इतिहासकार जब जार्ज बुश के राष्ट्रपतित्व काल का आकलन करेंगे तो मध्य पूर्व और इस्लाम के प्रति उनकी नीतियाँ प्रमुख होंगी। मध्य पूर्व के 6 देशों की आठ दिनों की यात्रा के समापन और राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल के अन्तिम वर्ष में मेरे कुछ आकलन हैं जिन्हें मैं प्रस्तुत करता हूँ ।
उनकी प्रमुख विशेषता यह रही कि उन्होंने लम्बे समय से चली आ रही द्विपक्षीय स्थिति को तोड़कर कुछ आश्चर्यजनक नई नीतियों को अपनाया और 2005 के अन्त तक उन्होंने चार प्रमुख क्षेत्रों में अपनी ईमानदार पहल दिखाई ।
कट्टरपंथी इस्लाम – 11 सितम्बर से पूर्व अमेरिकी अधिकारियों ने इस्लामवादी हिंसा को एक संकीर्ण आपराधिक समस्या के रूप में देखा। सितम्बर 2001 में ‘आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध ’का आह्वान कर बुश ने संघर्ष को व्यापक कर दिया । आतंकवाद के पीछे की शक्ति को स्पष्ट करते हुए अक्टूबर 2005 में उन्होंने इसे ‘इस्लामी कट्टरपंथ ’ उग्रवादी जिहादवाद, और इस्लामी फासीवाद, कहा ।
अग्रिम युद्ध – सोवियत संघ तथा अन्य खतरों के विरूद्ध शक्ति सन्तुलन की नीति थी परन्तु जून 2002 में बुश ने एक और नीति अग्रिम युद्ध या आक्रमण से पहले युद्ध जोड़ दिया। उन्होंने कहा, “अमेरिका की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि सभी अमेरिकी आगे की ओर देखें और अपनी स्वतन्त्रता और जीवन की रक्षा के लिए जब आवश्यक हो तो आक्रमण से पहले युद्ध के लिए तैयार रहें ”। नौ महीने के उपरान्त उनके इसी सिद्धान्त के आधार पर उन्होंने इराक पर आक्रमण कर सद्दाम हुसैन को समाप्त कर दिया इससे पूर्व की वह परमाणु हथियार विकसित करे।
अरब – इजरायल संघर्ष – बुश ने पुरानी शैली और उल्टा दाँव पड़ने वाली ‘ शान्ति प्रक्रिया की कूटिनीति की अवहेलना करते हुए जून 2003 में एक नई पहल करते हुए “शान्ति और सुरक्षा के साथ-साथ इजरायल और फिलीस्तीन के दो राज्य का लक्ष्य निर्धारित किया ’। इससे साथ ही अन्तिम चरण की दृष्टि रखते हुए एक समय सीमा निर्धारित की और यासर अराफात को किनारे लगाने का प्रयास किया और येहुद ओलमर्ट का सहयोग किया ।
लोकतन्त्र – पिछले साठ वर्षों में मध्य पूर्व में लोकतन्त्र के अभाव के लिए तर्क ढूँढने और उसके साथ जीवित रहने के बाद भी हम अपने को सुरक्षित नही रख सके ’ इस नीति की आलोचना करते हुए बुश ने नवम्बर 2003 में घोषणा की कि “ मध्य पूर्व के सम्बन्ध में लोकतन्त्र के लिए अग्रगामी नीति होगी ” इसके द्वारा उनका आशय था कि इन राज्यों को नागरिक भागीदारी के लिए प्ररित किया जायेगा।
दर्शन के लिए बहुत कुछ परन्तु इसके क्रियान्वयन के सम्बन्ध में क्या ? उनके प्रथम काल के अवसर पर मुझे लगा कि अरब – इजरायल को छोड़कर अन्य नीतियों के सम्बन्ध में बुश की सफलता की सम्भावनाएं हैं। परन्तु आज ऐसा नहीं है और अब मुझे चारों क्षेत्रों में ही असफलता दिखाई दे रही है।
कट्टरपंथी इस्लाम के सम्बन्ध में बुश की सुधरी समझ फिर बदल गई और इस हद तक कि उन्होंने समस्या का उल्लेख उसके नाम से करने के स्थान पर भारी भरकम शब्दावली का प्रयोग आरम्भ कर दिया जैसे “ अतिवादियों का एक समूह जो सत्ता और प्रभाव की प्राप्ति के लिए धर्म को एक रास्ते की तरह उपयोग कर रहा है।
पहले आक्रमण करने की नीति के लिए ऐसे पर्यवेक्षक चाहिए जो इसे समझाकर पहले आक्रमण को न्यायसंगत ठहरा सकें। इस मोर्चे पर प्रशासन असफल रहा। केवल आधी अमेरिकी जनसंख्या और मध्य पूर्व में भी बहुत कम लोग इराक पर आक्रमण को स्वीकार करतें हैं इससे न केवल घरेलू स्तर पर विभाजन हुआ है वरन् बाहर भी वियतनाम युद्ध के बाद से अब तक की सबसे बड़ी शत्रुता उपजी है। इसकी सबसे बड़ी कीमत यह चुकानी पड़ी है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के सम्बन्ध में पहले आक्रमण की नीति अपनाने में मुश्किल आ रही है।
अरब – इजरायल संघर्ष का समाधान करने की बुश की दृष्टि के अन्तर्गत महमूद अब्बास को फिलीस्तीनी राज्य का नेता नियुक्त करना भ्रामक है। इजरायल के साथ एक सम्प्रभु फिलीतीनी राज्य से क्या इजरायल विरोधी घृणा पलायित हो जायेगी या फिर इजरायल में वापस लौटने का इजरायल के विरूद्ध युद्ध बन्द हो जायेगा ? नहीं, फिलीस्तीनी ’ राज्य स्थापित करने का शरारती लक्ष्य यहूदी राज्य को नष्ट करने की भावना को भड़कायेगा और विशेष रूप से तब जब फिलीस्तीन का वापस लौटने का अधिकार साथ होगा।
अन्त में, लोकतन्त्र को प्रोत्साहित करना निश्चित रूप से अच्छा उद्देश्य है परन्तु जब मध्य – पूर्व की प्रभावी लोकप्रिय शक्ति अधिनायकवादी इस्लाम है तो क्या सिर फोड़ना अच्छा विचार है ? इसके बाद भी वाशिंगटन की आरम्भिक पहल थी कि इस पर तेजी से अमल किया जाये जब तक कि इस नीति से उत्पन्न क्षति अमेरिका के लिए इतनी स्पष्ट नहीं हो गई कि उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती तभी इसे रद्द किया गया ।
एक समय जब कि बुश के आलोचक उन्हें गाली दे रहे थे तब मेरे जैसा व्यक्ति जो उनका शुभेच्छु है उसने उनकी आलोचना में रूचि नहीं दिखाई परन्तु यह बहाना बनाकर कि सब कुछ ठीक है या फिर उसके रिकार्ड देखकर भी उसका भक्त बने रहना किसी का पक्ष लेना नहीं है और आलोचना होनी ही चाहिए। कमियों को सीधे – सीधे स्वीकार करने से ही उन्हें सुधारने का मार्ग प्रशस्त होता है। मैं बुश की सदिच्छाओं और प्रेरणाओं का सम्मान करता हूँ परन्तु इस बात पर शोक करता हूँ कि 11 सितम्बर को रिकार्ड तोड़ 90 प्रतिशत लोकप्रियता को नष्ट कर दिया और अगले राष्ट्रपति को विरासत में ध्रवीकृत मतदाता, ईरान के प्रति शक्ति का प्रयोग करने से अनमनी सेना, गाजा पर हमास का शासन, नष्ट होने की कगार पर इराक , उभार पर कट्टरपंथी इस्लाम और अप्रत्याशित ढंग से वैश्विक अमेरिका विरोध छोड़कर जा रहे हैं। अब परम्परावादियों को मध्य पूर्व की नीति के लिए काफी कार्य करना होगा ।