फिलीस्तीनी इजरायल पर इतने अधिक नाराज क्यों हैं ?
इसके सम्भवत: दो कारण है।
राजनीतिक – वे यहूदी राज्य के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं परन्तु इस या उस इजरायली नीति से नाराज हैं।
अस्वीकारवादिता – वे इजरायल के अस्तित्व से ही घृणा करते हैं और उसे नष्ट करना चाहते हैं। जो भी सही हो उसके अनेक परिणाम होने वाले हैं। यदि फिलीस्तीनी केवल उसे परिवर्तित करना चाहते है जो इजरायल कर रहा है। ( जैसे पश्चिमी तट पर कस्बे का निर्माण ) तो इजरायल से उन कार्यों की बलि देने के लिए कहना उचित है और इस संघर्ष के समाधान का मुख्य भार भी इजरायल पर जाता है।
परन्तु यदि इजरायल का अस्तित्व मुद्दा है जो इसमें सही हो सकता है कि संघर्ष तभी समाप्त होगा जब अन्त में फिलीस्तीनी यहूदी राज्य को स्वीकार कर ले इस प्रकार संघर्ष समाप्त करने का भार फिलीस्तीनियों पर जाता है।यदि यह सामान्य नियमित राजनीतिक विवाद है तो कूटनीति समझौता इसमें आगे बढ़ने का रास्ता है। परन्तु यदि फिलीस्तीनी इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं तो कूटनीति उपयोगहीन और यहाँ तक कि उल्टी पड़ती है और इजरायल को फिलीस्तीनियों को समझाना चाहिए कि वे अपना आक्रामक रवैवा त्याग दें। और मुखर रूप से तब इजरायल को फिलीस्तीनी को हराना पड़ेगा।
कौन सी व्याख्या सत्य है ?
जेरूसलम मीडिया एण्ड कम्युनिकेशन सेन्टर जो कि एक फिलीस्तीनी संगठन है और उसके द्वारा 2002 में बसन्त में पश्चिमी तट और गाजा के निवासियों के मध्य एक जनमत सर्वेक्षण किया गया जिसमें 43 प्रतिशत जबाब देने वालों ने कहा कि पश्चिमी तट और गाजा में केवल फिलीस्तीनी राज्य होना चाहिए जबकि 51 प्रतिशत लोगों ने ऐतिहासिक फिलीस्तीन का समर्थन किया ’ जो इजरायल को नष्ट का कूटवाक्य है।
इससे फिलीस्तीनियों की अस्वीकारवादिता फलती-फूलती है। परन्तु बाहरी विश्व इस तथ्य से अपनी आँखें मूँदे हुए है। अनेक संगठन और व्यक्ति यदि संयुक्त राष्ट्र संघ की बात छोड़ दें तो विशेषकर वामपंथी और जो कूटनीतिक , पत्रकारिता , कला और अकादमिक क्षेत्र में हैं सामान्य रूप से इस बात पर जोर देते हैं कि फिलीस्तीनी इजरायल को स्वीकार करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि शान्ति के लिए इजरायल को जोखिम लेने की आवश्यकता है।
इसके विपरीत इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका में छोटी संख्या में परम्परावादी फिलीस्तीनी अस्वीकारवादिता की ओर संकेत करते हैं।
इस विचार की पृष्ठभूमि में यह देखना महत्वपूर्ण है कि इजरायल और और अमेरिका के मतदाता वास्तविक रूप में फिलीस्तीनी आशय के बारे में क्या सोचते हैं ?
2002 के अन्त में तेल अवीव विश्वविद्यालय के तामी स्टीनमेज सेन्टर फार पीस एण्ड रिसर्च के सर्वेक्षण में पाया गया कि 18 प्रतिशत इजरायली यहूदी विश्वास करते हैं कि फिलीस्तीनियों ने इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया है जबकि 71 प्रतिशत लोग उसके विरूद्ध सोचते हैं।
अमेरिका के विचार इस विषय में जानने के लिए मिडिल ईस्ट फोरम द्वारा प्रायोजित राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण 1,000 सम्भावित मतदाताओं का किया गया “क्या आप मानते हैं कि य़ासर अराफात के फिलीतीन अथारिटी का उद्देश्य इजरायल के साथ – साथ रहने वाले एक छोटे राज्य का निर्माण है या फिर इसका उद्देश्य इजरायल को नष्ट करना है।
प्रतिक्रिया स्पष्ट थी 19 प्रतिशत जबाब देने वालों की दृष्टि में अराफात इजरायल के साथ- साथ एक छोटा राज्य चाहते हैं जबकि 61 प्रतिशत लोगों का मानना था कि वास्तव में इजरायल को नष्ट करना चाहते हैं।
(तकनीकी पक्ष – अन्य 20 प्रतिशत लोगों ने या तो उत्तर नहीं दिया या फिर जानते थे। 11 – 12 फरवरी को यह सर्वेक्षण न्यूयार्क को फर्म मैकलागलिन द्वारा किया गया जिसमें 95 प्रतिशत विश्वास है।)
केवल इजरायल और अमेरिका की संख्या बराबर ही नहीं है परन्तु ध्यान देने योग्य तथ्य है कि किस प्रकार अमेरिका के मतदाता गर्मजोशी से आधिकारिक आवाजों को अस्वीकार कर रहें हैं 3-1 के अनुपात में लोग समझ रहे हैं फिलीस्तीनी अस्वीकारवादिता इस संघर्ष में मूल है।
यह अन्तर्दष्टि मुक्त और सूचित लोगों की बुद्धि का परीक्षण भी करती है यह अमेरिका के नीति के लिए भी सम्भावित रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है इससे बुश प्रशासन को संकेत मिलता है कि अपने ही मतदाताओं की बात पर ध्यान दें कि इजरायल – फिलीस्तीन संघर्ष का मूल इजरायल में नहीं है।
इसका अर्थ है फिलीतीन के पक्ष में इजरायल को छूट देने के लिए दबाव में लाने की आदत छोड़कर फिलीस्तीनियों को समझाया जाना चाहिए कि इजरायल यहीं रहने वाला है। इसके लिए कुछ कदमों की आवश्यकता है – फिलीस्तीन के सेमेटिक विरोध को हतोत्साहित करते हुए इजरायल के विरूद्ध अन्य प्रकार की भड़कावपूर्ण गतिविधियों को रोकना, उन अमरिकी नीतियों की पुनर्समीक्षा करना जिससे फिलीस्तीनियों को शरणार्थियों की बेबस भूमिका में रखना ।
फिलीस्तीनी हिंसा समाप्त करने के लिए सख्त परन्तु आवश्यक कदमों का समर्थन करना और अमेरिकी दूतावास को जेरूसलम हटाना
जितना शीघ्र फिलीस्तीनी नेता और जनता इजरायल के अन्तिम अस्तित्व को स्वीकार करेगी उतना ही इस विवाद से जुड़े लोगों के लिए बेहतर होगा।