आम धारणा के विपरीत ए.के पी.तुर्की में अमेरिका - विरोधी गतिविधियों का स्रोत नहीं है वरन् यह तो इस क्षेत्र में अमेरिका का सबसे आदर्श सहयोगी है ” ऐसा मानना है जोशुआ डब्ल्यू वाकर का तुर्की की जस्टिस और डेवलेपमेन्ट पार्टी ( जिसे ए.के.पी.के नाम से जाना जाता है) के बारे में। वाकर अमेरिका के गृह मंत्रालय में तुर्की संबंधी विभाग के भूतपूर्व आफिसर हैं और अब वे प्रिंसटन विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं। द वाशिंगटन क्वारटर्ली में लिखते हुए वाकर अपने मत को इस सिद्धान्त पर मजबूती प्रदान करते हैं की तुर्की की भूमिका इराक में कितनी सकारात्मक रही है, साथ ही वे इस बात की सराहना करते हैं कि तुर्की ने इराक में अमेरिकी गठबन्धन की संरक्षा की और कैसे वे बुश प्रशासन के साथ उस समय भी कार्य करते रहे , जबकि कई अन्य यूरोपीय राष्ट्र इससे बिदकते रहे हैं।
इतना ही नहीं वे तुर्की में धर्मनिरेपक्षा ढ़ाँचों के विघटन का भी स्वागत करते हैं, जो उनके अनुसार तुर्की में धर्मनिरेपक्षता को इस तरह से परिभाषित किया गया है कि यह तुर्की राज्य के पुरातन, संकुचित और प्रतिगामी अलोकतांत्रिक स्वरूप की रक्षा के लिए एक कवच भर बन कर रह गया है।
अमेरिका और तुर्की के सम्बन्धो के पुन: परीक्षण वाला यह अध्ययन मेरे जैसे लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता है जो कि तुर्की के लम्बे समय से बरकरार धर्मनिरेपक्ष स्वरूप की सराहना करते है और यह जानते हैं कि ए.के.पी एक ऐसा इस्लामिक संगठन है जो तुर्की में इस्लामी शरिया कानून थोपना चाहते हैं और संभवत: धर्मनिरेपक्ष अतातुर्की परंपरा को उखाड़ फेक इस्लामिक रिपलिब्कन ऑफ तुर्की की संस्था करना चाहता है।
नई वास्तविकताएँ एक निर्मम पुनरावलोकन की मांग करती हैं और इसके लिए हमें इस साठ साल पुराने सम्बन्धों से जुड़ी भावनाओं को थोड़े समय के लिए ताक पर रखना होगा। तुर्की को वापस पश्चिमी खेमे में वापस लाने के लिए कुछ कठोर कदमों की जरूरत है जो उस खतरे को कुंद कर सके जो तुर्की के इस्लामीकरण के साथ ही पश्चिमी जगत के सामने आ सकते हैं। हालांकि तात्कालिक तौर पर सभी पश्चिमी सरकारे वाकर के सरल और समायोजन वाले मत के साथ है और कुछ ने तो तुर्की के लगातार बढ़ते रूख के प्रति उत्साह भी दिखाया है परन्तु इन संतोषजनक शब्दों और अटपटे विश्लेणों को इस बात की इजाजत नहीं दी सकती की वे तुर्की में रह रहे खतरनाक घटनाक्रमों को छुपा सकें।
सौभाग्य से वाकर का यह अध्ययन इन्हीं नई वास्तविकताओं का सबूत प्रदान करता है। शुरूआत के लिए, ए.के.पी शासनकाल के पाँच वर्षों में तुर्की में अमेरिका विरोधी गतिविधियां खुले तौर पर फली-फूली हैं और हालात इस कदर खराब हो गये हैं कि तुर्की लोग अमेरिका के खिलाफ सबसे ज्यादा शत्रुतापूर्ण रूख वाले माने जा रहे है। 2000 में हुए एक मतदान के अनुसार 52 प्रतिशत लोग अमेरिका के प्रति अनुकूल मत रखते थे पर 2007 में ऐसे लोगो की संख्या सिर्फ 9 प्रतिशत ही थी। रिसेप तईप एरडोगन और अबदुल्ला गुल के नेतृत्व वाली सरकार ने निश्चित तौर पर उस भावना को पनपने में मदद दी है जिसे वाकर एक ऐसे अमेरिका विरोध की एक ऐसी भावना मानते हैं जो सिर्फ 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति को बदलने से ही नहीं रूकने वाला है।
इस संदर्भ में सबसे अहम घटना जो अब आंतरिक मात्र रह गयी है, जिसमें तुर्की संसद ने एक मार्च 2003 को एक मतदान द्वारा तुर्की को सद्दाम हुसैन के प्रशासन के खिलाफ अमेरिकी फौज के युद्ध अभियान का एक प्रारंभिक आधार बनने से प्रशासन को रोक दिया था। इस इंकार ने एक ऐसी पारस्परिक संशय की भावना पैदा कर दी जिसने अंकारा को इराक के प्रति किसी नीति निर्णयक धारा से अलग-थलग कर दिया। इस विलगाव का परिणाम यह हुआ कि जब उत्तरी इराक के एक कुर्दिश क्षेत्रीय सरकार का गठन हुआ तो उसने वर्कर्स पार्टी ऑफ कुर्दिस्तान जिसे पी.के.के के नाम से जाना जाता है) को इराकी धरती का इस्तेमाल तुर्की आक्रमणों के लिए दे दी इस सबने तुर्की में जन भावनाएं भडकाने में मदद की ।
सर्वथा नयी और नाटकीयकता से भरी विदेश नीति जो तुर्की के वाशिंटन पर निर्भरता को कम करने और उसके पड़ोसियों से संबंध मजबूत करने पर जोर देती है, ने उस वक्त से तनाव की स्थिति पैदा कर दी है जब से अहमेत दावूत्वोग्लू एरडोजन के प्रमुख विदेश नीति सलाहकार बने वाकर भी इस तथ्य को स्वीकार करते है कि एस तरह की नीति अमेरिकी – तुर्की के ऐतिहासिक गठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।
दुर्भाग्य से ये सबकुछ बुश प्रशासन का किया धरा है। 2002 के आस-पास इस प्रशासन की सोच इस्लामिक प्रशासकों के कानूनी रूप से सत्ता में आने को प्रोत्साहन दे रही थी इसी तथ्य से एरडोगन प्रशासन को एक बड़े कानूनी पचड़े से बचा लिया था । यह वही समय था जब राष्ट्रपति बुश ने तमाम परम्पराओं को ताक पर रखकर एरडोगन से व्हाइट हाउस में मुलाकात की थी जबकि वे उस समय एक पार्टी के नेता ही थे कोई राजकीय अधिकारी नहीं। वाकर के शब्दों में “ इस मुलाकात ने साफ –साफ संकेत दे दिया कि बुश प्रशासन एरडोगन और ए.के.पी सरकार दोनों का ही सर्मथक है ”।
जापान और तुर्की , यही दो देश है जो नीतिगत मामलो में काफी लचीला रूख रखते है। कमाल अतातुर्क ने लगभग अकेली और पंद्रह सालों के छोटे समय के अंतराल में ही तुर्की को पश्चिमी खेमे में ला दिया था। अब एरडोगन ने सिर्फ 5 साल में इसे पूरब की ओर मोड़ दिया है। ये हालिया बदलाव इस तेजी से हुए हैं कि नाटो संगठन के साथ अपने औपचारिक संबंधों के बावजूद हम तुर्की को अब एक पश्चिमी सहयोगी नहीं मान सकते। हालांकि ये निश्चिति तौर पर एक शत्रु भी नहीं है हम उसे रूस , चीन और सऊदी अरब की उस मध्यवर्ती कतार में डाल सकते हैं जो कभी प्रतिद्वन्दी बन जाते हैं पर यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमे हमे धमकाने भी लगे।
हालांकि तुर्की पर बाहरी दबाव उसे इस्लामीकरण की दृढ़ इच्छा से नहीं दूर कर पाएंगे परन्तु हमे यथासंभव प्रयत्न तो करने ही पड़ेगे। सबसे महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है कि एक तुर्की को तब तक यूरोपियन संघ की सदस्यता से वंचित रखा जाए जब तक उसका यह वैचारिक अक्खड़पन दूर नहीं हो जाता ।