क्या हम में से किसी ने भी अमेरिका द्वारा लड़े जा रहे दो प्रमुख युद्धों के प्रति अमेरिकी रूख में में आयी असमानता पर ध्यान दिया है ? कदाचित नहीं
जब बात ईराक में लड़े जा रहे युद्ध की होती है तो अमेरिकी सरकार रूख सकारात्मक सधा हुआ और केन्द्रित होता है पर जैसे बात ही इस्लामिक आतंकवाद के विरोध की आती है हमारा प्रशासन तंत्र अनमना, प्रतिक्रियात्मक और किंकर्तव्य लगने लगता है।
अब आतंकवाद की रोकथाम का ही मुद्दा लेते हैं। न्युयार्क टाइम्स की एक हालिया रपट कहती है कि वाशिंगटन प्रशासन हजारों इराकियो और अमेरिकी – इराकी नागरिकों की गतिविधियों पर निगाह रखता है , ताकि आतंकवाद और भीतरघात के आंतरिक खतरे से बचा जा सके। ऐसी योजनाएँ भी अस्तित्व में हैं जिनके तहत हजारों सद्दाम समर्थकों को आतंकवादी कार्यवाही के शक पर गिरफ्तार किया जा सके ।
परन्तु इस्लाम के खिलाफ चल रहे युद्ध में ऐसी कोई व्यवस्था नजर नहीं आती। (ध्यान रहे यहाँ आतंकी इस्लाम से मेरा अर्थ न तो इस्लाम से है और न ही आतंकवाद वरन् यह तो इस्लाम के आतंकी अध्ययन को इंगित करता है) कानून व्यवस्था का संचालन देखने वाली हमारा एजेन्सियाँ डर से ऐसी अधिनायकवादी विचारधारा से जुड़े लोगों के प्रति एक असहज सावधानी पूर्ण व्यवहार करती है। शायद यही कारण है कि एयरपोर्ट से जुड़े सुरक्षा कर्मचारी आम यात्रियों को ज्यादा परेशान करते नजर आते हैं न कि उनको जो ओसामा बिन लादेन और आयोतुल्ला खुमैनी की विचार धारा के पक्षधर हैं।
प्रव्रजन अधिकारी भी लोगों की राष्ट्रीयता और आपराधिक रिकार्ड जैसी फालतू बातों पर ज्यादा ध्यान देते नजर आते है न कि लोगों की विचारधारा पर जो कि ज्यादा महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है।
हद तो जब होती है जब व्हाइट हाउस भी ऐसे इराकियों को अपने आयोजनों में नहीं बुलाता जो ईराकी जनजीवन की प्रशंसा करते है , परन्तु इस्लामिक आतंकवाद के पक्षधरों को अमेरिकी राष्ट्रपति अपने रमजान के उपलक्ष्य में दिये गये रात्रिभोज में आमंत्रित करना नहीं भूलते ।
एक दूसरा उदाहरण लेते है – आप लोगों ने आखिरी बार कब किसी को एक अमेरिका टाकशो में सद्दाम हुसेन की सराहना करते हुए सुना है ? ऐसा तो शायद होता ही नहीं है । पर मीडिया माध्यम आतंकी इस्लाम के प्रचारकों को अकसर एक मंच प्रदान करते रहते हैं।
तो शायद “ ईराक के खिलाफ युद्ध ’’ आतंकी इस्लाम के विरूद्ध युद्ध ’’करना टेढ़ी खीर है। शायद तभी बुश प्रशासन ने “ आतंक विरोधी युद्ध ’’का मुहावरा अपनाया हुआ है।
आखिर इराक से सीधी टक्कर लेने में उतावला यह प्रशासन आतंकी इस्लाम के प्रति क्यों इतना हिचकिचा रहा है ?
इसके पीछे दो तथ्य हैं जो शायद सद्धाम के पास नहीं थे पहला है राजनैतिक सापेक्षता और दूसरा है लामबंदी। इराक के शासक बिगडे हुए तानाशाही का प्रतीक थे जब कि आतंकी इस्लाम की विचारधारा एक धर्म से जुड़ी हुई है। अमेरिका में सद्दाम के समर्थक बस मुठ्ठी भर लोग ही थे , पर इस्लामी विचारधार के प्रवक्ताओं की तो जैसे एक फौज ही खड़ी है।
हालांकि की हमसे हर कोई इस बात को जानता है कि हमारे असली दुश्मन को मिलने वाली प्रेरणा कहीं न कहीं इस्लाम से जुड़ी है , परन्तु न जाने क्यों अमेरिका प्रशासन इस तथ्य को खुलेआम स्वीकारने से डरता है। इसकी जगह वह उन्हीं लुभावने बयानो को दुहराता रहता है जो इस्लाम को आतंकी विचारधारा से अलग साबित करने में लगी है।
राष्ट्रपति बुश का इसी विषय पर अपने विचार कुछ यूँ प्रकट करते है , इसके बहुसंख्यक अनुयायियों के लिए इस्लाम एक शांतिपूर्ण धर्म है, एक ऐसा धर्म जो दूसरों का आदर करता है। बहुत अच्छे , पर यह बयान उन्ही के प्रशासन द्वारा झेली जा रही कई परेशानियों से मुँह कतराता नजर आता है।
आतंकी इस्लाम को इस तरह अमान्य करने से हमारे युद्ध प्रयासों को कई तरह से धक्का पहुंचता है।
1- शत्रुओं के इरादे समझने में – आधिकारिक स्तर पर इस्लाम और हिंसा के बीच के संबन्ध की चर्चा करना लगभग मना है। एक वरिष्ठ अधिकारी की माने तो ऐसे मामलों को बड़ी सावधानी से चलता कर दिया जाता है। परिणाम यह है कि हिंसा के मूल स्रोत अभी भी अज्ञात है ये ( बुश के शब्दों में ) कुछ शातिर हत्यारों के एक दल ’’ की करतूत मात्र है।
2- युद्ध लक्ष्यों के निर्धारण में अमेरिकी सरकार द्वारा घोषित युद्ध लक्ष्य अपने आप में बड़े स्पष्ट है। जैसा कि एक बार पूर्व रक्षा मंत्री डोनाल्ड रम्सफील्ड ने कहा था इसका लक्ष्य ”हमारे जनजीवन पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को रोकने में है। अगर ऐसा है तो इस विचारधारा को पराजित एवं निष्प्रभावी करने का लक्ष्य तभी प्राप्त हो सकता है जब हम इसे खुलकर इंगित करे ( शायद उसी तरह जिस तरह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फासीवाद एवं शीत युद्ध में साम्यवाद के साथ किया गया था )
3- शत्रु के निर्धारण में – अब तक इसका मतलब है “ आतंकवादी ’’ गुँडे ’’खतरनाक लोगों का एक समूह ’’ और ऐसे ही कुछ साधारण शब्दावली। आतंकी इस्लाम को इस परिभाषा में शामिल करने का मतलब होगा उन अहिंसक तरीको को भी शामिल करना जो इस तरह की अधिनायकवादी विचारधारा के पोषक हैं। इसमें इसके प्रचारक , समर्थक, पोषक और विचारक सभी।
4- मित्रो की पहचान में – अभी तक हम उन्हे ही अपना मित्र या सहायक मानते हैं जो आतंकवाद के प्रतिरोध में हमारी मदद करते है। परन्तु जब आतंकी इस्लाम को चिन्हित किया जाएगा तो वे मुसलमान जो इस अतिवादी विचारधारा को नकारते हैं वे भी हमारे सहायको की श्रेणी में आ जाएंगे। वे हमारी मदद इसके खिलाफी तर्कों से भी कर सकते हैं और इसका एक विकल्प प्रदान करके भी।
अंतत: हम तब तक कोई युद्ध नहीं जीत सकते जब तक हमे शत्रु की सही पहचान न हो। अगर अमेरिका सरकार को वर्तमान संघर्ष में अपनी विजय चाहिए तो उनको “ आतंकी इस्लाम के खिलाफ युद्ध ’’ के बारे में बोलना शुरू कर देना चाहिए। यह कई अन्य लोगों – मीडिया , हालीवुड और लेखकों को भी – ऐसा करने में मददगार साबित होगा । और ऐसा करते ही हमारे युद्ध प्रयास बिल्कुल सही रास्ते पर आ जाएंगे।