हम लोग आधे घण्टे के विचार विमर्श के बाद इस नतीजे पर पहुँचे कि इतिहासकार और राजनीतिक आलोचक डेनियल पाइप्स के अनुसार सभ्य संसार युद्ध में है और अमेरिकी दो मोर्चो पर लड़ रहे हैं इस्लामिक लोगों से जो पश्चिम से घृणा करते हैं और यहूदी से घृणा करने वालों से जो इजरायलवाद को अस्वीकार करते हैं।
पाइप्स इस बात को समझाने का प्रयास करते हैं कि कूटिनीति के सहारे कोई भी पक्ष युद्ध नहीं जीत सकता है। मैं इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हूँ कि समझौता से अमेरिका इराकी उग्रवादियों या फिलीस्तीनी आतंकवादियों से संघर्ष का समाधान नहीं कर सकता ।मैं यह समझता हूँ कि यदि आप खुद युद्ध नहीं जीत सकते हैं तो संयोग वश हार सकते हैं।
पाइप्स के अनुसार हमें अपना युद्ध जीतना है और इजरायल को अपना युद्ध जीतने की आवश्यकता है। पाइप्स ने ये विचार 4-5 अक्टूबर को अपने डेट्रायट मेट्रो यात्रा के दौरान साउथफील्ड रेस्टोरेन्ट में लोगों के साथ बातचीत के दौरान व्यक्त किए ।
फिलाडेल्फिया स्थित मिडिल ईस्ट फोरम के निदेशक पाइप्स प्राय: इस्लाम के कट्टरपंथ और इस्लामवादियो के वैश्विक दृष्टिकोण पर कार्य करते हैं। विजय के सम्बन्ध में उनकी परिभाषा स्पष्ट है, “विजय से मेरा तात्पर्य है शत्रु पर अपनी इच्छा थोपना और उन्हें आशा छोड़ने को विवश करना, अपने आन्दोलन को कमजोर होता देख और अपने लक्ष्य की असफलता देखकर वे आगे लड़ने में असफल रहते हैं। ”
सारी बातें सुनने के बाद जिस बात ने मुझे प्रभावित किया कि उभयनिष्ठ शत्रु आतंकवाद नहीं है, जो कि एक रणनीति या इस्लाम है जो कि आस्था है, यह कट्टरपंथी इस्लाम है जिसे पाइप्स अधिनायकवादी राजनीतिक विचारधारा मानते हैं। उनकी बात का यह अर्थ यह कदापि नहीं है कि अरब-इजरायल संघर्ष का समधान नहीं हो सकता।
फिलीस्तीन के मामले पर वे कूटिनीति के द्वारा शांति प्राप्त करने पर जोर नहीं देते लेकिन यदि फिलीस्तीन ( हमास और फतह )गुट इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार करने और उसके विकास को स्वीकार करें या फिर फिलीस्तीन के कुछ भाग के शासन के अधीन होकर परिणाम भुगतने को तैयार रहें।
पहला विकल्प निश्चित तौर पर बहुत अच्छा है लेकिन इसके लिए कम से कम एक पीढ़ी का समय लगेगा तब जाकर यह सम्भव हो पायेगा ।वाशिंगटन स्थित ईस्ट मीडिया रिसर्च संस्थान की पिछले सप्ताह की सूचना के अनुसार हमास के बच्चों की पत्रिका अल-फतह में छपे आलेख के अनुसार जिहाद के लिए वे सदैव लड़ते रहेगें और आतंक की प्रशंसा की उन्होंने यहूदियों को पैगम्बर की हत्या करने वाला बताया। और उन माता पिता की प्रशंसा की है जो अपने बच्चों को अल्लाह के लिये यहूदियों को मारने को प्रेरित करेंगे।
दूसरा विकल्प बिल्कुल व्यावहारिक नहीं है। या तो इजरायली यहूदी आतंकवाद के शासन को स्वीकार करें जो उन्हे मरे देखना चाहते हैं या फिर भूमियों को स्वीकार करते हुये पलायन कर जायें। कौन विश्वास करता है कि ये यहूदी इजरायल छोड़ देंगे जब कि नरसंहार के साये में प्राप्त राज्य की 60वीं वर्षगाँठ होने को है।
पाइप्स इस बात का आग्रह करते हैं कि अमेरिका फिलीस्तीन को धन मुहैया कराना बंद कर दे क्योंकि उनके अनुसार फतह और हमास के बीच कोई अंतर नहीं है दोनो का अंतिम लक्ष्य इजरायल की धरती पर विजय प्राप्त करना है। पाइप्स इसी साँस में आगे कहते हैं कि इजरायल को वास्तविकता का सामना करते हुये कभी हाँ और कभी ना का समझौता फिलीस्तीनी लिबरेशन आर्गनाइजेशन के नेता महमूद अब्बास से नहीं करना चाहिये जो एक कठपुतली हैं। पाइप्स के अनुसार “यह विचार कि वे हमारे सहयोगी हैं और हमारे लक्ष्य के लिये उसी प्रकार कार्य कर रहे हैं जो हमारे अनुकूल है एकदम बकवास है। जो भी पश्चिम से हम देखते हैं यह संगठन और व्यक्ति उसके ठीक प्रतिकूल है। ”
वे हमारी मदद क्यों करे – विस्तृत चर्चा के दौरान यह निकलकर सामने आया कि फिलीस्तीन को इस बात का यकीन है कि बिना हथियार ,धन, जमीन छोड़े उन्हें अपना राष्ट्र मिल जायेगा ।यदि यह सब उनको मिल रहा है तो शत्रु से मित्रता क्यों करे लेकिन इस बात को भूल रहे हैं कि उनका पड़ोसी इजरायल आर्थिक तौर पर शक्तिशाली और सामाजिक तौर पर मजबूत है।
1993 के ओस्लो समझौता से फिलीस्तीन को मजबूती ही मिली और उन्हें आशा ही बँधी है। इस समझौते के द्वारा इजरायल अमेरिका को खुश रखने लिए अपने शत्रु फिलीस्तीन को चाहे या अनचाहे शक्तिमान बनाता गया है । फिलीस्तीन 1990 में जब अपने सौभाग्य के निचले स्तर पर था उससे शक्तिशाली ही हुआ है।
पाइप्स के विचारानुसार हमास और फतह एक होने का प्रयास करते रहेगें। ऐतिहासिक रूप से वे एक दूसरे से लड़ते और साथ काम करते रहे हैं। यह इतना जल्दी नहीं होगा फिर भी जब होगा तो इजरायल के लिए परेशानी का कारण बनकर सामने आयेगा ।
यदि कहीं पर आशा की किरण है तो वह गाजा के लोगों के बीच है जो पश्चिमी के बढ़ते हुए प्रतिबन्धों से परेशान होकर इस्लामिक प्रतिरोध आन्दोलन की शुरूवात न कर दे हमास अब तक प्रतिबन्धों के दबाव से परेशान नहीं हुआ है।
पाइप्स के अनुसार डेट्रायट के यहूदियों को बेहतर ढंग से इस्लाम पर नजर रखनी चाहिये। पाइप्स के अनुसार कानून प्रवर्तन संस्थायें सतर्क हैं, अकादमिक वर्ग प्रश्नों की उपेक्षा करता है और समाचार मीडिया का ध्यान इस ओर नहीं है।
डेट्रायट के यहूदियों को शिकागो के यहूदियों से मिलकर एक स्थानीय शोधकर्ता की नियुक्ति करे जो कट्टरपंथी इस्लाम पर नजर रखे। अनेक ऐसे स्थानीय मुद्दे हैं जो खतरे की घण्टी बजाते हैं काउन्सिल आन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशन्स से आरम्भ करते हैं। स्थानीय समर्थन से सी.ए.आई.आर का आतंक के साथ व्यक्तिगत और सांगठनिक सम्बन्ध है।
जब हम चलने लगे तो पाइप्स के अनुसार यहूदी समुदाय एक कुहासे में घिरा पड़ा है यहाँ पर एक दूसरे की सद्भावना और सह विचार की जरूरत है क्या हम लोगों को यह पता है। निश्चित रूप से नहीं।