यह जानकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि वाशिंगटन डीसी क्षेत्र का सन्दिग्ध अग्रणी स्निपर जान एलेन मोहम्मद एक अफ्रीकी अमेरिकी है जो 17 वर्ष पूर्व इस्लाम में धर्मांतरित हुआ था। कोई सात वर्ष पूर्व उसने लुइस फराखान के “ लाखों लोगों के मार्च के लिये” उसने सुरक्षा उपलब्ध कराई थी। यहाँ तक कि यह जानकर भी अत्यंत कम आश्चर्य होता है कि 11 सितम्बर को उग्रवादी इस्लामी तत्वों द्वारा किये गये आक्रमण के प्रति भी उसने सहानुभूति जताई थी।
इनकी सबकी भविष्यवाणी की जा सकती थी क्योंकि यह अमेरिका के उन अश्वेतों की परम्परा के अनुकूल बैठता है जो इस्लाम में धर्मांतरित होकर अपने देश के विरुद्ध हो जाते हैं।
निश्चित रूप से यह एक वैश्विक परिपाटी नहीं है और एक अनुमान के अनुसार कोई 7 लाख अफ्रीकी अमेरिकी जो इस्लाम में धर्मांतरित हुए हैं वे नरमपन्थी और देशभक्त हैं। एक चिरपरिचित उदाहरण करीम अब्दुल जब्बार है जो बास्केटबाल खिलाडी है और दूसरे पियानो बजाने वाले प्रसिद्ध मैककोय टायनर हैं।
सन्क्षेप में इस्लाम धर्म और अच्छे अमेरिकी नागरिक के मध्य कोई अंतर्निहित विरोध नहीं है।
धर्मांतरित हुए अधिकाँश लोग तब अमेरिका विरोधी हो जाते हैं जब वे इन दो में से किसी एक विशेष इस्लाम के स्वरूप को अपनाते हैं। या तो नेशन आफ इस्लाम ( एन ओ आई, एक अश्वेत राष्ट्रवादी सम्प्रदाय जो 1930 में डेट्रायट में आरम्भ हुआ) या फिर उग्रवादी इस्लाम( जिसका आयात अधिकतर मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया से होता है)
अलग- थलग रहने की यह परिपाटी दशकों पुरानी है। 1940 से ही एन ओ आई के लम्बे समय तक नेता रहे एलिजाह मोहम्मद ने अपने अनुयायियों को बताया, “ तुम लोग अमेरिकी नागरिक नहीं हो” और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने दायित्व से बचने के कारण उसे जेल में वर्षों बिताने पडे। 1960 में एन ओ आई के प्रसिद्ध धर्मांतरित मुक्केबाज मोहम्मद अली ने भी अपने दायित्व से इंकार किया और वियतनाम में लड्ने से भी।
एन ओ आई के अन्य नेताओं ने भी अपने देश के प्रति शत्रु भाव में बात की। मैल्कम एक्स ने अपने अमेरिकी पासपोर्ट को अस्वीकार कर दिया और संकेत दिया कि अमेरिका इस्लाम के मार्ग के ठीक विपरीत है। लुइस फराखान ने घोषणा की कि, “ ईश्वर मुसलमानों के हाथों अमेरिका को नष्ट करेगा” ।
लेकिन जो अफ्रीकी अमेरिकी उपयुक्त मानक के इस्लाम के प्रति लगाव रखते हैं उनमें भी अमेरिका से अलग- थलग रहने की परिपाटी है।
एन ओ आई से सम्बन्ध तोड्ने के बाद मैल्कम एक्स ने घोषणा की कि, “ मैं एक अमेरिकी नहीं हूँ”।
जमील अल अमीन जिसे एच. रैप ब्राउन के नाम से जाना जाता है और जो एक पुलिस कर्मी की हत्या के कारण जेल में है उसने लिखा, “ जब हम गम्भीरता पूर्वक संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के ओर देखते हैं..... तो हम देखते हैं कि अपने मूल स्वरूप में यह अल्लाह के निर्देशों के एकदम विपरीत है”।
नेशनल बास्केटबाल एसोसिएशन के खिलाडी महमूद अब्दुल रऊफ ने खेल के मैदान में राष्ट्रगान के समय खडे होने से इंकार कर दिया और कहा कि अमेरिकी ध्वज “ उत्पीडन और शोषण का प्रतीक है”।
देश के एक प्रमुख मुस्लिम नेता इमाम सिराज वहाज ने अमेरिकी सरकार के स्थान पर खिलाफत की स्थापना का आह्वान किया।
अमेरिका के जो धर्मांतरित 1980 में सोवियत संघ के विरुद्ध अफगानिस्तान में लड रहे थे उनका एक विचार था कि वे दोनों महाशक्तियों को नष्ट कर देंगे। ऐसे ही एक जिहादी ने 1989 में इसकी व्याख्या की, “ यह सभी मुसलमानों का कर्तव्य है कि जब तक हम अमेरिका पहुँचकर उसे मुक्त नहीं नहीं कर लेते तब तक जिहाद के रास्ते पर चलते रहें”
यह भाव केवल शब्दों तक ही सीमित हो ऐसा नहीं है।
अमेरिका के न्यूयार्क के महाधिवक्ता ने वहाज को एक ऐसे दण्डित नहीं हुए व्यक्ति के रूप में चिन्हित किया जो न्यूयार्क शहर के प्रमुख स्थलों को उडाने के लिये सह आरोपी बनाया जा सकता है।
न्यूजर्सी के क्लीमेंट रोड्नी हैम्पटन जब अफगानिस्तान में सोवियत संघ से लडकर वापस आये तो वे उस गैंग में शामिल हो गये जिसने फरवरी 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में बमबारी की थी।
इस्लाम में धर्मांतरित अश्वेत अमेरिकियों के अलग- थलग होने, कट्टरपंथी बनने और हिंसा में लिप्त होने की परिपाटी दो बिन्दुओं की ओर संकेत करती है कि क्या वास्तव में जान एलेन मोहम्मद को डीसी स्निपर आक्रमण के मामले में दोषी बनाया जाये।
पहला- इस्लाम में धर्मांतरित होने और संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रति घृणा के अजीब संयोग को काफी निकट से देखने की आवश्यकता है। किस हद तक इस्लाम असंतुष्टों को अपनी ओर आकर्षित करता है , किस हद यह उन्हें सक्रियता से अपने देश के विरुद्ध कर देता है। उस असंतोष की खोज करने की आवश्यकता है जो आतंकवाद को प्रेरित करता है और इसका सुरक्षा की दृष्टि से भी काफी महत्व है।
दूसरा- किस हद तक लुईस फराखान और सिराज वहाज जैसे मह्त्वपूर्ण व्यक्तियों की लफ्फाजी उनके अनुयायियों जैसे आरोपी स्निपर को हिंसा में संलग्न होने के लिये प्रेरित करती है। यदि यह प्ररित करती है तो यह देखते हुए कि यह युद्ध का समय है ऐसी लफ्फाजियों को रोकने की दिशा में प्रयास होने चाहियेऐसे मुद्दों को एक बार फिर उठाने की आवश्यकता है क्योंकि कटु सत्य है कि यदि अमेरिका आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध को जीतना चाहता है तो उसे संघर्ष करना ही होगा।