1993 में यित्जाक राबिन ने यासिर अराफात से हाथ मिलाकर इजरायल को समाप्त करने वाले युद्ध को समाप्त करने सम्बन्धी घोषणा पर हस्ताक्षर किये थे परंतु पिछले माह न्यूयार्क के एक न्यायालय में फिलीस्तीनी लिबरेशन आर्गनाइजेशन ने आधिकारिक रूप से इस बात को पुष्ट किया कि वह आतंकवाद को अब भी इजरायल के विरुद्ध एक वैधानिक युद्ध के रूप में देखता है।
सोकोलोव बनाम फिलीस्तीन लिबरेशन आर्गनाइजेशन नामक वाद में डेविड स्ट्राचमान ने आरोप लगाया कि पीएलओ ने जनवरी 2001 से फरवरी 2004 के मध्य जेरुसलम क्षेत्र में दो मशीन गन और पाँच बम विस्फोटों से आक्रमण किये। अमेरिका के जिला न्यायाधीश जार्ज डैनियल्स के शब्दों में वादी ने पीएलओ पर आरोप लगाया कि कि ऐसा उसने, “ इजरायल की सामान्य जनता को आतंकित, डराने और जबरन अपने राजनीतिक उद्देश्य और माँग को मनवाने के लिये किया ताकि अमेरिका की नीतियों और इजरायल की सरकार को प्रतिवादियों के राजनीतिक उद्देश्य और माँग को पूरा करवाने के लिये बाध्य किया जा सके”। इन आक्रमणों में 33 लोग मारे गये और अनेक लोग घायल हुए और उनमें से कुछ अमेरिकी नागरिक थे और इन पीडितों के परिजन पीएलओ से 3बिलियन अमेरिकी डालर की माँग क्षतिपूर्ति के रूप में कर रहे हैं।
पीएलओ का पक्ष 1967-69 तक संयुक्त राज्य अमेरिका के महाधिवक्ता रहे राम्से क्लार्क ने रखा और उन्होंने अपने उत्तर में कहा कि ये आक्रमण आतंकवाद नहीं वरन युद्ध थे। जैसा कि डैनियल्स ने पीएलओ के तर्क को संक्षेप में बताया, “ प्रतिवादी ने तर्क दिया कि इस विषय पर न्यायालय का अधिकारक्षेत्र नहीं आता क्योंकि यह कार्य एक युद्ध की घटना है और 1991 के आतंकवाद विरोधी अधिनियम के अनुसार न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में युद्ध नहीं आता और यह उस आचरण पर आधारित है जो कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की लिखित परिभाषा में नहीं आता।
यह उत्तर दो कारणों से अत्यंत उल्लेखनीय है 1- पन्द्रह वर्ष पूर्व ओस्लो के द्वारा मान लिया गया था कि अब युद्ध की स्थिति समाप्त हो गयी है, यासिर अराफात के भयानक रिकार्ड के बाद महमूद अब्बास के कार्यभार लेने से माना जा रहा था कि स्थितियाँ अब अधिक अच्छी हो गयी हैं पर पीएलओ सार्वजनिक रूप से यह मान रहा है कि इजरायल के साथ उसका युद्ध जारी है। 2- पीएलओ ने यहाँ तक कि अमेरिकी विधिक न्यायालय के सन्दर्भ में कहा कि खुला, क्रूर, अमानवीय और हत्या की उत्पीडक कार्रवाई युद्ध का एक वैधानिक तरीका है।
न्यायाधीश डैनियल्स ने सही ही पीएलओ के तर्कों पर आपत्ति की, “ न्यायालय को लगता है कि जिन आक्रमणों की चर्चा संशोधित शिकायत में की गयी है वे युद्ध की श्रेणी में नहीं आते और न ही विधिक दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की लिखित परिभाषा के दायरे से बाहर है”। न्यायाधीश ने और आगे जाकर कहा कि इन आक्रमणों का शिकार बनाने का आशय आम नागरिक थे न कि सैनिक।
इस बात के कोई संकेत नहीं थे कि आक्रमण किसी युद्ध क्षेत्र या सैन्य क्षेत्र में थे या फिर किसी भी प्रकार सैन्य या सरकारी लोगों या सरकारी हितों को निशाना बनाया गया था। इसके विपरीत वादियों का आरोप है कि आक्रमणों का निशाना जानबूझकर नागरिकों को बनाया गया था। ऐसा दावा किया गया कि ये आक्रमण उन क्षेत्रों में किये गये जिनके बारे में पता था कि वहाँ सामान्य नागरिक एकत्र होते हैं जिनका युद्ध से कोई वास्ता नहीं है जैसे हिब्रू विश्वविद्यालय में कैफेटेरिया या फिर व्यावसायिक यात्री बस।
डैनियल्स ने ऐसे स्वर में बात की जो प्रायः जिला न्यायालयों में सुनने को नहीं मिलती है।
इसके अतिरिक्त इन परिस्थितियों में बम का प्रयोग उस आशय की ओर संकेत है कि आम जन को अधिक से अधिक क्षति पहुँचाई जा सके। ऐसे अस्त्रों का लाभ अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में अधिक से अधिक लोगों को क्रूरतापूर्वक मारे जाने में है। इस प्रकार सामान्य लोगों की हत्या जो कि सामान्य रूप से प्रतिदिन के कार्य के लिये घर से निकल कर जा रहे हों किसी भी प्रकार युद्ध का कार्य नहीं है।
इससे पीएलओ न्यायसंगत सिद्ध होता है कि, “ असंख्य रूप से लोगों को अन्धाधुन्ध क्रूरतापूर्वक मारने की क्षमता” के कारण वह 1964 में अपनी स्थापना के बाद से ही आतंकवादी संगठन बना हुआ है।
आखिर कब जेरुसलम और वाशिंगटन के कूटनीतिक क्षेत्रों में यह प्रकाश पहुँचेगा।