स्तम्भकार अमीर ताहेरी ने संकेत किया है कि सातवीं शताब्दी के शिया मुसलमानों के केन्द्रीय व्यक्तित्व अली इब्न अबी तालिब ने भविष्यवाणी की थी कि जब विश्व समाप्त होगा तो “ एक लम्बा काला व्यक्ति” “ विश्व की सबसे विशाल सेना का सेनापति” “ पश्चिम में सत्ता प्राप्त करेगा”। वह तीसरे इमाम हुसैन से “ सीधे संकेत ग्रहण करेगा”। अमीर ताहेरी के अनुसार अली ने जिस लम्बे काले व्यक्ति के सम्बन्ध में कहा था “ उसके सम्बन्ध में शिया अनुयायियों को कोई सन्देह नहीं होना चाहिये कि वह हमारे मध्य है”
बराक हुसैन का अरबी में अर्थ होता है “ हुसैन का आशीर्वाद”। फारसी में ओबामा का अनुवाद है “ वह हमारे साथ है”। अब यदि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति को उनके भौतिक आधार और भौगोलिक आधार पर देखें तो इससे यही संकेत मिलता है कि अंत समय निकट है संक्षेप में जिसकी भविष्यवाणी ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद करते आये हैं।
यदि पुनः पृथ्वी पर वापस आयें तो ओबामा की विजय पर मुस्लिम प्रतिक्रिया उससे अधिक मिश्रित है जैसा कोई अपेक्षा कर सकता है।
अमेरिका के इस्लामवादी पुलकित हैं और एक छतरी संगठन अमेरिकन मुस्लिम टास्कफोर्स आन सिविल राइट्स एण्ड एलेक्शंस ने ओबामा के चुनाव के उपरांत कहा, “ हमारे देश ने एक नयी ऊँचाई को स्पर्श किया है”। सिराज वहाज, अल हज अब्दुर्र राशिद, द काउंसिल आन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस, द मुस्लिम पब्लिक अफेयर्स काउंसिल, द इस्लामिक सोसाइटी आफ नार्थ अमेरिका, द इस्लामिक सर्कल आफ नार्थ अमेरिका और मुस्लिम एलायंस इन नार्थ अमेरिका ने भी इसी प्रकार प्रसन्न होकर प्रतिक्रिया व्यक्त की।
हमास और मिस्र , जार्डन, इराक, भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस के इस्लामवादी आन्दोलन भी ओबामा के चुनाव से अति उत्साहित हुए। जिहाद वाच के राबर्ट स्पेंसर ने सामान्य रूप से कह दिया कि विश्व भर के जिहादी और इस्लामी सर्वोच्च्तावादियों ने अत्यन्त प्रसन्नता दिखाई। न्यूयार्क टाइम्स ने पाया कि मध्य पूर्व में लोगों की प्रतिक्रिया भी हर्षप्रधान थी। जार्जटाउन विश्वविद्यालय के जान एस्पोसिटो ने जोर दिया कि कि मुस्लिम विश्व ने ओबामा का स्वागत एक “ अंतरराष्ट्रवादी राष्ट्रपति” के रूप में किया।
परंतु काफी मात्रा में मुसलमानों के अन्य दृष्टिकोण भी हैं। कनाडा के एडमोंटोन सन में लिखते हुए सलीम मंसूर ने जान मैक्केन को अधिक योग्य प्रत्याशी पाया। अल जजीरा शेख युसुफ अल करदावी ने कुछ विरोधी कारणों के चलते जान मैक्केन का समर्थन किया, “ ऐसा इसलिये कि मैं स्पष्ट शत्रु को प्राथमिकता देता हूँ जो किसी आडम्बर के चलते अपनी शत्रुता को आपसे नहीं छिपायेगा.....उस शत्रु की भाँति जो मित्रता का नकाब पहनेगा”। अल करदावी ने यह भी आग्रह किया कि जार्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में बिल क्लिंटन के कार्यकाल की तुलना में दो गुना लोग इराक में मारे गये।
ईरान के कट्टरपंथियों ने भी मैक्केन की विजय का पक्ष लिया( ईरान के पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद अली अब्ताही के अनुसार) “ क्योंकि अमेरिका की शत्रुता से उन्हें अधिक लाभ होगा क्योंकि इससे वे समस्त इस्लामी विश्व को अपनी नीतियों के इर्द गिर्द खडा कर सकेंगे और उसी समय अपने देश में विरोधी स्वर को भी दबा सकेंगे”। तालिबान ने ओबामा के चुनाव के वादे पर भी ध्यान दिया कि वे अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना को बढायेंगे और इस पर उनकी प्रतिक्रिया थी कि यदि ओबामा ने अपनी योजना को पूरा किया तो, “ जिहाद और प्रतिरोध जारी रहेगा”।
इराक के लोग इस बात पर विभाजित हैं कि ओबामा शीघ्र ही इस देश से अमेरिकी सेनाओं को हटा लेंगे। इस योजना से यह आश्वासन मिलता है कि मध्य पूर्व के तेल पर अमेरिकी निर्भरता कम हो जायेगी और ईरानी नेताओं से इस सम्बन्ध में बातचीत की जायेगी और इस बात ने सउदी अरब के नेताओं और फारस की खाडी की अन्य सरकारों को भ्रमित कर दिया है।
कुछ टिप्पणीकारों का तर्क है कि ओबामा कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं कर सकेंगे, ईरान के एक समाचार पत्र ने घोषित किया कि वह उस व्यवस्था में परिवर्तन करने में सक्षम नहीं हो सकेंगे जो “पूँजीवादियों, इजरायलवादियों और नस्लवादियों द्वारा स्थापित की गयी है”। जैसी कि सम्भावना थी कि राहम एमैनुवल के ओबामा के स्टाफ के प्रमुख बनने से फिलीस्तीनियों की सर्वशक्तिमान इजरायल लाबी की अवधारणा सत्य सिद्ध हो गयी है। संयुक्त अरब अमीरात में एक टिप्पणीकार ने इससे आगे जाकर भविष्यवाणी की कि ओबामा जिमी कार्टर की भाँति एक मुखर व्यक्ति के रूप में सामने आयेंगे, मध्य पूर्व में असफल होंगे और अंततः चुनावी पराजय के शिकार होंगे।
कुल मिलाकर मुसलमानों की ओर से आने वाली ये प्रतिक्रियायें इस्लामी मूल के उस राष्ट्रपति के भविष्य को उलझाव भरा बनाती हैं जिसने “ परिवर्तन” का वादा किया है फिर भी उसकी विदेश नीति उसके कार्यालय के दबावों के बशीभूत ही रहेगी। दूसरे शब्दों में मुसलमान भी ओबामा के समक्ष उसी प्रश्नचिन्ह को लटकता हुआ पाते हैं जैसा कि अन्य लोग।
इससे पूर्व कभी भी अमेरिका के लोगों ने व्हाइट हाउस में ऐसे व्यक्ति को नहीं चुना जो इतना अनजान और रहस्यमयी रहा हो। पूरी तरह वामपंथी पृष्ठभूमि से उदित होकर वह आम चुनावों में केन्द्रीय वामपंथी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लडा। वह राष्ट्रपति के रूप में कौन सी स्थिति ग्रहण करेंगे? अधिक संक्षेप में कहें तो वह कट्टर वामपंथी से केन्द्रीय वामपंथी के किस क्षितिज पर रुकेंगे?
उदाहरण के लिये अरब-इजरायल विवाद को लें तो क्या ओबामा की नीतियाँ पीएलओ के पूर्व सदस्य राशिद खालिदी को प्रतिबिम्बित करेंगी जो 1990 के दशक में उनके मित्र थे या फिर उनके प्रचार में उनके सलाहकार रहे डेनिस रोज को प्रतिबिम्बित करेंगी जो कि मेरे सम्पादक बोर्ड के सदस्य भी हैं? कोई भी अभी कुछ नहीं कह सकता।
अभी केवल एक बात की भविष्यवाणी की जा सकती है। यदि ओबामा अपने कट्टर वामपंथी जड की ओर लौटते हैं तो मुस्लिम उल्लास का दौर जारी रहेगा। यदि वे केन्द्रीय वामपंथ की ओर रूख करते हुए अपने राष्ट्रपति कार्यकाल को सफल बनाने का प्रयास करेंगे तो अधिकाँश मुसलमान बुरी तरह भ्रम की स्थिति में रहेंगे।