गमाल अब्दुल हफीज नामक एफ. बी. आई एजेन्ट की भूमिका प्रमुख आतंकवाद प्रतिरोधी संस्था के रूप में देश की सुरक्षा में अहम हो सकती थी ।
परन्तु उच्च श्रेणी के आतंकवादी मामले इस बात के साक्षी हैं कि अब्दुल हफीज नामक आप्रवासी मुसलमान ने सैद्धान्तिक रूप से अपने धर्म के लोगों को दो बार रिकार्ड करने से मना कर जाँच को प्रभावित किया। पहला मामला अस्तित्वहीन एन. जे.स्थित बी..एम आई इस्लामी इन्वेस्टमेन्ट बैंक का है। 1985 में स्थापित इस बैंक को बिन लादेन के परिवार और जाने-माने आतंकवादियों द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त होती थी। एफ. बी. आई को इस सम्बन्ध में 1999 में सफलता प्राप्त हुई जब बी. एम. आई के एक खातेदार ने सम्पर्क किया और संदेह जताया कि बी.एम. आई का 2.1 मिलियन डालर धन का उपयोग पूर्वी अफ्रीका में अगस्त 1998 में अमेरिका के दो दूतावासों पर बम से हमले में हुआ है। बी.एम.आई के अध्यक्ष जो कि मुस्लिम थे उन्होंने अब्दुल हफीज से सम्पर्क कर मिलने के लिए कहा। अप्रैल 1999 में बी.एम.आई मामले को देख रहे अमेरिका के सहायक महाधिवक्ता मार्क फ्लेजनर ने अब्दुल हफीज को बी.एम.आई के अध्यक्ष से मिलने को प्रेरित किया और गोपनीय रूप से उनकी बात रिकार्ड करने को कहा।
अब्दुल हफीज ने इन्कार कर दिया। और क्योंकि उसे अपनी जान का भय था। फ्लेजनर ने जब संकेत किया कि उनके पास एफ.बी.आई का संरक्षण है तो अब्दुल हफीज ने कहा “एफ.बी.आई मेरी रक्षा नहीं कर सकती। एफ.बी.आई को मुझपर भरोसा नहीं है ’’।
और अधिक जोर दिये जाने पर अब्दुल हफीज ने एक और धारणा बताया आपसी बातचीत में यह बात सामने आई।
“ मैं दूसरे मुसलमान की बात रिकार्ड नहीं कर सकता। यह मेरे धर्म के विरूद्ध है (फ्लेजनर) “ एक मुसलमान दूसरे मुसलमान की बात रिकार्ड नही कर करता ( एफ-बी-आई एजेन्ट राबर्ट राइट ) “ उसे किसी ऐसे व्यक्ति से साक्षात्कार या उसकी बात रिकार्ड करने में परेशानी नहीं है जो मुसलमान नहीं है परन्तु वह दूसरे मुसलमान की बात कभी रिकार्ड नहीं करेगा ’’( एफ-बी–आई एजेन्ट जान विन्सेन्ट )
इस बात – चीत की जानकारी मुख्यालय को राबर्ट राइट ने सुपरवाइजर को दी और कहा, “ बाब तुम्हें यह समझना चाहिए कि वह कहाँ से आता है ’’। जब ए.बी.सी न्यूज में अब्दुल हफीज के बयान के बारे में जानकारी की तो एफ . बी . आई की अफसरशाही ने उसे बरी करते हुए कहा कि गोपनीय बात की रिकार्डिंग मस्जिद में होनी थी। परन्तु यह झूठ था ( क्योंकि इस मामले में कोई भी मस्जिद शामिल नहीं थी ) जिसे कि बाद में एफ.बी.आई ने माना।
दूसरा मामला साउथ फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सामी अल अरियन का है जिसे हाल में ही फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद आतंकवादी संगठन चलाने और उसे आर्थिक सहायता प्रदान करने का दोषी पाया गया। अल अरियन की अपराधिक जाँच अनेक वर्षों से चल रही थी एक समय वह अब्दुल हफीज से एक सम्मेलन में मिला और अपने मामले के विवरण के सम्बन्ध में जानना चाहा।
उस समय अब्दुल हफीज के एक सहयोगी बैरी कारमोडी ने हफीज से अल अरियन के बारे में और भी अधिक जानने और उसकी बातचीत रिकार्ड करने को कहा। अब्दुल हफीज ने इन्कार कर दिया उसने मिलने की बात तो स्वीकार कर ली परन्तु रिकार्ड करने से मना कर दिया।
राइट ने अब्दुल हफीज की एक और समस्या का उल्लेख किया है। वाशिंगटन के कार्यक्षेत्र में कार्य करने वाले एफ . बी . आई के एजेन्टों ने उसके बारे में लिखा “ वह अपने विषय से सम्बन्धित सम्पर्कों पर जाता था परन्तु इन सम्पर्कों के बारे में इन मामलों को चलाने वाले एजेन्टों को जानकारी नहीं देता था ’’।
कारमोडी की अब्दुल हफीज के बारे में लगातार शिकायत कहीं नहीं की गई। इससे भी बुरा यह हुआ कि एफ . बी . आई के मुख्यालय ने फरवरी 2001 में उसे प्रोन्नति देकर उसे सउदी अरब में रियाद में अमेरिकी दूतावास की महत्वपूर्ण और संवेदनशील स्थान पर भेज दिया। इसमें एक आश्चर्य होता है कि ऐसे देशों में जहाँ के लोग लगभग 100 प्रतिशत मुसलमान हैं वहाँ क्या अब्दुल हफीज किसी मुस्लिम के सम्बन्ध में अपने अधूरे जाँच के व्यवहार को जारी रखेगा ?
सम्भवत: वह ऐसा करेगा , इसी कारण रियाद दूतावास द्वारा आतंकवाद प्रतिरोध के मामले को गम्भीरता से पीछा न कर पाने की जाँच चल रही है। अभी कुछ दिनों पहले ही एफ.बी. आई ने अब्दुल हफीज को अमेरिका वापस बुला लिया है और उसे प्रशासनिक अवकाश पर भेज दिया और व्यावसायिक दायित्व से सम्बन्धित न्याय विभाग को उसके व्यवहार की जाँच सौंपी गई हैं। ( अन्य चीजों के अतिरिक्त यह विभाग ‘ कानून प्रवर्तन व्यक्ति द्वारा गलत आचरण के आरोपों की जाँच भी करेगा ’’।
एफ.बी. आई के विशेष एजेन्ट अब्दुल हफीज के कार्यों से कुछ तात्कालिक प्रश्न खड़े होते हैं। अपने साथी मुसलमानों की तथाकथित बातचीत को रिकार्ड करने से मना करने के पीछे धार्मिक एकजुटता को दिग्भ्रमित भाव था या फिर वास्तव में जान का खतरा था।
क्या अब्दुल हफीज की उग्रवादी इस्लाम से सहानुभूति थी या फिर वह उसे समर्थन देता था। क्या एफ. बी. आई के एकमात्र इस मुस्लिम कर्मचारी का धार्मिक लगाव पक्षपात प्रदर्शित करने की उसके पद की आवश्यकता का उल्लंघन नहीं करता था।
क्या एफ . बी –.आई ने अब्दुल हफीज द्वारा प्रतिज्ञा के भंग की अवहेलना की ?
क्या एफ . बी . आई के गलत आचरण को दूसर कार्य देकर पुरस्कृत किया ?
क्या एफ . बी . आई की अफसरशाही ने उसकी गल्ती पर पर्दा डालने का प्रयास किया
यदि ऐसा है तो क्या यह सामान्य रूप से परिपाटी का अंग है ?
क्या इस मामले का भंडाफोड़ करने वाले एजेन्ट राबर्ट राइट को एफ. बी. आई दण्डित कर रही है।
और आखिर कब राबर्ट राइट को इस मामले में खुले रूप से बोलने की अनुमति दी जायेगी ?
जब तक एफ – बी – आई निदेशक राबर्ट मुलर इन प्रश्नों का उत्तर नहीं देते तब तक अमेरिका के लोग आश्वस्त नहीं हो सकते कि उनकी रक्षा के लिए यह एजेन्सी यथा सम्भव प्रयास कर रही है ।