पश्चिम में जब कोई मुस्लिम बिना किसी विशेष कारण के हिंसक तरीके से किसी गैर मुस्लिम पर आक्रमण करता है तो स्वाभाविक रूप से उसके हेतु या आशय को लेकर तर्क होने लगते हैं।
व्यवस्था से जुडे लोग, कानून प्रवर्तक, राजनेता, मीडिया और अकादमिक लोग इस पूरी बहस में एक ओर खडे हैं जो इस बात पर जोर देते हैं कि 5 नवम्बर को मेजर निदाल मलिक हसन ने किसी उत्पीडन का शिकार होकर फोर्ट हुड में 13 लोगों को मार डाला और 38 लोगों को घायल कर दिया। ये सभी लोग किसी निष्कर्ष विशेष को लेकर एकमत नहीं हैं और हसन को बार बार कभी मुस्लिम होने के कारण नस्लवाद और प्रताडना के शिकार होने की बात करते हैं, स्वयं को आत्मसात अनुभव नहीं कर पा रहा था, अवसाद के चलते तनाव की पहले की अवस्था से गुजर रहा था, मानसिक समस्या का शिकार था, भावनात्मक समस्या का शिकार था, अनियंत्रित तनाव की भारी मात्रा का शिकार था और अफगानिस्तान में अपनी तैनाती को जीवन की विपदा मान रहा था। इसी प्रकार एक अपनी विधा के समाचार पत्र ने लिखा, " एक दुष्ट मेजर का मस्तिष्क एक रहस्य" ।
मुसलमानों द्वारा तथाकथित अविश्वासियों के विरुद्ध की गयी हिंसा हर बार पीडितों को इन हिंसाओं के लिये नये और काल्पनिक तर्क गढने के लिये प्रेरित करती है। इन उदाहरणों में कुछ इस प्रकार हैं ( इनमें मेरे वे लेख और ब्लाग शामिल हैं जहाँ ऐसी घटनाओं के इस्लामी आतंकवाद के पक्ष को नकारा जाता है)
- 1990- " अवसाद के लिये एक दवा का सुझाव दिया गया ( यह रब्बी मीर कहाने की हत्या की व्याख्या के लिये किया गया)।
- 1991- " एक डकैती सफल नहीं हुई" ( सिडनी में माकिन मार्कोस की हत्या का तर्क)।
- 1994- " सड्क पर विवाद" ( ब्रुकलिन पुल पर एक यहूदी की हत्या)।
- 1997- " उसके मस्तिष्क में अनेक शत्रु थे" ( एम्पायर स्टेट भवन पर गोली मार कर हत्या करने पर तर्क)
- 2000- यातायात की घटना ( पेरिस के निकट यहूदी बच्चों से भरी बस पर आक्रमण)
- 2002- " कामकाज का झगडा" ( लैक्स में दोहरा हत्याकांड)
- 2002- " परिवार में तनावपूर्ण सम्बन्ध" ( बेल्टवे स्निपर्स)
- 2003- " व्यवहारगत समस्या" ( हसन करीम अकबर ने अपने साथी सैनिकों पर आक्रमण कर दो को मार डाला)
- 2003- मानसिक बीमारी ( सेबस्टियन सेलाम को बीभत्स तरीके से मारा गया)
- 2004- " एकाकीपन और अवसाद" ( इटली में मैकडोनाल्ड रेस्टारेंट के बाहर ब्रेरस्किया में बम विस्फोट)
- 2005- " सन्दिग्ध और एक अन्य स्टाफ सदस्य के मध्य असहमति" ( वर्जीनिया में सेवानिवृत्त केन्द्र में भगदड)
- 2006- " महिलाओं के प्रति घृणा" ( वृहत्तर सियेटल में यहूदी महासंघ में हत्याजनक भगदड)
- 2006- उसकी हाल के प्रायोजित विवाह ने उसे तनाव में डाल दिया" ( उत्तरी कैलीफोर्निया में हत्या)
इसके अतिरिक्त जब ओसामा बिन लादेन के प्रसंशक अरब अमेरिकी ने तम्पा की ऊँचाई पर विमान टकरा दिया तो इसके लिये नशीली दवाओं की आदत को दोषी बताया गया।
जिहाद की व्याख्या की शाखा के सदस्य के नाते मैं इन व्याख्याओं को कमजोर, भ्रमित करने वाला और क्षमाप्रार्थी भाव से युक्त मानता हूँ। जिहादी शाखा जो कि अब भी अल्पसंख्यक है हसन के आक्रमण को उन अनेक मुस्लिम प्रयत्नों में से एक मानती है जो कि इस्लामी कानून को लागू करने के लिये और काफिरों को समाप्त करने के लिये किये जा रहे हैं।हम उन अनेक पूर्ववर्ती मामलों को याद कर सकते हैं जब अमेरिका की सेना में अचानक जिहाद के रोग के मामले सामने आये और पेंटागन में क्षति नहीं पहुँचा पाने वाले जिहादी षडयंत्र और अमेरिकी धरती पर मुस्लिम हिंसा की घटनायें सामने आयीं।
हसन द्वारा रह्स्य की चादर में लपेटे जाने के बाद भी उसके जिहादी आशय के साक्ष्य हमारे सामने आते हैं। इस हत्याकाण्ड से ठीक पहले उसने अपने पडोसियों को कुरान सौंपी और अल्ला हो अकबर का नारा लगाया जो कि जिहादी नारा है और उसने अपनी दो पिस्तौलों से करीब सौ राउण्ड गोलियाँ चलायीं। उसके वरिष्ठ अधिकारियों ने उसे अस्थायी स्थिति में रखा था क्योंकि वह अनुचित ढंग से इस्लाम के लिये धर्मपरिवर्तन करा रहा था।
उसके पूर्व सहयोगियों का उसके बारे में क्या कहना है हम इसे देखते हैं, वान फिनेल का कहना है कि हसन ने कहा, " मैं पहले मुस्लिम हूँ और उसके बाद अमेरिकी" दूसरे कर्नल टेरी ली के अनुसार उन्हें याद आता है कि हसन ने आत्मघाती आक्रमणों को न्यायसंगत ठहराते हुए कहा, " मुसलमानों को अमेरिका के विरुद्ध उठ खडे होने और आक्रमण करने का अधिकार है"। एक और तीसरे मनोविज्ञानी ने जिसने निकट से हसन के साथ काम किया था उसकी व्याख्या करते हुए कहा, " वह मुस्लिम के रूप में योद्धा का भाव रखता था"।
अंत में जिहादी विचारधारा इस्लामी अधिकारियों के उस विचार को मह्त्व देती है जो अमेरिका के मुस्लिम सैनिकों से आग्रह करती है कि वे अपने समानधर्मी लोगों के विरुद्ध युद्ध न करें और ऐसा करते हुए वे अचानक जिहाद के लिये आधार प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये 2001 में तालिबान के विरुद्ध अमेरिकी आक्रमण की प्रतिक्रिया में मिस्र के मुफ्ती अली गुमा ने एक फतवा जारी किया कि " अमेरिकी सेना के मुस्लिम सैनिकों को इस युद्ध में भाग नहीं लेना चाहिये"। हसन ने इसी बात को ध्वनित किया जब उसने एक युवा मुस्लिम शिष्य़ दुवे रिसोअर जूनियर को अमेरिकी सेना में भर्ती न होने की सलाह दी क्योंकि मुसलमानों को मुसलमानों की हत्या नहीं करनी चाहिये।
जहाँ जिहाद की व्याख्या पीडितों से ही बढकर जिहादियों की पैरोकारी करती है तो वहीं इसे व्यक्त करने में काफी संकोच किया जाता है। यह सभी के लिये सरल है कि इस्लामी सिद्धातों की चर्चा करने के स्थान पर सडक विवाद, नशीली दवा का प्रभाव या फिर प्रायोजित विवाह को दोष दे दिया जाये। और जैसा कि राल्फ पीटर्स ने भविष्य़वाणी की है कि " यह सेना का अक्षम्य राजनीतिक रूप से सही होना है" इससे अंत में हसन के आक्रमण को प्रताडना का परिणाम मान लिया जायेगा और जिहाद का कोई उल्लेख नहीं होगा।
तो क्या सेना अपनी आँखें मूँद लेगी और नये जिहादी आक्रमण के लिये स्वयं को तैयार नहीं करेगी।