गाजा में कुछ आश्चर्यजनक घटनाक्रम 13 लाख लोगों के इस संकटग्रस्त राज्य क्षेत्र के सम्बन्ध में पश्चमी नीति में परिवर्तन की आवश्यकता जताता है।
गाजा का वर्मान इतिहास 1948 से आरम्भ होता है जब मिस्र सेनाओं ने ब्रिटिश नियन्त्रण वाले इस क्षेत्र में उनकी सेनाओं को खदेड़ दिया था और कैरो ने “सर्व फिलीस्तीन सरकार” को प्रायोजित कर उसके संरक्षक के रूप में इस राज्य क्षेत्र पर वास्तविक शासन किया। 1967 में यह व्यवस्था उस समय समाप्त हुई जब इजरायली नेतृत्व ने रक्षात्मक ढंग से गाजा पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया और सघन जनसंख्या वाले गरीब और शत्रुवत राज्यक्षेत्र की विरासत बिना मन के सँभाली ।
जैसे भी हो बीस वर्षों तक गाजा वासी इजरायली शासन के अन्तर्गत रहे। 1987 में जब इन्तिफादा आरम्भ हुआ तो गाजावासी मुखर हुए और इनकी हिंसा और राजनीतिक कीमत के कारण इजरायलवासियों को कूटनीतिक प्रक्रिया की ओर जाना पड़ा और उसके परिणाम स्वरूप 1993 में ओस्लो समझौता हुआ । 1994 के गाजा जेरिको समझौते के कारण यह राज्यक्षेत्र यासर अराफात के फतह पर सवार हो गया।
इन समझौतों के आधार पर सम्भावना थी कि गाजा में स्थिरता और समृद्धि आयेगी। व्यापारी लौटकर अर्थव्यवस्था में छलांग लगा देंगे। फिलीस्तीनी अथारिटी इस्लामवादियों का दमन कर आतंकवाद को कुचल देगी। यासर अराफात ने घोषणा की कि वे एक सिंगापुर का निर्माण करेंगे, वास्तव में यह एक वास्तविक तुलना थी क्योंकि स्वतन्त्र सिंगापुर का आरम्भ भी 1965 में गरीब और नस्ली संघर्ष के दौरे में हुआ था ।
निश्चय ही यासर अराफात ली कान पिउ नहीं थे । गाजा की स्थिति दिनों दिन बिगड़ती गई और इस्लामवादियों को बन्द करने के स्थान पर वे सत्ता में आ गये। हमास ने 2006 में चुनावों में विजय प्राप्त की और 2007 में पूरे गाजा पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया। अर्थव्यवस्था बिगड़ी। आतंकवाद रूकने के स्थान पर फतह ने इसे अपना बना लिया। 2002 में गाजावासियों ने सीमा पर राकेट दागने शुरू कर दिये और इसकी दूरी, आवधिकता और समयसीमा बढा दी। इसके लिये उन्होंने इजरायली शहर सदरात को चुना ।
एक खतरनाक गाजा से सामना होने पर येहुद ओलमर्ट की इजरायली सरकार ने इस आशा में इसे अलग-थलग करने का निश्चय किया कि आर्थिक सख्ती से गाजावासी हमास को दोष देंगे और उसके विरूद्ध हो जायेंगे।
एक हद तक यह दबाव काम आया और हमास की लोकप्रियता गिर गई। इजरायल ने भी राकेट आक्रमण रोकने के लिए छापे डाले। इसके बाद भी आक्रमण जारी रहे इसलिए 17 जनवरी को इजरायल ने सीमा बन्द कर ईंधन आपूर्ति पूरी तरह रोक दी। ओलमर्ट ने घोषणा की “ जहाँ तक मेरा प्रश्न है ’’ गाजा के निवासी अपनी कार में बिना गैस के जायेंगे क्योंकि वे एक हत्यारे और आतंकी शासन में रहते हैं जो दक्षिणी इजरायल के लोगो को शान्ति से नहीं रहने देता ’’।
यह तर्क संगत लगा परन्तु प्रेस में अनेक ऐसे समाचार आये जिनके अनुसार गाजा के लोग इन कटौतियों से मर रहे हैं और इस कारण इजरायल की स्थिति में तत्काल परिवर्तन आ गया। समस्त विश्व से अपील होने लगी कि इजरायल ढीला पड़े ।
उसके बाद 23 जनवरी को हमास ने मामले को बड़ी चतुराई और आश्चर्यजनक रणनीति से अपने हाथ में ले लिया। महीनों के मेहनत के उपरान्त इसने गाजा और मिस्र को अलग करने वाली 12 कि.मी लम्बी और 13 मीटर ऊँची सीमा दीवार के बड़े भाग को गिरा दिया, इससे उसने तत्काल ही गाजावासियों की शुभकामना प्राप्त की और कैरो को चित्र में ला दिया। राजनीतिक रूप से मिस्र के अधिकारियों के पास इसके अतिरिक्त कोई विल्कप नहीं रहा कि वे सीमा के 38 चौकीदारों का घायल होना स्वीकार करें और अपने देश के सुदूर पूर्वोत्तर में हजारों लोगों को प्रवेश करने की अनुमति दें।
इजरायल ने अपनी अक्षमता के कारण अपने को इस संकट में डाल दिया है जिसे टाला जा सकता था। बुरे समझौते किये गये, गाजा अराफात जैसे ठग को दिया गया, अपने ही नागरिकों को निकाला गया, अपरिपक्व चुनाओं की अनुमति दी गई, हमास की विजय को बिना विरोध स्वीकार किया गया तथा गाजा की पश्चिमी सीमा के नियन्त्रण को रद्द कर दिया गया।
अब पश्चिमी देशों को क्या करना चाहिए? विडम्बना ही है कि सीमा के अतिक्रमण से इस भूल को सुधारने का एक अवसर मिला है।
वाशिंगटन और अन्य राजधानियों को गाजा के स्वाशासन को असफल घोषित करना चाहिए और मिस्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक पर सहायता के लिए दबाव डालना चाहिए शायद गाजा को अतिरिक्त भूमि के रूप में उपलब्ध कराकर या फिर इसे राज्य के रूप में जीतकर । इससे 1948 – 67 के बीच की स्थिति लौट आयेगी अन्तर केवल इतना ही है कि इस कैरो गाजा को शस्त्र के बल पर नहीं वरन् जिम्मेदारी से लेगा।
सांस्कृतिक रूप से यह सम्पर्क स्वाभाविक है। गाजावासी मिस्र के सिनाय प्रायद्वीप वासियों जैसी अरबी भाषा बोलते हैं और मिस्र में उनके पश्चिमी तट से अधिक पारिवारिक सम्बन्ध हैं और आर्थिक रूप से वे मिस्र से अधिक जुड़े हैं । इससे भी आगे हमास का उद्भव एक इस्लामी संगठन मुस्लिम ब्रेथरेन से हुआ है। ओटावा सिटीजन के डेविड वारेन ने कहा है कि गाजावासियों को ‘फिलीस्तीनी ’ कहना राजनीतिक दृष्टि से भले ही ठीक हो परन्तु ठीक नहीं है। आखिर मिस्र के इस सम्बन्ध को औपचारिक क्यों न बना दिया जाये। अन्य लोगो के अतिरिक्त इससे इजरायल के विरूद्ध राकेट आक्रमण रूकेगा , इससे एक शताब्दी पुराने फिलीस्तीनी राष्ट्रवाद का खोखलापन सामने आयेगा जो सम्भवत: अरब – इजरायल संघर्ष का कारण। यह परिभाषित करना कठिन है कि 1948 से अब तक मिस्र को 65 बिलियन यू . एस डालर देने का लाभ क्या हुआ है परन्तु यदि मिस्र गाजा को आत्मसात कर लेता है तो वे 1.8 बिलियन डालर प्रतिवर्ष भी दे सकते हैं।