आपरेशन की योजना के लिए, शस्त्र छिपाने के लिए होता रहा परन्तु सरकार को अपदस्थ करने के लिए इसे एक आधार के रूप में नियुक्त करने की यह पहली मिसाल है। लाल मस्जिद माडल इस्लामवादियों के लिए साहसी रणनीति है जिसे वे फिर से प्रयोग में लायेंगे विशेषरूप से तब जब वर्तमान घटनाक्रम जिसने देश की छवि को प्रभावित किया है। वह मुशर्रफ को बाहर करने में सफल हो जाता है।
हमारा काल्पनिक इस्लामवादी रणनीतिकार संक्षेप में सत्ता प्राप्ति करने के लिए कोई दूसरी रणनीति अपना सकता है।