पश्चिमी यूरोप में इस्लाम के कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि यह महाद्वीप अपने यूरेबिया के भाग्य से नहीं बच सकता और पिछली आधी शताब्दी से जारी यह रूझान तब तक जारी रहेगा जब तक यह मुस्लिम बहुल नहीं बन जाता और यहाँ इस्लामी कानून (शरियत) का शासन नहीं हो जाता।
मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूँ और मेरा मानना है कि एक और रास्ता है जिसे महाद्वीप अपनायेगा और वह है इस्लामीकरण के प्रतिरोध और अपने परम्परागत रास्तों के प्रति आग्रह। मूल यूरोपीयन जिनकी संख्या 95 प्रतिशत है वे अपनी ऐतिहासिक परम्पराओं पर अधिक जोर दे सकते हैं। यदि वे ऐसा करते हैं तो कुछ भी उनके रास्ते में नहीं आयेगा और कोई भी उन्हें रोक नहीं पायेगा।
निश्चित रूप से यूरोपीय लोग शनैः शनैः बढ रहे शरियत के प्रति अधीर होते दिख रहे हैं। फ्रांस द्वारा हिजाब को सरकारी स्कूलों में प्रतिबन्धित करने से सम्बन्धित प्रयास यही प्रदर्शित करता है कि इस्लामी रास्तों को अपनाने का विरोध किया जा रहा है इसी प्रकार का भाव बुर्का, मस्जिदों और मीनारों को प्रतिबन्धित करने प्रयासों में भी दिखता है। पूरे पश्चिमी यूरोप में आप्रवास विरोधी राजनीतिक दल तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।
इस प्रतिरोध ने पिछ्ले सप्ताह दो नाटकीय घटनाओं के साथ नया मोड लिया। पहला 22 मार्च को पोप बेनेडिक्ट 16 ने मिस्र मूल के मह्त्वपूर्ण मुसलमान और वर्षों से इटली में निवास कर रहे तथा प्रसिद्ध लेखक और कोरियर डेला सेरा समाचार पत्र के शीर्ष सम्पादक मगदी आलम को ईसाई धर्म में दीक्षित कराया और इसकी पुष्टि की। आलम ने अपना मध्य नाम क्रिस्टियानो रखा। ईस्टर के पर्व के कारण कैथोलिक धर्म में सम्मिलित होने का उनका कार्यक्रम इतने व्यापक दिखावे के बिना भी हो सकता था विशेषकर तब जबकि रविवार के दिन ईस्टर के पर्व पर सेंट पीटर बैसिलिका में रात्रिकालीन कार्यक्रम का टेलीविजन चैनल प्रसारण कर रहे थे।
आलम ने धर्मांतरित होने के बाद एक सीधे सपाट बयान में कहा, ‘ वैश्विक स्तर पर इस्लामी अतिवाद और आतंकवाद का जो स्वरूप दिखाई पड रहा है उस बुराई का मूल कारण इस्लाम में ही अंतर्निहित है जो कि शारीरिक रूप से हिंसक और ऐतिहासिक रूप से संघर्षात्मक है ’। दूसरे शब्दों में समस्या केवल इस्लामवाद नहीं वरन स्वयं इस्लाम ही है। एक और टिप्पणीकार स्पेंगलर ने एशिया टाइम्स में इससे भी आगे बढकर कहा, ‘ आलम मुस्लिम जीवन के लिये एक खतरा भी उत्पन्न करते हैं क्योंकि अपने धर्म के पूर्व अनुयायियों की भाँति वे भी आधुनिक पश्चिम की स्तरहीन संस्कृति को अस्वीकर करते हैं और उन्हें कुछ दूसरा उपलब्ध कराते हैं एक ऐसा धर्म जो कि प्रेम पर आधारित है”।
दूसरा 27 मार्च को 44 वर्षीय गीर्ट वाइल्डर्स ने अपनी बहुप्रतीक्षित 15 मिनट की फिल्म फितना रिलीज की जो कि कुरान की शत्रुतापूर्ण आयतों पर आधारित है साथ ही इन आयतों के आधार पर पिछ्ले कुछ वर्षों में इस्लामवादियों द्वारा किये कृत्यों के परिणाम पर आधारित है। आलम के शब्दों को वाइल्डर्स ने भी ध्वनित किया है कि समस्या का मूल कारण इस्लाम में अंतर्निहित है।
आलम और वाइल्डर्स के विपरीत मैं इस्लाम और इस्लामवाद में भेद करता हूँ परंतु मेरा दृढ विश्वास है इनके विचारों को बिना दण्डित किये या गाली गलौज के सुना जाना चाहिये। इस्लाम के सम्बन्ध में एक ईमानदार बहस होनी चाहिये।
यदि आलम का धर्मांतरण एक आश्चर्यजनक घटना है तो वाइल्डर्स की फिल्म पिछ्ले तीन महीनों से प्रस्तावित थी। दोनों ही मामलों में उस प्रकार की आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं हुई जिस प्रकार इससे पूर्व इस्लाम की आलोचना पर हुईं थीं। लास एंजेल्स के अनुसार हालैण्ड की पुलिस ने प्रतिक्रिया को कम करने के लिये शहर की मस्जिदों के इमामों से सम्पर्क किया और पाया जैसा कि पुलिस के प्रवक्ता आर्नोल्ड आबेन ने बताया, “ यह दिन सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक शांत है। मानों कोई अवकाश का दिन हो”। पाकिस्तान में फिल्म के विरोध में एक रैली आयोजित हुई जिसमें केवल कुछ दर्जन लोगों ने ही भाग लिया।
यह अपेक्षाकृत असहज प्रतिक्रिया इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि मुस्लिम खतरा सेंसरशिप को लागू करवाने के लिये पर्याप्त है। हालैण्ड के प्रधानमंत्री जान पीटर बाल्कनेन्दे ने फितना की निन्दा की और ब्रिटिश वेबसाइट Liveleak.com पर इस फिल्म को 36 लाख दर्शकों के देखने के उपरांत इस कम्पनी ने घोषणा की कि, ‘ हमारे कर्मचारियों के प्रति उत्पन्न खतरा अत्यंत गम्भीर स्वभाव का है और कम्पनी के पास इसके सिवाय और कोई विकल्प नहीं है कि
फितना को अपने सर्वर से हटा दिया जाये’ । (यद्यपि दो दिन बाद Liveleak.com ने यह फिल्म फिर से प्रकाशित कर दी) तीन समानताओं की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है: आलम जो कि viva israele नामक पुस्तक के लेखक हैं और वाइल्डर्स जिनकी फिल्म यहूदियों पर मुस्लिम हिंसा पर जोर देती है , दोनों ही इजरायल और यहूदियों के साथ खडे हैं। उनके जीवन पर मुस्लिम खतरे को देखते हुए दोनों ही वर्षों से चौबीसो घण्टे कडी पुलिस सुरक्षा में रह्ते हैं और इससे भी अधिक यह कि दोनों में यूरोपीयन सभ्यता को लेकर जुनून है।
निश्चित रूप से आलम और वाइल्डर्स यूरोप के ईसाई/ आधुनिक मूल्यों के आग्रह के अग्रणी रक्षक हैं। इसकी भविष्यवाणी करना शीघ्रता होगी परंतु ये दो गहरे लगावों वाले व्यक्ति उन लोगों का उत्साहवर्धन कर सकते हैं जो इस महाद्वीप की ऐतिहासिक पहचान को बनाये रखना चाह्ते हैं।