तुर्की के प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन ने ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के बारे में कहा, " इसमें कोई संशय नहीं है कि वह हमारे मित्र हैं" और वह भी तब जब कि उन्होंने इजरायल के विदेश मंत्री एविगडोर लिबरमैन पर आरोप लगाया कि उन्होंने गाजा के विरुद्ध परमाणु अस्त्र का प्रयोग करने की धमकी दी है। ये आक्रोशित करने वाले आग्रह इस ओर संकेत करते हैं कि पिछले छह दशक से पश्चिम का निकटतम मुस्लिम सहयोगी एरडोगन की ए के पी राजनीतिक दल के 2002 में सत्ता में आने के बाद किस प्रकार स्वयं को परिवर्तित कर रहा है।
पिछले माह के तीन घटनाक्रम रहस्योद्घाटित करते हैं कि किस स्तर तक परिवर्तन हो रहा है। पहला घटनाक्रम 11 अक्टूबर को सामने आया जब यह समाचार आया कि एक लम्बे समय से सेक्युलरिज्म का दुर्ग रही और इजरायल के साथ सहयोग की वकालत करने वाले तुर्क सेना ने अचानक इजरायल सेना से कहा कि वह वार्षिक " अनातोलियन ईगल" वायुसेना अभ्यास में भाग न ले।
प्रधानमंत्री एरडोगन ने इस युद्धाभ्यास को रद्द करने के पीछे " कूटनीतिक संवेदनशीलता" का हवाला दिया तो विदेश मंत्री अहमत दावतोग्लू ने " गाजा, उत्तरी जेरूसलम और अल अक्सा मस्जिद" की संवेदनशीलता का हवाला दिया। तुर्कों ने विशेष रूप से इजरायली वायुयानों को निरस्त कर दिया था जो पिछली सर्दियों में गाजा पट्टी पर हुए आपरेशन में हमास( एक इस्लामवादी आतंकवादी संगठन) के विरुद्ध आक्रमण कर सकते थे। जहाँ एक ओर दमिश्क ने इजरायल को निमंत्रित नहीं करने के निर्णय का स्वागत किया तो वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका और इटली की सरकारों को भी इस युद्धाभ्यास से अलग होना पडा जिससे अंत में यह अंतरराष्ट्रीय अभ्यास ही निरस्त कर दिया गया।
जहाँ तक इजरायल का प्रश्न है तो इस अचानक और अप्रत्याशित परिवर्तन से तुर्की के साथ 1996 से चले आ रहे उसके सैन्य सहयोग का मूल ही सकते में आ गया। भूतपूर्व वायुसेना प्रमुख इतान बेन इलियाहू ने इस अभ्यास के निरस्त होने को एक चिंताजनक गम्भीर घटना बताया। जेरूसलम ने अपनी तात्कालिक प्रतिक्रिया में तुर्की को आपूर्ति किये जाने वाले आधुनिक हथियारों की समीक्षा की बात की जैसे कि अभी हाल में तुर्की वायुसेना को 140 मिलियन का साजो सामान विक्रय किया गया है। इसके साथ ही यह विचार भी आया कि अमेरिकी कांग्रेस में नियमित तौर पर प्रस्तुत होने वाले अर्मीनियाई नरसंहार प्रस्ताव को तुर्की द्वारा पराजित करने के प्रयास में सहायता बन्द की जाये।
हर्जलिया में स्थित एक केन्द्र के बैरी रूबिन के अनुसार न केवल " इजरायल और तुर्की के गठबन्धन का अंत हो गया है" वरन उनका निष्कर्ष है कि अब तुर्की की सेना सेक्युलर रिपब्लिक की रक्षा नहीं करती और अब तुर्की की सरकार के इस्लामवादी बनने पर यह हस्तक्षेप भी नहीं करेगी।
दूसरा मह्त्वपूर्ण घटनाक्रम दो दिन उपरांत 13 अक्टूबर को घटित हुआ जब सीरिया के विदेश मंत्री वालिद अल मोएलेम ने घोषणा की कि तुर्की और सीरिया की सेनाओं ने अभी हाल में अंकारा के निकट एक संयुक्त युद्धाभ्यास किया है। मोएलेम ने ठीक ही इसे एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम बताया क्योंकि " इससे उन रिपोर्टों का खण्डन होता है जिसके अनुसार सीरिया के साथ रणनीतिक सम्बन्ध को लेकर तुर्की के राजनीतिक और सैन्य संस्थाओं में कोई टकराव है" इससे ध्वनित होता है कि तुर्की की सेना ने राजनेताओं के समक्ष घुटने टेक दिये हैं।
तीसरा, दावातोग्लू के नेतृत्व में तुर्की के दस मंत्रियों ने अपने सीरियाई सहयोगियों के साथ 13 अक्टूबर को हाल में स्थापित " तुर्की सीरिया उच्चस्तरीय रणनीतिक सहयोग परिषद" के तत्वावधान में वार्ता की। घोषणा के अनुसार मंत्रियों ने लगभग 40 समझौतों पर हस्ताक्षर किये जिन्हें 10 दिनों के भीतर क्रियांवयन में लाया जायेगा। इसके अनुसार एक वृहद और विशाल सैन्य अभ्यास किया जायेगा जो कि अप्रैल में हुए अभ्यास से भी बडा होगा और दोनों देशों के नेता नवम्बर में रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे।
परिषद ने अपने समापन में संयुक्त वक्तव्य में दोनों पक्षों के मध्य " दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी" की स्थापना की बात की गयी ताकि " अपने लोगों के मध्य सांस्कृतिक एकजुटता को सशक्त किया जा सके तथा पारस्परिक लाभ और हित के मुद्दों को व्यापक करते हुए सहयोग बढाया जा सके" दावतोग्लू ने परिषद की भावना की व्याख्या करते हुए कहा, " हमारी समान नीयति, इतिहास और भविष्य़ है जिसे हम एक साथ मिलकर बनायेंगे" जबकि मोएलेम ने दोनों पक्षों के मिलन को दो समुदाय के मिलन का उत्सव बताया।
वास्तव में द्विपक्षीय सम्बन्धों में यह नाटकीय परिवर्तन आया है जबकि एक दशक पूर्व अंकारा तो लगभग सीरिया के साथ युद्ध की स्थिति में आ गया था। लेकिन दमिश्क के साथ रिश्तों का यह सुधार तो उस व्यापक प्रयास का एक भाग मात्र है जिसके अनुसार अंकारा क्षेत्रीय और मुस्लिम देशों के साथ अपने सम्बन्धों को सशक्त करना चाहता है। दावतोग्लू ने वर्ष 2000 में अपनी पुस्तक (" रणनीतिक गहराई- तुर्की की अंतरराष्ट्रीय स्थिति) में यह रणनीति बतायी थी।
संक्षेप में दावतोग्लू की दृष्टि के अनुसार तुर्की को अपने पडोसियों से टकराव कम करने चाहिये और तुर्की को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरना चाहिये जिसे आधुनिक ओटोमन साम्राज्य कहा जा सकता है। इस रणनीति में अंतर्निहित है कि तुर्की सामान्य रूप से पश्चिम से और विशेष रूप से इजरायल से दूरी बनाता जायेगा। वैसे तो इसे इस्लामवादी शब्दावली में व्यक्त नहीं किया गया है परंतु " रणनीतिक गहराई" पूरी तरह ए के पार्टी के इस्लामवादी विश्व व्यवस्था को व्यक्त करती है।
जैसा कि बैरी रूबिन ने कहा है, " तुर्की की सरकार राजनीतिक रूप से ईरान और सीरिया के निकट है संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल की अपेक्षा" । जेरूसलम पोस्ट के स्तम्भकार कैरोलिन ग्लिक तो इससे भी आगे बढकर कहते हैं, " अंकारा ने पहले ही पश्चिमी गठबन्धन को छोड दिया है और पूरी तरह ईरानियन धुरी का सदस्य बन चुका है"। परंतु पश्चिम की आधिकारिक परिधि में तुर्की के लगाव के इस परिवर्तन और उसके परिणामों को लेकर पूरी तरह अनजान हैं। उनकी इस भूल का परिणाम शीघ्र ही सामने आयेगा।