11 सितम्बर के तत्काल बाद स्थिति एकदम स्पष्ट थी जब सभ्यतागत शक्तियाँ एक ओर तथा बर्बर शक्तियों दूसरी ओर थी।
आक्रमण के पश्चात उसी शाम को राष्ट्रपति बुश ने घोषणा की “अमेरिका और उसके मित्र तथा सहयोगी सभी उन लागों को साथ लेगें जो विश्व में शान्ति और सुरक्षा चाहते हैं और हम सभी आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध में एकजुट हैं ’’। दूसरे ही दिन 52 वर्ष के इतिहास में पहली बार बार नाटो ( उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन ) ने परस्पर सहयोग धारा को जीवित करते हुए घोषणा की कि अमेरिका के विरूद्ध आक्रमण “ हम सब पर आक्रमण है ।
यह उस समय की बात है। 16 महीनों के उपरान्त बुश प्रशासन अनेक मित्रों और सहयोगियों के साथ सहज नहीं है यहाँ तक कि बड़ी मात्रा में अमेरिकावासियों के साथ थी। 111 सितम्बर की पहली वर्षगाँठ पर जब राज्य सचिव कोलिन पावेल ने संयुक्त राष्ट्र के
श्रोताओं के समक्ष कहा कि “ हम सब इस मामले में एक हैं ’’। तो उनके शब्द खाली थे। कुछ हद तक इस एकता का अभाव का कारण आतंवाद के के विरूद्ध एक वर्ष में नहीं मिली विशेष सफलता या बड़ी आतंकवादी घटना का अभाव रहा ( विशेष रूप से तेल अबीब और नई दिल्ली में अनेक घटनायें होते – होते बचीं और मास्को तथा बाली में आक्रमणों में सौ से अधिक मारे गये )
परन्तु विरोधाभास का कारण व्यवहार में भयानक अन्तर भी है। जनमत सर्वेक्षण एक स्वर से अमेरिका विरोध में छलाँग की बात स्वीकार करते हैं। पिउग्लोबल द्वारा व्यवहार गत जनमत सर्वेक्षण में पाया गया कि 27 देशों में हुए जनमत सर्वेक्षण में दो तिहाई लोग अमेरिका के प्रति नकारात्मक धारणा रखते हैं। 111 सितम्बर की घटना के सम्बन्ध में यह थका देनी वाली सामान्य बात सुनने की हो गई है की ‘अमेरिका के लोग इसी के पात्र थे ’।
यूरोप में विरोध के चिन्ह कुछ अवसरों पर आश्चर्यजनक हैं। फ्रांस में यह पुस्तक सर्वाधिक बिक्री की श्रेणी में है जिसमें दावा किया गया है कि अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका के षड़यन्त्र के तहत ही आक्रमण किया था। इटली में फ्लोरेन्स में नेशनल रिव्यू में बेनी इरदी निरेन्सटीन ने लिखा “ 3 लाख यूरोप के लोग जिनमें से अनेक फिलीस्तीनी ध्वज लहरा रहे थे और ची गुवेरा , स्टालिन और माओ जेदांग के चित्र टी शर्ट पर लगाये गये थे उन्होंने अमेरिका द्वारा इराकी लोगों को मुक्त कराने की सम्भावना का खण्डन करते हुए मार्च किया ’’
फिलीस्तीनी ध्वज और स्टालिन के चित्र, इससे क्या लगता है।
इस शत्रुता की ब्याख्या पिछले सप्ताह हांगकांग के एशिया टाइम्स आन लाइन में अमेरिका के विश्लेषक केन सेन्स ने एक अन्तर्दष्टि वाले लेख में की है।
सेन्स का तर्क है की विश्व की आकांक्षाओं के साथ तीन सुपर पद्धति है जो कि राजनीति को आकार देती है। एक तो निश्चितरूप से उग्रवादी इस्लाम है जिसका अतिवाद, असहिष्णुता , विरोध, क्रूरता, आक्रामकता और अतिवादी नियन्त्रण के साथ कट्टरता का सन्देश है। उसके बाद अमेरिका की परिपाटी वैयक्तिक उदारवाद है जो व्यक्तिवाद और खुशी को जीवन का अन्तिम लक्ष्य मानते हुए मुक्त बाजार और सीमित सरकार पर जोर देता है। यही दो पद्धतियाँ पूरी बहस को दिशा देती है।
और उसके बाद सेन्स का विश्लेषण रोचक हो जाता है जहाँ वे तीसरी पद्धति यूरोप के अफसशाही वाम पंथ को स्थान देते हैं जो कि इन दोनों के बीच में कहीं है। सेन्स इस बात पर ध्यान देते हैं कि यूरोप का माडल कुछ अंशों में अमेरिका के माडल पर आधारित है ( धन अर्जित करने के लिए मुक्त बाजार पर निर्भरता) और कुछ अंशों में उग्रवादी इस्लाम पर आधारित है ( अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सशक्त सरकार पर निर्भरता )
भौगोलिक बिभाजन समुचित रूप से नहीं है अमेरिका में बहुत से उदारवादी हैं जबकि यूरोप में कुछ व्यक्तिवादी उदारवादी श्रेणी के लोग हैं ( और इस्लामवादी दोनों स्थानों पर हैं )
सेन्स की मौलिकता इस बात में है कि वे यूरो – अमेरिकन विभिन्नताओं को लेते हैं और उन्हें एक ही पद्धति के दो पहलओं के रूप में नहीं प्रस्तुत करते हैं वरन् दो अलग – अलग पद्धति के रूप में प्रस्तुत करते हैं। एक ही भाषा की दो बोलिय़ों के रूप में नहीं वरन् दो अलग-अलग भाषाओं के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
यदि यह ब्याख्या सत्य है तो हाल में यूरोप और अमेरिका के मध्य अनेक विषयों जैसे प्रकाशित खाद्य, मृत्यु दण्ड , अन्तर्राष्ट्रीय अपराध न्यायलय , इराक और अरब – इजरायल संघर्ष जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण विभाजन के संकेत हैं न कि छोटी कलह। बुश प्रशासन और जर्मनी के चान्सलर गेरहार्ड श्रोयडर के मध्य आमना-सामना कहीं अधिक गहरा है जितना यह दिखता है।
सेन्स के दृष्टिकोण के दो विशद परिणाम हैं। 1990 को इन दोनों प्रतिद्व न्द्वियों के प्रतिस्पर्धा में अल्प विराम के रूप में देखा जाना चाहिए। और अन्तिम चक्र ( सोवियत संघ के विरूद्ध ) के अमेरिका सहयोगी नये चक्र में विपक्षी के रूप में आकार ग्रहण कर रहे हैं।