फिलीस्तीनियों का इजरायल की प्रशंसा करने का एक छुपा इतिहास हैं जो उनके इजरायल को बदनाम करने और उसे अपना घर मानने के वर्णन के ठीक विपरीत है।
पहली बात उस समय सत्य सिद्ध हुई जब विशेष रूप से इजरायल के प्रधानमंत्री येहुद ओलमर्ट ने अक्टूबर में एक विचार का गुब्बारा उड़ाया कि उत्तरी जेरूसलम का अरब बहुल क्षेत्र फिलीस्तीनी अथारिटी को स्थानान्तरित किया जा सकता है। उन्होंने 1967 में इजरायल की कार्रवाई के बारे में प्रश्न पूछते हुए कहा, “क्या यह आवश्यक था कि शौफत शरणार्थी शिविर, अल सवाहरा और अन्य गाँवों को अपने में मिलाकर कहा जाता कि ये जेरूसलम का अंग है। मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ कि इस सम्बन्ध में कुछ वास्तविक प्रश्न पूछे जा सकते हैं ”।
एक ही झटके में इस वक्तव्य ने फिलीस्तीनियों को इजरायल समर्थक व्यवहार में परिवर्तित कर दिया जो कि सिद्धान्त रूप में सक्रिय और राजनीतिक नहीं हैं।
निश्चय ही ओलमर्ट के विचार से कुछ संघर्षात्मक प्रतिक्रियायें आई। जैसा कि ग्लोब एण्ड मेल समाचार के शीर्षक ने इस सामग्री को कुछ यूँ रखा, “ कुछ फिलीस्तीनी इजरायल में जीवन को प्राथमिकता देते हैं, उत्तरी जेरूसलम में निवासी कहते हैं कि वे अब्बास शासन को सौंपे जाने के विरूद्ध लड़ेंगे ”।इस लेख में नाबिल घेट का उदाहरण दिया गया है जो इजरायल की जेलों में दो बार आया है और उसके नकदी रजिस्टर पर “शहीद सद्दाम हुसैन ”का चित्र है इसलिए उससे अपेक्षा थी कि वह उत्तरी जेरूसलम के फिलीस्तीनी अथारिटी के कब्जे में आने की सम्भावनाओं से प्रसन्न होगा।
परन्तु ऐसा नहीं हुआ। शौफात के निकट रास खामिस के मुख्तार घेट फिलीस्तीनी अथारिटी को लेकर सशंकित हैं और कहते है कि वह तथा अन्य लोग सौंपे जाने विरूद्ध लड़ेंगे। “ यदि यहाँ जनमत संग्रह हो तो कोई भी फिलीस्तीनी अथारिटी में शामिल होने के लिए मत नहीं देगा। फिलीस्तीनी अथारिटी से स्वयं की रक्षा के लिए एक और इन्तिफादा होगा ”।
पिछले सत्ताह कीवोन रिसर्च, स्ट्रैटजी एण्ड कम्युनिकेशन और अरबी भाषा के समाचार पत्र अस- सेनारा द्वारा दो जनमत संग्रह कराये गये जिसमें सर्वेक्षण के प्रतिनिधियों ने वयस्क अरबों को नमूने के तौर पर लिया और फिलीस्तीनी अथारिटी में शामिल होने से सम्बन्धित प्रश्न पूछे और लोगों ने घेट का समर्थन किया । जब उनसे पूछा गया कि आप इजरायल की नागरिकता को प्राथमिकता देगें या नये फिलीस्तीनी राज्य की तो 62 प्रतिशत लोगों ने इजरायल की नागरिकता कहा जबकि 14 प्रतिशत लोग भविष्य के फिलीस्तीनी राज्य की नागरिकता चाहते थे। जब उनसे पूछा गया कि “ क्या आप त्रिकोण (उत्तरी इजरायल के अरब बहुल क्षेत्र ) को फिलीस्तीनी अथारिटी को स्थानान्तरित करने का समर्थन करेंगे तो 78 प्रतिशत लोगों ने इस विचार का विरोध किया और 18 प्रतिशत लोगों ने इसका समर्थन किया।
नहीं जानते या मतदान में भाग न लेने वालों की अपेक्षा कर दी जाये तो उत्तरदाताओं का 82 से 81 प्रतिशत तक इजरायल में रहने के पक्ष में था। घेट ने अतिशयोक्तिपूर्ण कहा कि कोई भी फिलीस्तीनी अथारिटी में नहीं रहना चाहता। जब से ओलमर्ट के बयान ने उनके बिन्दु का समर्थन किया है तब से जेरूसलम में हजारों फिलीस्तीनी नागरिक जो फिलीस्तीनी अथारिटी से भयभीत हैं उन्होंने इजरायल की नागरिकता के लिए आवेदन किया है।
आखिर उस राज्य के लिए इतना प्रेम क्यों जिसे फिलीस्तीनी मीडिया में , विद्वतसभा में , कक्षाओं में, मस्जिदों में और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनो में खुलकर गाली देते हैं और दिन – प्रतिदिन आतंकित करते हैं। अच्छा होगा कि उनके उद्धरणों में ही ब्याख्या करने दी जाये।
आर्थिक कारण – रान्या मोहम्मद के अनुसार “मैं फिलीस्तीनी अथारिटी का भाग किसी भी प्रकार नहीं बनना चाहती। मुझे स्वास्थ्य बीमा, विद्यालय चाहिए जो हमें यहाँ रहने से मिलता है ”। मैं फिलीस्तीनी अथारिटी के अंदर रहने के बजाय इजरायल जाऊँगीं चाहे इसका अर्थ इजरायली पासपोर्ट लेना ही क्यों न हो। मैंने फिलीस्तीनी अथारिटी में उनके कष्ट देखे हैं। हमें तमाम विशेषाधिकार हैं , मैं इसे छोड़ना नहीं चाहती ”।
कानून व्यवस्था – अरब – इजरायल पत्रकार फैज अब्बास और मोहम्मद अब्बास ने लिखा कि “गाजा के लोग इजरायल को याद कर रहे हैं क्योंकि इजरायल के लोग फिलीस्तीनी हथियार बन्द लोगों से अधिक दयालु हैं। जिन्हें कि यह तक नहीं पता है कि वे क्यों एक दूसरे को मार रहे है या लड़ रहे हैं। यह एक संगठित अपराध जैसा है।
बच्चों को बढ़ाना – जामिल सन्दूका के अनुसार , मैं शान्तिपूर्वक जीवन व्यतीत कर व्यवस्थित विद्यालय में बच्चों को बढ़ाना चाहती हूँ ”। “ मैं अपने बच्चों को पत्थर फेंकते या हमास पर नहीं बढ़ना चाहती ”।
अधिक सुरक्षित भविष्य – समर कसाम के अनुसार “ मैं अपने भविष्य की चिन्ता किये बिना अपने बच्चों और पत्नी के साथ रहना चाहता हूँ। यही कारण है कि मैं इजरायल की नागरिकता चाहता हूँ। मुझे नहीं पता कि भविष्य में क्या होने वाला है ”।
अन्य लोग भ्रष्टाचार , मानवाधिकार और यहाँ तक कि आत्म सम्मान के सम्बन्ध में चिन्ता प्रकट करते हैं। (जब यहूदी हमें बदलने की बात करते हैं तो मानो वे हमारे मानव के अधिकार से हमें वंचित करते हैं ) ये विचार मध्य पूर्व में स्थित इजरायल विरोधी स्वर को ध्वनित नहीं करते वरन् वे रहस्योद्घाटित करते हैं कि जो पाँच चौथाई फिलीस्तीनी इजरायल को जानते हैं वे एक शालीन देश में शालीन जीवन का अर्थ समझते हैं। एक ऐसा तथ्य जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है और इसका सकारात्मक महत्व है।