जैसा कि न्यूयार्क टाइम्स ने मध्यपूर्व के हाल के इतिहास में जिसे सबसे बड़ा सांस्कृतिक विनाश कहा है “ इराक के संग्रहालयों , पुस्तकालयों और पुरालेखागारों के विनाश के लिए किसे आरोपित किया जाये ।
मध्यपूर्व के अकादमिक विशेषज्ञ इसके लिए बुश प्रशासन को दोषी ठहराते हैं । वे अमेरिकी नेताओं की तुलना इतिहास के बुरे जनसंहारकों से करते हैं ।
कोलंबिया विश्वविद्यालय के हमीद दबाशी- अमेरिका के राजनीतिक नेता हूण , चंगेज खां और तैमूर लंग की भांति सभ्यताओं के विनाशक हैं।
हेवफोर्ड विश्वविद्यालय के माइकल सेल्स : वे बर्बर हैं जिनकी आपराधिक लापरवाही उन्हें नीरो के समकक्ष खड़ा करती है।
न्यूयार्क के राज्य विश्वविद्यालय के अर्जोमाण्ड कहते हैं – अमेरिका युद्ध अपराध में उन्हें मंगोलों की श्रेणी में खड़ा करता है जिन्होंने 1528 में बगदाद को बर्खास्त किया था ।
वैसे इन अकादमिकों ने एक छोटे से विश्लेषण की अवहेलना की है और यह वे इराकी हैं जिन्होंने लूटपाट और आगजनी की और यह सब गठबंधन की इच्छाओं के प्रतिकूल किया ।
इराकी अपराध के लिए अमेरिकनों को दोष देने का अर्थ इराकियों की तुलना उन बच्चों से की जानी है जिन्हें अपने कार्य का उत्तरदायी ठहराने के बजाय उन्हें संरक्षण दिया जाता है ।
अकादमिक एक और तथ्य की ओर ध्यान नहीं देते और वह हैं स्वयं ही संस्कृति का विनाश करने की दुर्लभता ।
1944 में फ्रांसिसियों ने लोवर को बर्खास्त नहीं किया । एक वर्ष पश्चात् जापानियों ने अपने राष्ट्रीय पुस्तकालय को नहीं जलाया ।
1990 में पनामावासियों ने अपने लेखागार नष्ट नहीं किया । 1991 में कुवैतवासियों ने अपना ऐतिहासिक कुरान नष्ट नहीं किया । हां, लूटपाट ने इन मामलों में भूमिका निभाई परंतु जैसा कि एशोसियेटेड प्रेस ने कहा कि यहाँ कही भी पहुँच अबाध रूप से सांस्कृतिक चोरी की दीवाना पन नहीं था।
और यह दीवानापन था एक चश्मदीद ने बताया “इराक राष्ट्रीय संग्रहालयकि मध्य पूर्व का सम्भवत: सबसे बड़ा प्राचीन वस्तुओं का संग्रहालय था। और यह संग्रहालय विशाल इस्पात दरवाजों से सुरक्षित संग्रह के कमरे में थे जो कि अंधेरे कमरे में नीचे की ओर जाता था वह पूरी तरह तोड़-फोड़ का शिकार हुआ। इराक के राष्ट्रीय पुस्तकालय और संग्रहालय पर विनाश तो और भी बुरा था क्योंकि दोनों संस्थान जानबूझ कर आग के हवाले किये थे। देश की संस्कृति के अधिकतर रिकार्ड नष्ट कर दिये गये। राष्ट्रीय पुस्तकालय के प्रमुख स्कन्ध में कुछ नहीं छोड़ा गया और इसकी दीवारें और छत राख हो गई। ऐतिहासिक पुस्तकों की राख बची और बौद्धिक विरासत धुँआ बनकर उड़ गई। इराक का प्रमुख इस्लामी पुस्तकालय जिसमें दुर्लभ आरम्भिक कानूनी और साहित्यिक सामग्री मूल्यवान कुरान सहित अन्य चीजें थी वे जल गये।
बर्बरता की यह करिवाई अत्यन्त अस्वाभविक थी और एक मात्र उदाहरण 90 -91 में इराकी करिवाई के रूप में था।
कुवैत में- जब कुवैत इराकी प्रान्त था तो इराकी सेनाओं ने राष्ट्रीय संग्रहालय को लूटा, ताराग्रह में आग लगा दी , पुस्तकालयों में तोड़-फोड़ की इसके अलावा सांस्कृतिक ढांचे को नष्ट किया।
इराक में – इराक की अस्थिरता के काल में इराक को छति हुई। सरकार विरोधी तत्व लूटमार में संग्लन हुए। क्षेत्रीय संग्रहालयों और अन्य सांस्कृतिक स्थानों को लूट कर 4,000 सामाग्रियों को चुरा लिया। पुरातत्वविदों ने एक सूची तैयार की “ लुप्त विरासत इराक की क्षेत्रीय संग्रहालय से चुराई गई पुरानी वस्तुयें ”। ताकि इनका व्यापार रोका जा सके।
सम्भवत: इराक के इस आद्वितीय सांस्कृतिक आत्म - घृणा की व्याख्या किस प्रकार की जाये। आधुनिक इराकी समाज में अन्तर्निहित हिंसक वृत्ति इसका एक कारण है।
1968 में लिखते हुए इजरायली विद्वान उरियल डेल ने व्याख्या की थी कि हिंसा की जलवायु “इराक में राजनीतिक दृश्य का एक भाग है। यह अन्तर्धारा है जो राजनीतिक शक्ति से बाहर लोगों के व्यापक उप स्तर को प्रदर्शित करता है। सैकड़ों और हजारों आत्मायें आसानी से सतही आधार पर गतिमान की जा सकती हैं। वे एक असन्तुष्ट तत्व निर्मित करते हैं जो दंगों के लिए तैयात रहते हैं ”।
कुवैत के विद्वान शफीक एन धाबरा ने मिडिल ईस्ट क्वार्टली में इस धारणा का समर्थन किया था। उनके अनुसार “ इराक में अरब और कुर्द, सुन्नी और शिया ,शहरी और आदिवासी सहित अन्य विभाजन के कारण सरकार को इस विविधता का प्रबन्धन करना कठिन होता है जिसमें एक राजनीतिक समझौते की स्थिति उत्पन्न होती है ”। नेता उन लोगों को नष्ट करते हैं जो विरोधी विचार रखते हैं, सम्पत्ति की कुर्की बिना सूचना के होती है, अपने शत्रुओं के विरूद्ध आरोप बनाये जाते हैं और काल्पनिक घरेलू शत्रुओं से युद्ध लड़ा जाता है ”। राष्ट्रीय पुस्तकालय के खाली रैक मूक होकर अपने ही विरूद्ध हिंसक होने वाले देश की अतिशयता की कहानी कहते हैं। इराक में लूटपाट का दोष गठबन्धन सेनाओं पर नहीं वरन् स्वयं इराकियों पर दिया जाता है। हाँ गठबन्धन को और बेहतर तैयारी करनी चाहिए थी परन्तु सांस्कृतिक विनाश की नैतिक जिम्मेदारी इराकियों पर है।
इस निष्कर्ष के दो परिणाम हैं – मध्य-पूर्व के विशेषज्ञों ने अपनी राजनीतिक नासमझी को फिर से पुष्ट किया है और इराकियों ने संकेत दिया है कि वे उस प्रकार कार्य करेंगे जो कि गठबन्धन के लिए स्वागत योग्य नहीं है।