बुश प्रशासन 26 नवम्बर को अरब इजरायल कूटिनीतिक सम्बन्धों को लेकर वार्ता के नये चक्र की योजना बना रहा है। मेरी भविष्यवाणी है कि इस वार्ता से अरब इजरायल सम्बन्ध को नुकसान ही होगा ।
वार्ता की सफलता के लिए जरूरी है कि उसके मुद्दे पर मतैक्य हो उदाहरण स्वरूप दोनों पक्ष काम पर लौटना चाहते हैं। जब ऐसा सम्मिलित स्थल नहीं होता तो न केवल सामान्य तौर पर बातचीत असफल होती है वरन् लाभ से अधिक हानि ही होती है। ये सारी बातें आने वाली अन्नापोलीस मेरी लैंड़ वार्ता पर भी लागू होती है यहाँ एक ओर इजरायल शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के साथ रहना चाहता है वहीं पर फिलीस्तीनी उसको समाप्त करना चाहते हैं। ये सारी चीजे हिंसा द्वारा, मतदान द्वारा, राजनीतिक विचारों द्वारा पत्र पत्रिकाओं, स्कूली पुस्तकों , मीडिया के सन्देशों और मस्जिदों के भाषण में दिखाई पड़ती हैं।
1979 से जो हो रहा है इजरायल को वार्ता से सिर्फ नुकसान के अलावा कुछ भी मिलता दिखाई नहीं पड़ता है यहाँ पर भी खोखले वादे और शांति प्राप्ति के लिए इजरायल को त्याग की घोषणा करनी पड़ेगी और बदले में उसे खाली हाथ लौटना पड़ेगा। वार्ता के बाद जो परिणाम आयेगा उससे इजरायल यहूदी राज्य के रूप में कमजोर होगा और अरब फिलीस्तीन की इच्छा शक्ति को बढ़ावा मिलेगा कि किस तरह इजरायल को खत्म किया जाय ।
इसके विपरीत क्या इजरायल फिलीस्तीन और अमेरिका की संयुक्त स्थिति का विरोध करेगा मुझे जो दिख रहा है कि इससे अमेरिका इजरायल सम्बन्ध अभूतपूर्व ढंग से 1975 और 1957 की तुलना में खराब स्थिति में पहुँच जायेंगे। ऐसा इसलिये कि दोनों तरफ से दांव पर बहुत कुछ लगा हुआ है। कोंडोलिजा राइस ने कहा है कि “अमेरिका इस समस्या का समाधान फिलीस्तीन के नये राष्ट्र के रूप में उदय होने पर देखता है, द्विराष्ट्र का सिद्धान्त न केवल फिलीस्तीन और इजरायल के भविष्य के लिये आवश्यक है वरन् मध्य-पूर्व और अमेरिका के लिये भी आवश्यक है”। जो भी इसके रास्ते में आयेगा उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। मैं नवम्बर 2004 से प्राय: कहता आ रहा हूँ अमेरिका – इजरायल सम्बन्ध बड़े नाजुक दौर से गुजर रहा है , इस वार्ता से सम्बन्ध में हिचकोले आने की सम्भावना ज्यादा बढ़ जायेगी ।
यदि हम इस गहरी समस्या को दर किनार करके वार्ता के बारे में विचार करें तो वार्ता में दो व्यवहारिक कठिनाइयाँ आयेंगी। फिलीस्तीन की ओर के नेता मोहम्मद अब्बास ( जेरूसलम पोस्ट के स्तंभकार कारोलिन गिलिक उन्हें) अत्यन्त कमजोर मानते हैं। फिलीस्तीन में कोई जिम्मेदार नेता नहीं है जो सुबह में निश्चित समय पर समाचार पत्र दे सके। जेरूसलम संवाददाता हिर्श गुडमैन के अनुसार “ ऐसी शांति वार्ता की सम्भावना कम ही है जो समय की कसौटी पर जाँची जा सके।”
दूसरी ओर इजरायल के तरफ से भी परेशानी कम नहीं है। प्रधानमंत्री यहुद ओलमर्ट यदि कुछ करना चाहेंगे तो उनके सरकार के सहयोगी नहीं करने देगें । शहस और इजरायल बितेन्यू ने पहले ही चेतावनी दे रखी है कि जेरूसलम का विभाजन और इस तरह का कोई कदम वे स्वीकार नहीं करेगें। लेबर पार्टी के प्रमुख येहूद बराक के बारे में सूचना है कि वे इस बात को स्वीकार नहीं करेगें जिसमें सुरक्षा सेना को पश्चिमी तट पर आजादी से काम करने में रूकावट हो । विदेश मंत्री जिपी लिवनी बिल्कुल इस बात को नहीं मानेगें जिसमें फिलीस्तीनियों को वापस बुलाने के अधिकार की निन्दा न की जाये। एक सर्वेक्षण में 77 प्रतिशत इजरायलियों का मानना है कि फिलीस्तीनियों के साथ शांति समझौता करने के लिये उनकी सरकार अत्यन्त कमजोर है, इससे विभाजन की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं।
इन निराशापूर्ण स्थितियों से अब प्रश्न यह उठता है कि 7 वर्षों तक अरब इजरायल वार्ता से एक दम अलग रहने के बाद क्या बुश प्रशासन दबाव के आगे झुक रहा है? कुछ सम्भावित कारण है-
ईरानी खतरा – राइस ईरानी आक्रामकता के कारण दोनों खतरों वास्तविक ( हिजबुल्लाह, हमास) और भविष्य ( परमाणु हथियार) के चलते इसे मध्य-पूर्व के पुनर्निर्माण के लिये अमेरिकी कूटनीति का एक अवसर मानती है।
कुछ नहीं होना बुरा है –यदि कुछ नहीं होता है तो चुनाव में कदीमा का बुरा प्रदर्शन और भी गिरेगा और पश्चिमी तट पर फतह की पकड़ और ढीली होगी। इस बात की भी संभावना है लिकुड और हमास , ओलमर्ट और अब्बास का स्थान ले सकते हैं जो कि इन दोनों से अधिक बुश प्रशासन को प्रसन्न करेगा।
विरासत– बिगनीव ब्रेजेजिन्स्की ने अन्नापोलिस के लिये विदेश नीति के तत्व और राइस के निराशाजनक विचार की घोषणा की है, “उसे लगता है कि वर्तमान में उसकी विरासत काफी दयनीय है। यदि वह इस बार सफल होती है तो वह इतिहास में एक व्यक्तित्व बन सकेगी। ”
नागरिक सुरक्षा – पश्चिमी तट के फिलीस्तीनी और दक्षिणी अश्वेतों के आम नागरिक पर सुरक्षा के बहाने अपने आपको प्रतिष्ठित करने का मौका ढूढ़ना।
अपने आप से मुग्ध – बुश और राइस इस बात को समझते हैं कि उन दोनों के भाग्य में है कि अरब – इजरायल संघर्ष को दूर करने का प्रयास करें। राइस का यह मानना है कि यही समय है जब फिलीस्तीन और इजरायल के संघर्ष को समाप्त किया जाय।
राइस के वक्तव्य बुश के 1991 के इस कथन को प्रतिध्वनित करते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि समय आ गया है कि अरब इजरायल संघर्ष को समाप्त किया जाये। इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने 2005 में इसी के प्रति अपना भाव प्रकट किया था। परन्तु जैसा कि इरविंग क्रिस्टोल ने स्मरण करते हुये पाया है , “जिन्हें ईश्वर नष्ट करना चाहते हैं वे अरब-इजरायल संघर्ष का समाधान करने के प्रति आकर्षित होते हैं। ”