अमेरिका सेना को बगदाद के अपने अभियान में कामयाबी तो मिलने लगी है परन्तु उसकी गहरी संरचनात्मक गड़बड़ियां उनके इराक अभियान को लगातार नुकसान पहुँचा रही है। अमेरिकी सेना की इस बिडम्बना का सबसे बड़ा प्रतीक है इराक का सबसे बड़ा बाँध मोसुल बाँध जो कि तुर्की की सीमा के पास मोसुल शहर के करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर है।
वास्तव में इराक में अमेरिकी सेना के प्रवेश के बाद ही जो पहली रिपोर्ट आयी थी उसमें यह साफ- साफ लिखा था कि यह बाँध बुरी तरह रिस रहा है और किसी समय ध्वस्त हो सकता है। अमेरिका सेना के इंजीनियरिग शाखा की एक हाल में आयी रपट ( जो कि अभी भी गोपनीय है ) कहती है कि इस बाँध की सालाना असफलता की संभावना बहुत ज्यादा है। रिपोर्ट आगे कहती है कि इसके तात्कालिक ध्वंस की संभावना बहुत ज्यादा है। एक वरिष्ठ आकलनकर्ता तो एस बाँध की तुलना एक ऐसे टाइम बम से करते हैं जो कभी भी फट सकता है।
आइए अब थोड़ा विचार करते है मोसुल बाँध (जो पहले सद्दाम डैम के नाम से जाना जाता था ) की इन संरचनात्मक कमजोरियां पर जो इसको इतना कमजोर बना रही है। दरअसल यह सारा बाँध जिप्मस की एक अस्थिर आधार शिला पर खड़ा किया गया है, और इसके नींव के क्षरण से बचाने के लिए इसकी जड़ में लगातार ग्राउट का डाला जाना आवश्यक है। पिछले कई सालों में इंजीनियरो की एक विशाल सेना ने इसकी जड़ में करीब 50 हजार टन की मात्रा के बराबर बेन्टोनाइट , सीमेंट , पानी और हवा का मिश्रण डाला जो इसको अभी तक खड़ा रखने के लिए जरूरी था। वाशिंगन पोस्ट का एक विश्लेषण कहता है 24 बड़ी मिश्रण मशीनें इस बाँध की जड़ में चौबीसों घंटो (ग्राउट) डालती रहती हैं फिर इसके गढ्ढे पैदा होते रहते हैं क्योंकि जिप्सम घुलकर ढाँचे के नीचे जाता रहता है।
इन प्रयासों के बावजुद बाँध की हालत दिन पर दिन कमजोर होती जा रही और इसके ध्वंस की संभावना बढ़ती जा रही है। और यह स्थित भयावह हो सकती है। “ इंजीनियरिंग न्यूज ’’ का आकलन कहता है कि अगर यह बाँध टूटा तो 3.5 किलोमीटर तक फैले इस जलाशय में समाया करीब 12.5 मिलियन धन मीटर पानी टिकरिस नदी के द्वारा मोसुल शहर (इराक का दूसरा सबसे बड़ा शहर) की ओर बढ़ेगा और करीब 40 मीटर ऊँची लहरे 17 लाख की आबादी वाले इस शहर को दो घंटे में तबाह कर देंगी ’’।इसके अलावा 70 लाख की आबादी वाला बगदाद शहर भी करीब 5 किलोमीटर ( 16 फीट ) पानी के नीचे होगा।
अमेरिका सेना का यह आकलन कहता है कि बाँध के टूटने से आयी बाढ़ तत्काल ही करीब 5 लाख लोगो का अंत कर देंगी और इसके दुष्परिणाम ( बिजली की क्षति और सूखा) इससे कई गुणा लोगों को काल के मुंह में धकेल देगी। यह इतिहास में मानव द्वारा पहुंचायी गई सबसे बड़ी क्षति होगी।
दुर्भाग्य से कई इराकी अधिकारी इन खतरों के प्रति अजीब सा और अनमना रूख अपना रहे है उन्होंने अमेरिकी सेना के इस सुझाव को कि इस बाँध के बैक –अप के लिए एक दूसरा बाँध बनाया जाए इसको भी एक अनावश्यक सुझाव मान ठुकरा दिया है। यह रूख इस समस्या को और भी गंभीर बना देती है।
पर विडम्बना यह है कि अगर यह बाँध टूटता है तो सारी जबाबदेही अमेरिका पर ही आएगी। आखिरकार जार्ज बुश ने सम्पूर्ण इराक की कायापलट ( और मोसूल बाँध भी इसका हिस्सा है ) का वादा जो किया है। इसी कारण अब तक अमेरिकी करदाता अपनी गाढ़ी कमाई का करीब 27 मिलियन डालर इस बाँध के बेहतर संरक्षण प्रयासों खर्च कर चुके हैं , परन्तु जैसा कि इराक के नवनिर्माण के लिए तैनात विशेष इंस्पेक्टर जनरल की रिपोर्ट कहती है ये प्रयास अब भी अव्यवस्थित और अप्रभावी है।
ऐसे किसी भी हादसे में लाखों इराकियों की मौत एक बार फिर अमेरिकी अत्याचार का उदाहरण मानी जायेगी। ऐसी घटना निश्चित तौर पर अमेरिकी सरकार के प्रति रोष को जन्म देगी और साथ ही अमेरिकी जनमानस को एक आत्मग्लानि का सामना करना पड़ेगा। हालांकि ये सारा रोष एवं आक्रोश निश्चिति तौर पर अनुचित ही होगी।
इस बाँध के निर्माण के पीछे भी शायद ही कोई अमेरिकी हाथ हो। दरअसल ये सारा कार्य सऊदी अरब और बाकी अरब राष्ट्रों की मदद से हुआ था। एक इटालियन और जर्मन संयुक्त उपक्रम ( जिसके प्रमुख होशिफ एकतिन्गलेशाफ थे) ने 1981-84 के दौरान इस बाँध का निर्माण किया था। अगर साफ कहें तो इस बाँध के निर्माण से अमेरिका का ना तो आर्थिक ना ही राजनैतिक अथवा सामाजिक हित सधता है या इसका तात्कालिक राजनैतिक कारण था – ईरान – इराक युद्ध के दौरान सद्दाम हुसैन के हाथों को मजबूत करना । पर दुर्भाग्य से एक गलत अमेरिकी रणनीति ने इसे अमेरिका का नया सिरदर्द बना दिया है।
दर असम मोसूल बाँध प्रतीक है उन समस्याओं का जो जाने अनजाने अमेरिका एवं उसके सहयोगी राष्ट्रों के लिए एक अनचाही जिम्मेदारी बन चुकी है। ऐसी कई और भी समस्याएं हैं जैसे कि ईंधन एवं बिजली की आपूर्ति, स्कूलों और अस्पतालों का संचालन , एक साफ सुथरे राजनैतिक और कानूनी माहौल का निर्माण आदि शामिल है। और इसके साथ ही आतंकवाद से भय मुक्ति।
जैसा कि मैं अप्रैल 2003 से ही लिखता आ रहा हूँ , इराकी जनजीवन से जुड़ी इन समस्याओं से अमेरिकी प्रशासन का जुड़ाव दोहरी समस्या उत्पन्न करता है। जहाँ एक तरफ यह अमेरिकों के लिए अवाँछित जीवन हानि , आर्थिक नुकसान और राजनैतिक बोझ का कारण साबित हो रहा है वहीं इराकी प्रशासकों को ( जैसा कि बाँध के उदाहरण से साफ होता है ) अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उदासीन और गैर जिम्मेदार बना रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह अमेरिका एवं इराक दोनों के लिए भयावह राजनैतिक परिणामों को जन्म दे सकता है।
इस परिस्थिति में बदलाव की आवश्यकता है। बुश प्रशासन को इराक की रोजमर्रा की समस्याओं (खासतौर पर मोसुल बाँध) को उसके स्थानीय प्रशासकों सौंप देना चाहिए। अगर थोड़ा खुलकर कहें तो हमें यह अटपटा और कुछ हद तक उल्टा तरीका द्वा जहाँ हम युद्ध को समाज सेवा के तौर पर देखना छोड़ना होगा। आखिर कब तक अमेरिकी सेना की कामयाबी का पैमाना उनके द्वारा पराजित शत्रुओं को दी जा रही सहूलिअतों से तय होगा आखिरकार यह सेना अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए है , न की किसी और के।