अभी क्यों? क्यों?क्यों?क्यों?क्यों? मेरी दृष्टि में सभी यही प्रश्न पूछ रहे हैं। 17 वर्षीय आरोपी स्निपर ली माल्वो का अर्ध भ्राता अत्यंत दुखी है और उन कारणों को लेकर भ्रमित है जिस कारण से वाशिंगटन , डीसी क्षेत्र में अन्धाधुन्ध गोलीबारी हुई और 10 लोग मारे गये।
इस सम्बन्ध में एक उत्तर एक मित्र की ओर से आया जिसने कि वरिष्ठ आरोपी स्निपर जान मोहम्मद को उद्धृत किया , कि 11 सितम्बर का आतंकवादी आक्रमण काफी पहले हो जाना चाहिये था।
इसमें अंतर्निहित है कि मोहम्मद अमेरिका के विरुद्ध जिहाद( पवित्र युद्ध) में स्वयं को पैदल सिपाही मानता है और उसने अमेरिका के लोगों को आतंकित करने के लिये हथियार उठाया।
समस्त देश के मीडिया ने इस व्याख्या की ओर से आंखें मूँद लीं। लास एंजेल्स टाइम्स के एक लेख ने मोहम्मद के छः आशय गिनाये( परिवार के साथ उसके खराब सम्बन्ध, क्षति और अपराध बोध का भयानक एहसास, 11 सितम्बर के उपरांत के अमेरिकी मुसलमान के रूप में अपमान के भाव की कल्पना, अन्य लोगों पर नियंत्रण करने की उसकी इच्छा, माल्वो के साथ उसका सम्बन्ध और शीघ्रता से पैसे बनाने का उसका प्रयास) परंतु इसने जिहाद का उल्लेख नहीं किया।
इसी प्रकार बोस्टन ग्लोब के एक लेख ने पाया, “ निश्चित रूप से उसके सामाजिक सम्बन्धों में – उसके विवाह या उसके सेना के कैरियर में कुछ ऐसा रहा होगा कि उसने बन्दूक का ट्रिगर दबा दिया”।
इसके आशय के पीछे जिहाद के सम्भावना को रेखांकित न कर मीडिया विश्लेषणों ने इसे खारिज ही किया। एटलांटा जर्नल कांस्टीट्यूशन ने केवल यह रिपोर्ट बनाई कि स्थानीय मुसलमानों ने स्निपर के द्वारा एक बार फिर एक शांतिपूर्ण धर्म की छवि को तार-तार कर दिया। मेम्फिस में कामर्शियल अपील ने जिन लोगों का साक्षात्कार लिया वे सभी इस बात से सहमत थे कि यह महत्व नहीं रखता कि एक सन्दिग्ध स्निपर इस्लाम में धर्मांतरित हुआ था।
कुछ भी नहीं देखने जैसी पहुँच बनाकर पत्रकारों ने अमेरिका स्थित उग्रवादी इस्लामी गुटों के निर्देशों को प्रभावी ढंग से स्वीकार कर लिया है। काउंसिल आन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस के प्रवक्ता इब्राहिम हूपर ने कहा कि आरोपी स्निपर किसी धार्मिक या राजनितिक एजेण्डे से प्रेरित नहीं दिखते वरन पागल व्यक्ति दिखते हैं जिन्होंने अपने कारणों से यह कार्य किया। हूपर के ही एक अन्य सहयोगी निहाद अवाद ने भी आरोपी स्निपरों को परेशान और पागल व्यक्ति ही बताया।
मुहम्मद की पागलपन की स्थिति पर जोर देकर सीएआईआर के भद्र पुरुष सुविधापूर्वक जिहाद के तत्व पर चर्चा को पहले ही रोक देना चाहते हैं। परंतु इसे इतनी आसानी से रद्द नहीं किया जा सकता। इस्लामवादियों के मध्य यह केन्द्रीय विचार है कि इस्लाम संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भयानक युद्ध में संलग्न है और इसका परिणाम विश्व के भविष्य को निर्धारित करेगा। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इससे मिलता जुलता विचार ईसाइयों, यहूदियों, हिन्दुओं, बौद्ध या अन्य धर्म से लगाव रखने वालों में नहीं है। इसकी सबसे निकटतम तुलना दशकों पहले के फासिस्ट और कम्युनिष्ट विचारों से की जा सकती है।
इस्लामी अमेरिकी संघर्ष के अपेक्षा सभी उग्रवादी इस्लामी विचारों की शाखा में है जिसमें बिन लादेन वाद, वहाबीवाद और खोमैनीवाद है। यह अमेरिका में भी उतना ही उपस्थित है जितना कि अफगानिस्तान के जंगलों में, सऊदी अरब के शापिंग माल में और अमेरिका में तीन मुसलमानों की हाल की गिरफ्तारी यही दर्शाती है।
सिएटल वाश- जेम्स उजामा पर आरोप लगाकर दण्डित किया गया कि उसने अल कायदा के लिये एक प्रशिक्षण शिविर स्थापित किया।
पोर्टलैण्ड ओर- महाधिवक्ता जान ऐशक्राफ्ट के अनुसार गिरफ्तार किये गये छः मुसलमानों में से एक अमेरिकी सेना रिजर्व में इस आशय के साथ भर्ती हुआ था कि यहाँ कुशलता प्राप्त कर इसका उपयोग वह अमेरिका से लड्ने में करेगा।
लकावाना, न्यूयार्क- अमेरिका सरकार का एक शपथ पत्र रह्स्योद्घाटन करता है कि गिरफ्तार किये गये छ मुसलमानों में से दो मुसलमानों के पास ऐसे आडियो टेप पाये गये जिसमें पश्चिम के विरुद्ध लड्ने की बात और यूरोप और अमेरिका को इस्लाम से विजित करने की अपील थी। अमेरिकी मुसलमान भी हिंसा में संलग्न होने के लिये बार बार विदेशों से प्रेरित होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के इन शत्रुओं को व्यापक परिणाम मिल रहे हैं।
ईरानी सरकार द्वारा प्रायोजित एक रेडियो स्टेशन ने अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक भविष्यवाणी की कि उसके प्रकार का उग्रवादी इस्लाम अमेरिका में अमेरिकी अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण और खतरनाक संघर्ष को प्रोत्साहित कर देगा।
अर्नाड डे बोर्चग्रेव की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में इस्लामवादी अपेक्षा करते हैं कि अगले 10 वर्षों में अमेरिका के लोग अपने मस्तिष्क में इस्लामी सेना का अनुभव करेंगे और जिहादियों की सेना अमेरिका को बाध्य करेगी कि वह साम्राज्यवाद को त्याग कर अल्लाह की आवाज को सुने।
यह कहने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि अमेरिका के मुसलमान देशभक्त नहीं है बडी संख्या में हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब मुसलमान अमेरिका के विरुद्ध आतंकवाद में संलग्न होता है तो उसकी धारणा होती है कि वह महान शैतान के विरुद्ध जिहाद में एक योद्धा है। इस वास्तविक और वर्तमान खतरे को नहीं देखने से संयुक्त राज्य अमेरिका उग्रवादी इस्लाम की शक्तियों के समक्ष और अधिक हिंसा का सम्भावी बन जाता है।