जैसा कि मैने पिछले सप्ताह दिखाया कि फिलीस्तीन को पश्चिमी आर्थिक सहायता का उल्टा परिणाम होता है और उनसे उनकी जनसंहार की दर जिसमें आतंकवादी भी शामिल हैं बढ़ती है। इस सप्ताह मैं पश्चिम द्वारा अरबों डालर और रिकार्ड प्रति व्यक्ति दान के सम्बन्ध में दो विचित्र समाचार बताऊँगा। पहला तो यह कि इससे फिलीस्तीनी और गरीब हुए हैं तथा दूसरा यह कि फिलीस्तीनी विपन्नता लम्बे समय के लिए एक सकारात्मक बात है ।
आरम्भ करते हैं फिलीस्तीनी अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में कुछ मूलभूत तथ्यों से जो 24 दिसम्बर के जेरूसलम रिपोर्ट के अंक में “टर्मिनल सिचुएशन ”में जिव हेलमैन के सर्वेक्षण पर आधारित है।
1992 में फिलीस्तीनियों की प्रति वर्ष व्यक्ति आय 2,000 यू.एस डालर अपने भव्यतम दिनों में थी जो कि ओस्लो समझौते के बाद से 40 प्रतिशत घटकर 1,2 000 यू.एस डालर मात्र रह गई है।
1997 में इजरायल के लोगों की प्रति व्यक्ति आय फिलीस्तीनियों से 10 गुना अधिक थी जो अब 23 गुना अधिक है।
गाजा में भीषण गरीबी 1998 में कुल जनसंख्या का 22 प्रतिशत थी जो 2006 में 35 प्रतिशत के लगभग है। यदि खाद्यान्न सहायता या आर्थिक सहायता छोड़ दी जाये तो यह 67 प्रतिशत है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अस्तित्व शायद ही है। जबकि स्थानीय पूँजी विशेषकर विदेशों में भेजी जाती है या फिर जमीन के व्यवसाय या अल्पावधि व्यवसाय में लगाई जाती है।
हेलमैन लिखते हैं कि फिलीस्तीनी अथारिटी की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कमीशन के बदले में अथारिटी के अधिकारियों द्वारा विभिन्न उद्योगों में एकाधिकार सौंपने पर आधारित है। फिलीस्तीनी अथारिटी में मजदूरी इतनी मँहगी है कि मजदूरी का वेतन ही समस्त राजस्व को पार कर जाता है। फिलीस्तीनी अथारिटी में न्याय व्यवस्था ठीक से कार्य नहीं करती जिसका अर्थ हुआ कि सशस्त्र गुट व्यावसायिक विवादों का निपटारा करते हैं।
कोई आश्चर्य नहीं की हेलमैन ने फिलीस्तीनी अर्थव्यवस्था को संकटग्रस्त कहा है।
यह संकट कोई आश्चर्य नहीं लगना चाहिए क्योंकि स्वर्गीय लार्ड बावर और अन्य लोगों ने लिखा था कि विदेशी सहायता काम नहीं करती। यह अर्थव्यवस्था को नष्ट और भ्रष्ट करती है जितनी मात्रा में राशि सम्मिलित होती है उतना ही नुकसान होता है । इसका एक उदाहरण यह है कि यासिर अराफात के शासन में फिलीस्तीनी अथारिटी के बजट का तीसरा हिस्सा राष्ट्रपति कार्यालय के लिए खर्च होता था और इसकी कोई व्याख्या, अंकेक्षण या हिसाब भी नहीं होता था। विश्व बैंक ने जब इस पर आपात्ति जताई तो इजरायल की सरकार और यूरोपीय संघ ने इस भ्रष्ट व्यवस्था को मान्य कर दिया और इसलिएयह चलता रहा ।
वास्तव में फिलीस्तीनी अथारिटी इस बात का किताबी उदाहरण प्रस्तुत करता है कि किस प्रकार दिग्भ्रमित दान द्वारा अर्थव्यवस्था नष्ट की जा सकती है। हाल ही में 2008-10 के मध्य 7.4 बिलियन डालर की आर्थिक सहायता का संकल्प जो इसके लिए हुआ है उससे और अधिक क्षति ही होगी ।
बिडम्बना देखिए कि इस भूल से अरब – इजरायल विवाद के समाधान में सहायता मिलेगी। यह देखने के लिए कि ऐसा क्यों , कष्ट बनाम उल्लास के दो माडल पर ध्यान दीजिए जो कि फिलीस्तीन के अतिवाद और हिंसा की व्याख्या करता है।
कष्ट माडल के अनुसार पश्चिमी राज्य मानते हैं कि फिलीस्तीनी कार्रवाई का कारण गरीबी , अलग-थलग पड़ना , इजरायल द्वारा रास्ता बंद करना और राज्य हीनता है। नवम्बर में अन्नापोलिस सम्मेलन में फिलीस्तीनी अथारिटी के नेता महमूद अब्बास ने इस दृष्टिकोण को संक्षेप में इस प्रकार समझाया , “आशा की अनुपस्थिति और निराशा का अतिरेक कट्टरता का पोषण करता है । इन कष्टों का निवारण कर दीजिए और फिलीस्तीनी अपना ध्यान रचनात्मक चीजों जैसे आर्थिक विकास और लोक तन्त्र की ओर दें देंगे ।” समस्या तो यह है कि परिवर्तन कभी नहीं आता ।
उल्लास का माडल अब्बास के तर्क के विपरीत है। वास्तव में निराशा की ओर अनुपस्थिति और उत्साह का अतिरेक कट्टरता का पोषण करता है। फिलीस्तीनियों के लिए उनकी आशा इजरायल की कमजोरी और इस आशा पर आधारित है कि यहूदी राज्य को नष्ट किया जा सकता है इसके विपरीत जब फिलीस्तीनी इजरायल के विरूद्ध कोई कदम उठता नहीं देखते तो वे रोजमर्रा के कार्यो जैसे जीविकोपार्जन या अपने बच्चों को शिक्षित करने में लग जाते हैं। ध्यान देने की बात है कि 1992 में फिलीस्तीनी अर्थव्यवस्था अपने चरम पर थी क्योंकि सोवियत संघ के बाद और कुवैत युद्ध के पश्चात इजरायल को नष्ट करने की आशा अपने निम्नतम स्तर पर थी।
कष्ट नहीं वरन् उल्लास फिलीस्तीनियों के युद्धपरक ब्यवहार के लिए उत्तरदायी है। इसके अनुसार जिसमें भी फिलीस्तीनी आत्म विश्वास कम होता है वह अच्छी चीज है। एक असफल अर्थव्यवस्था से फिलीस्तीनियों में अवसाद का भाव व्याप्त होता है परन्तु सैन्य और अन्य क्षमताओं के सम्बन्ध में नहीं और उनका संकल्प अधिक सशक्त होता है।
फिलीस्तीनियों को जब पराजय मिलेगी तभी वे अपने पड़ोसी इजरायल को नष्ट करने का लक्ष्य छोड़कर अपनी अर्थव्यवस्था , राजनीति ,समाज और संस्कृति के निर्माण में जुटेंगे। इस सुखद परिणाम का कोई छोटा रास्ता नहीं है। जो भी फिलीस्तीनियों की सही ढंग से परवाह करता है उसे उन्हें शीघ्र निराशा में लाना होगा। जिससे सक्षम और शालीन लोग वर्तमान वर्बरता से परे हटकर कुछ शालीन निर्माण कर कर सकें ।
विशाल और निरर्थक पश्चिमी आर्थिक सहायता इस निराशा को विडम्बनापूर्ण ढंग से दो प्रकार से लाती है आतंकवाद को प्रोत्साहित कर और अर्थव्यवस्था को नष्ट कर और दोनों में ही आर्थिक ह्वास अन्तर्निहित है। ऐसा बिरला ही होगा जब बिना किसी आशय के कानून के परिणाम इस प्रकार काल्पनिक हों।