बाहर के लोग आश्चर्यचकित हैं कि क्या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सद्दाम हुसैन को बाधित करने के वाशिंगटन के लक्ष्य को समर्थन देगा? परन्तु आन्तरिक नीति से जुड़े लोग अमेरिकी युद्ध और अमेरिकी विजय के पश्चात इराक के पुन:स्थापन की कल्पना करते हैं।
आन्तरिक लोगों के लिये प्रमुख मुद्दा यह है कि यह सब होने के पश्चात किस हद तक अरबी भाषाई देशों में अमेरिका की महत्वाकांक्षा जायेगी। इसके अगले कुछ दशकों तक विदेश नीति की परिधि में होने वाली बहस का प्रमुख मुद्दा यही दिखता है कि विश्व में अमेरिका की भूमिका क्या हो?
आइये जानने का प्रयास करते हैं।
महत्वाकांक्षी कोने पर जान्स होपकिन्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एक लेबनानी आप्रवासी और मध्य-पूर्व विषयों के विशेषज्ञ फौद आजमी खड़े हैं। उदारवादी झुकाव वाले Foreign Affairs में उन्होंने अरब देशों में चल रही राजनीतिक संस्कृति पर टिप्पणी की( आत्म दया और आक्रामक व्यवहार जो अरब जीवन में है , आधुनिक संस्कृति से पीछे और षड़यन्त्रकारी सिद्धान्तों को अपनाने की प्रवृत्ति) । अमेरिकी सत्ता के व्यापक प्रयोग से उन्हें सुधार की सर्वाधिक सम्भावना दिखती है। “ अमेरिकी के एकतरफावाद के लिये क्षमाप्रार्थी होने की आवश्यकता नहीं है। यह क्षेत्र इस एकतरफावाद का प्रयोग कर उसके साथ रह सकता है।”
आजमी चाहते हैं कि अमेरिका की इच्छा और प्रतिष्ठा आधुनिकता और परिवर्तन के पक्ष में उठे और वह वाशिंगटन का आह्वान करते हैं कि उसे ऊँचे उद्देश्य रखने चाहिये। सद्दाम हुसैन के शासन को बाधित करने और जनसंहारक हथियारों को नष्ट करने से परे इराक में नवीन अमेरिकी प्रेरणा इराक तथा उसके पड़ोसी अरब भूमि सहित अरब विश्व को आधुनिक बनाने का होना चाहिये।
केवल अमेरिका में सफलतापूर्वक अमेरिकी सैन्य अभियान से उन अरबवासियों को सुकून मिलेगा जो राजनीतिक क्षरण से मुक्ति पाना चाहते हैं, इसलिये उनको आशा है कि यह युद्ध इस आश्वासन से लड़ा जायेगा कि अमेरिका सुधार के पक्ष की ओर है।
दूसरी ओर सतर्क कोने पर खड़े हैं रणनीतिकार एण्ड्रयू जे. बेसविच जो कि सेना के सेवानिवृत्त कर्नल हैं और अब बोस्टन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं और उनका Don’t be greedy शीर्षक का स्मरणीय लेख कन्जर्वेटिव नेशनल रिव्यू में प्रकाशित हुआ था। बेसविच ने बुश प्रशासन को सलाह दी कि वह अपना ध्यान इराक तक ही सीमित रखे और अरब में लोकतन्त्र लाने की व्यापक योजना न बनाये। उन्होंने इसे पूरी तरह तर्कहीन बताते हुये चार कारणों से निरस्त किया
- ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक तत्वों के कारण अरबवासियों का लोकतन्त्र के प्रति लगाव बहुत कम है।
- अरबवासी इस बात को समझते हैं कि स्वतन्त्रता में उपलब्धता के आधार पर विवाह, सेक्स का लाइसेन्स और आवश्यकतानुसार गर्भपात अन्तर्निहित है जितना इसमें स्वशासन और विधि का शासन है और वे इस पैकेज को स्वीकार नहीं करते।
- लोकतान्त्रिक मूल्यों से प्रभावित करने के प्रयास में अरब समाज में बहुत कम सहयोगी मिलेंगे वहीं उदारवादी मूल्यों की वकालत करने वाले अत्यन्त सीमित संख्या में अल्प लोग हैं।
- इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की वकालत करने वाले जर्मनी और जापान को माडल के रूप में प्रस्तुत करते हैं जबकि वे फिलीपीन्स, मैक्सिको, हैती, डोमीनिकन रिपब्लिक और दक्षिणी वियतनाम में अमेरिकी असफलता की ओर ध्यान नहीं देते। अरब के देश बाद की परिपाटी में उपयुक्त बैठते हैं न कि पहली।
बेसविच आग्रह करते हैं कि अमेरिका के साथ वैचारिक सहानुभूति के लिये अरबवासियों के साथ प्रयास करने के स्थान पर उनकी सरकार के व्यवहार को सुधारने का उद्देश्य होना चाहिये। संसद और महिलाओं को अधिकार जैसी अवधारणायें सउदी राजकुमारों को बाहरी लगेंगी। दूसरी ओर B-2 बम और वाहक युद्ध गुट के महत्व को स्वीकार करने में उन्हें परेशानी नहीं होगी।
अधिक विस्तार में बेसविच इस पहुँच को अमेरिकी विदेश नीति में एक उपयुक्त शालीनता और आत्म नियन्त्रण के रूप में देखते हैं।
बेसविच और आजमी दोनों के तर्क विचारोत्तेजक हैं और दोनों के लेख को पूरी तरह पढ़ने की आवश्यकता है। परन्तु यह विश्लेषक अजामी का पक्ष लेता है। बेसविच के चार बिन्दुओं को सम्बोधित करते हुये-
* जापान का 1945 में लोकतन्त्र के प्रति उससे अधिक लगाव था जितना आज अरब देशों का है फिर भी वहाँ लोकतन्त्र रूका रहा
इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि एक खुली राजनीतिक व्यवस्था में तलाक की दर अधिक होती है या अन्य सामाजिक परिवर्तन होते हैं एक बार फिर जापान को देखिये।
इराक में प्रसिद्ध अमेरिकी विजय और देश के सफलतापूर्वक पुन:स्थापन से उदारवादी सामान्य स्थिति से ऊपर उठ जायेंगे और सामान्य रूप से क्षेत्र लोकतन्त्र की ओर चलेगा। ( सउदी नेता पहले ही निर्वाचन सभा स्थापित करने की बात कह रहे हैं जो कि इस राज्य के लिये अभूतपूर्व है)
अमेरिका विश्व के सर्वाधिक राजनीतिक तापमान वाले क्षेत्र के पुनर्निर्माण के अवसर को गँवा नहीं सकता। निश्चित रूप से प्रयास असफल हो सकता है परन्तु प्रयास करने का अवसर तो हाथ से नहीं जायेगा।
पिछले सप्ताह राज्य सचिव कोलिन पावेल ने कहा कि इराक में अमेरिकी सफलता मूल रूप में मध्य-पूर्व को सशक्त और सकारात्मक तरीके से नई दिशा देगी। इससे लगता है कि बुश की टीम के सबसे सतर्क व्यक्ति भी सही ही महत्वाकांक्षी विचार की ओर आ रहे हैं।