डेनियल पाइप्स द्वारा परिचय- मेरे द्वारा आलेख “प्रोफेसर जो अमेरिका से घृणा करते हैं। ’’ जो 12नवम्बर 2002 को न्यूयार्क पोस्ट में छपा था जो 6 प्रोफेसर के बारे में लिखा गया था उनमें से दो प्रोफेसर का जबाब मिला। उस पर वाद- विवाद करने के लिए लास एंजेल्स टाइम्स के अनुरोध पर मैं लिखने को तैयार हुआ मेरे आलेख के बाद फोनेर और गिलमोर का उत्तर भी है।
विरोधियों के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालय उनका पंसददीदा स्थल बन गया है अब उन्हें यहाँ से वापस करने का वक्त आ गया है।
आप इराक को ही लीजिए, आमतौर पर अपने लोगों के प्रति अमेरिकी शासन के क्रूर व्यवहार और बाहर के लिये खतरे पर जोर दिया जा रहा है। इस बात का निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि इस पर कैसी प्रतिक्रिया दी जाये। जब प्रोफेसरों से पूछो कि उनकी समस्या क्या है तो वे आपको बतायेगें कि अमेरिका प्रमुख समस्या है न कि इराक और बुश प्रशासन की चिन्ता का कारण परमाणु हथियार नहीं बल्कि तेल है।
दोनों प्रोफेसर आपको एतिहासिक घटनाओं को याद करायेंगे।कोलम्बिया विश्वविद्यालय के एरिक फोनेर जोर देते हैं इराक पर पहले आक्रमण का युद्ध जंगलराज की अवधारणा की याद दिलाता है। इसके तर्क में वे आपको बतायेगें कि जापान ने जिस प्रकार पर्ल हार्बर पर आक्रमण को न्यायसंगत ठहराया था उसी प्रकार के तर्क वाशिंगटन दे रहा है।
येल विश्वविद्यालय के ग्लेन्डा गिलमोर इराक के साथ वाशिंगटन के टकराव में अमेरिका का साम्राज्यवाद देखते हैं।
बुश प्रशासन की आलोचना करते हुए वे आगे समझाती हैं कि यह हमला अमेरिका को अक्रामक देश बनाने जैसा है जो विपक्ष की आवाज सुनना ना पंसद करता है आगे ये भी कहती हैं कि हमने शत्रुओं से मित्रता कर ली है।
ऐसे विचार प्रतिबिम्बित करते हैं कि आज विश्वविद्यालय उसी प्रकार हैं जैसे वे 1960 के मध्य से कट्टर, विरोधी और अमेरिकी जीवन में अलग-थलग पड़े संस्थान रहे हैं।
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि विचारों की स्वतन्त्रता पर पाबंदी लगनी चाहिए लेकिन मैं यह जरूरी समझता हूँ कि उनके समाने कुछ कठिन प्रश्न प्रस्तुत करना चाहिए ।
1 क्यों अमेरिकी शिक्षाविद अपने ही देश को समस्या के रूप में क्यों देखते हैं ?
2 विश्वविद्यालय क्यों ऐसे शिक्षाविद को बुलाते हैं जो अमेरिकी के शत्रुओं के प्रति नरम रूख रखते हैं?
3 क्यों शिक्षाविद देश की समस्याओं जैसे वियतनाम युद्ध, शीत युद्ध, फारस की खाड़ी युद्ध और अब आतंकवाद को गलत ढंग से समझते हैं।
ऐसे विश्वविद्यालयों के वातावरण का छात्रों पर क्या दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
देश को ऐसे विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है जो अधिक परिपक्व, दायित्वपूर्ण और देशभक्त हों।
यह बात महत्वपूर्ण और याद रखने योग्य़ है कि विश्वविद्यालयों का निर्माण दशकों और शताब्दियों के बाद होता है और विधिक, वित्तीय और नैतिक रूप से इसके स्टाफ का नहीं होता। और उन्हें यह बिल्कुल अधिकार नहीं मिला है कि इसका अपहरण कर इसे अमेरिकी मुख्य धारा से अलग – थलग करो ।
विश्वविद्यालय में हित रखने वालों, बोर्ड सदस्यों, छात्रों और अभिभावकों को फुटबाल से अधिक राजनीति पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
जरूरत है कि ऐसा सन्तुलित राजनैतिक वातावरण निर्मित किया जैसा वे 1960 से पहले हुआ करता था। जहाँ सही शिक्षा, सही विद्वता के लिये पुन: स्थान हो।