तुर्की से मिली सूचना के आधार पर सरकार इस्लाम की पुनर्व्याख्या का साहसिक प्रयास कर रही है।
इसके अस्वाभाविक धार्मिक विभाग के मंत्रालय जिसे प्रेसीडेंसी आफ रिलीजस अफेयर्स एंड द रिलीजस चैरिटेबल फाउण्डेशन के नाम से जाना जाता है उसने तीन वर्ष का “ हदीथ प्रकल्प” अपने जिम्मे लिया है जिसके अंतर्गत 1,62,000 हदीथ रिपोर्टों का पुनरावलोकन किया जायेगा और उन्हें संक्षिप्त कर 10,000 कर दिया जायेगा ताकि वास्तविक इस्लाम को चौदह शताब्दियों के विकास से अलग किया जा सके।
हदीथ रिपोर्ट इस्लाम के पैगम्बर मोहम्मद के कथन और कार्यों की सूचना है। वे कुरान को और विस्तृत करते हैं और शरियत को आकार देने में उनकी मुख्य भूमिका है जिससे मुस्लिम जीवन गहराई से प्रभावित होता है। उसके महत्व के बाद भी मुस्लिम सुधारकों ने उसके मूल्याँकन में काफी कम ध्यान दिया है। इसका प्रमुख कारण इसका विस्तृत आकार और कमजोर हदीथ से कुछ सार्थक निकाल पाने की चुनौती रही है।
इस प्रकल्प के 85 धर्मशास्त्री प्रोफेसरों में से एक अंकारा विश्वविद्यालय के इस्माइल हक्की उनाल ने इसके उद्देश्य की व्याख्या करते हुए कहा है, “ कुरान हमारा मूल मार्गदर्शक है। जिसका भी इसके साथ मतभेद है हम उसे नष्ट करना चाहते हैं”। इस प्रकल्प की वेबसाइट ने इस कार्य की व्याख्या करते हुए कहा है, “ इस्लाम के पैगम्बर के सार्वभौमिक सन्देश को इक्कीसवीं शताब्दी में लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम”।
अंकारा विश्वविद्यालय में हदीथ के वरिष्ठ प्रवक्ता और धार्मिक विषयों के उपाध्यक्ष मेहमट गोरमेज इसमें और भी जोड्ते हुए कहते हैं कि यह उद्देश्य पूरी तरह विद्वतपूर्ण है ताकि हदीथ को और बेहतर ढंग से समझा जा सके।“ हम हदीथ का नया संकलन करेंगे और यदि आवश्यक हुआ तो इसके पुनर्व्याख्या भी करेंगे”। अधिक विस्तृत रूप में गोरमेज ने व्याख्या की है, “ इस प्रकल्प की प्रेरणा इस्लाम के आधुनिकतावादी व्याख्याओं से ली गयी है.. हम इस्लाम के सकारात्मक पक्ष को सामने लाना चाहते हैं जो व्यक्तिगत सम्मान, मानवाधिकार, न्याय,नैतिकता, स्त्री के अधिकार और दूसरों के अधिकार को बढावा देता है”।
इसका अर्थ उदाहरण के लिये हदीथ की वे पुनर्व्याख्यायें हैं जो “ महिलाओं को पुरुष से कमतर रखती हैं” जैसे जो स्त्रियों के गुप्तांगों के खतना को प्रेरित करती हैं, सम्मान के लिये स्त्री की हत्या और पति के बिना स्त्री की यात्रा को प्रतिबन्धित करती हैं। एक सहभागी हिदायत सेवकत्ल टुकसाल काफी आगे जाकर घोषित करते हैं क़ि कुछ हदीथ बकवास हैं क्योंकि वे “ स्त्री के ऊपर पुरुष के वर्चस्व को सिद्ध करती हैं”। यद्यपि तुर्की में सर के ऊपर कपडा रखने की वर्तमान बहस के बाद भी यह प्रकल्प इस विशेष मुद्दे की अवहेलना करता है। इसके अतिरिक्त एक और संवेदनशील विषय मुसलमानों का किसी और धर्म में धर्मांतरित होने से जुडा है, प्रकल्प ऐसे धर्मान्तरण को अनुमति देता है।
कुछ तुर्कीवासियों को इस हदीथ प्रकल्प से काफी आशायें हैं जो कि अनेक भाषाओ तुर्की, अरबी और रूसी में इस वर्ष के अंत तक आने वाला है। एक राजनीतिक टिप्पणीकार तहा अक्योल की दृष्टि में एक क्रांति होने जा रही है। “ अन्य देशों में इस्लाम का सुधार या तो आधुनिकतावादी या अधिनायकवादी शासनों द्वारा हो रहा है परंतु तुर्की में यह सुधार मध्यवर्ग द्वारा किया जा रहा है। और यही वास्तविक सुधार है। एक और टिप्पणीकार मुस्तफा अक्योल के अनुसार संसोधित हदीथ “ मस्तिष्क बदलने की दिशा में एक कदम होगा”
चथाम हाउस के फादी हकुरा कुछ और आगे जाते हैं और प्रकल्प को “ ईसाई सुधार के समानांतर पाते हैं”। वे जस्टिस एंड डेवलेपमेण्ट पार्टी ( एकेपी) के प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन की पार्टी द्वारा इस प्रकल्प को प्रायोजित किये जाने के कारण उनकी प्रशंसा करते हैं। उनके अनुसार एकेपी के इसमें शामिल होने का अर्थ है कि “ सुधार की प्रक्रिया किसी सेकुलर गुट द्वारा आरम्भ नहीं हो रही है वरन सत्ताधारी दल द्वारा जो कि अत्यंत धार्मिक और परम्परावादी है। इसलिये यह यह परिवर्तन की विश्वसनीय आंतरिक प्रक्रिया है”।
अन्य पर्यवेक्षक कुछ सशंकित हैं। हशीम हाशिमी जो कि एक पूर्व सांसद हैं मानते हैं “ इस्लाम के सम्बन्ध में स्थापित विचार हैं और किस प्रकार इसे व्यवहार में लाया जाना चाहिये यह 1400 वर्षों से व्यवहार में है। और आने वाले समय में शीघ्र इसमें परिवर्तन सम्भव नहीं है”। यहाँ तक कि मंत्रालय के प्रमुख अली बरदाको ग्लू ने भी माना है कि “ हम इस्लाम का सुधार नहीं कर रहे हैं वरन अपने को सुधार रहे हैं”।
इस पहल का महत्व क्या है? जैसा कि दिख रहा है कि यह इस्लाम को आधुनिक बनाने का गम्भीर प्रयास है और इसका स्वागत है। उसी क्षण कोई भी आश्चर्यचकित होता है जब सरकार धार्मिक सुधार के नाजुक कार्य में दखल देती है। विशेष रूप से एकेपी जैसे दल के इस्लामी स्वरूप को देखते हुए अविश्वास का भाव उत्पन्न होता है कि हदीथ प्रकल्प स्वयं को अपेक्षाकृत सरल सामाजिक मुद्दों तक सीमित रखेगा और कठिन राजनीतिक प्रश्नों से किनारा कर लेगा ताकि एक विचारधारात्मक दृष्टि से एक अधिक रक्षात्मक इस्लाम का स्वरूप सामने आये जबकि साथ ही इसके कुछ समस्यागत पक्षों को वैसे ही रखा जा सके। क्या प्रकल्प का सर ढँकने के मामले से किनारा करने में अंतर्निहित है कि स्त्रियों के कानूनी अधिकार को नहीं लिया जायेगा, गैर मुसलमान से मुस्लिम स्त्री का विवाह, रिब्बा ( धन पर ब्याज), जिहाद, गैर मुसलमानों के अधिकार और इस्लामी व्यवस्था का निर्माण?
विषयों का परिसीमन कर प्रकल्प इस्लाम को आधुनिक बनाने के स्थान पर इस्लामवाद को ही बढावा देगा। वास्तविक सुधार के लिये वास्तविक सुधारकों की आवश्यकता है न कि इस्लामी कार्यकर्ताओं की वरन स्वतंत्र व्यक्तियों की जो कि इस्लाम से जुडे हुए भी आधुनिक परम्पराओं के प्रति आग्रह रखते हों।